आदरणीय राजेन्द्र
रंजन चतुर्वेदी ने आज की अपनी एक पोस्ट पर बी फ़ातिमा के जीवन-दर्शन से जुड़ी हुई एक
कहानी का ज़िक्र किया है.
बी फ़ातिमा एक रात
अपने घर के बाहर उजाले में कुछ खोज रही थीं. लोगों ने पूछा तो उन्होंने बताया कि
वो एक गुम हुई सूई खोज रही हैं. लोगबाग भी सुई खोजने के लिए उनकी मदद को आ गए.
बहुत खोजने पर भी जब सुई नहीं मिली तो लोगों ने उनसे पूछा -
'आपको कुछ अंदाज़ा है कि सुई कहाँ गिरी थी?'
फ़ातिमा बी ने जवाब
दिया -
'सुई तो मेरे घर के अन्दर ही गिरी थी पर
चूंकि घर में अँधेरा था इसलिए उसे बाहर उजाले में खोज रही हूँ.'
लोगबाग जब फ़ातिमा
बी की इस नादानी पर हंसने लगे तो उन्होंने उनसे एक सवाल पूछा -
'तुम लोग सुई के मामले में तो बड़े सयाने
हो पर यह तो बताओ कि जिस चैन, जिस सुकून को, तुम लोग बाहर खोजते रहते हो, क्या वह कहीं
बाहर खोया था?'
बी फ़ातिमा की यह कथा तो समाप्त हुई किन्तु यह
बहुत से सवाल छोड़ गयी है.
एक सवाल है –
‘क्या किसानों के कष्टों का निवारण एयर कंडीशंड कमरों में
बैठ कर हो सकता है?’
‘क्या कश्मीर की समस्या का निवारण महबूबा को गले लगाने से या
उसको ठुकराने से हो सकता है?’
क्या नक्सलवादी समस्या का निदान नक्सलियों
द्वारा हमारे जवानों पर किए गए हर हमले के बाद गृहमंत्री के इस बयान से हो सकता है
–
‘ऐसे हमलों को अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.’
क्या 'फ़िट रहे इंडिया' का नारा देकर या उस से
सम्बंधित वीडियो का प्रसारण करके हम भूखों, नंगों और को फ़िट कर सकते हैं?
क्या गाँधी-नेहरु को कोस कर हम अपने दायित्वों से बच सकते
हैं?
सवाल तो अनंत हैं पर अगर हम इन पांच सवालों का
ठीक-ठीक जवाब भी खोज लें तो हो सकता है कि बी फ़ातिमा की गुम हुई सुई भी मिल जाए.
इन सब का एक ही जवाब है। सब सुधर जायेगा अगर योगा कर ले जायेगा।
जवाब देंहटाएंयोगा कर अकेला मत कर
इक्यावन हजार के साथ कर
देश के साथ तू भी कुछ तर।
बाबा रामदेव हमारे साथ तो योगाभ्यास करेंगे नहीं. उनको तो शिल्पा शेट्टी के साथ योगाभ्यास करना अच्छा लगता है. हम-तुम ही मिलकर कर लेते हैं, योगाभ्यास.
हटाएंगंभीर सवाल सारगर्भित कहानी की बेहद सुंदर संदेश के साथ।
जवाब देंहटाएंसवाल चाहे दशकों पहले किया गया हो या वर्तमान परिदृश्य में एक आम आदमी को बस इतना समझना काफी है सरकारें चाहे कितनी भी बदल लो वही ढाक के तीन पात..। सत्ता के बाहर बैठे तानसेनों के सुर सत्ता पर बैठते ही बदल जाते है..। शायद आम जन की राजनीति के प्रति अरुचि और स्वयं की स्वार्थपूर्ति की नीति कुछ हद तक जिम्मेदार है।
श्वेता जी,
हटाएंहमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद,
जो नहीं जानते, वफ़ा क्या है.
योग से मन शांत हो जाता है और जब चित्त शांत होता है तो सब समस्याएंं अपने आप सुलझ जाया करती हैं :)
जवाब देंहटाएंमीना जी, मजाज़ कह गए हैं -
जवाब देंहटाएंबहुत मुश्किल है, दुनिया का संवरना,
तेरी ज़ुल्फों का, पेचो-ख़म नहीं है.
बेहतरीन सन्देश , अगर कोई समझना चाहे !
जवाब देंहटाएंमंगलकामनाएं !
धन्यवाद सतीश सक्सेना जी. आप जैसे सहृदय लोगों तक यह सन्देश पहुँचा, मुझे इस से ही परम संतोष है. उन से तो मैं यही कहूँगा -
जवाब देंहटाएं'खाक़ हो जाएंगे, हम तुमको ख़बर होने तक.'
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २५ जून २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
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