गोली खाता रहे जवान, सूली चढ़ता रहे किसान,
किन्तु पकौड़े बेच, भाग्य पर, इठलाता देखा इंसान,
सूखी रोटी, चिथड़ा कपड़ा, वृक्ष तले है खुला मकान,
अच्छे दिन आ गए, मगन है, आज समूचा हिंदुस्तान.
किन्तु पकौड़े बेच, भाग्य पर, इठलाता देखा इंसान,
सूखी रोटी, चिथड़ा कपड़ा, वृक्ष तले है खुला मकान,
अच्छे दिन आ गए, मगन है, आज समूचा हिंदुस्तान.
जो सदा स्वप्न हिंडोले झूले
जवाब देंहटाएंस्व के मद में जन को भूले
उसका क्या हम मान करें अब
जो आत्मगाथा के मद में फूले
सारगर्भित सुंदर पंक्तियां है सर।👌👌
काव्यात्मक टिप्पणी के लिए शाबाशीयुक्त धन्यवाद श्वेता जी. घर के आसपास की किसी चट्टान पर जाकर योग-व्यायाम आदि कीजिए और उसका प्रेरणादायक वीडियो तैयार कर सबको भेज दीजिए. मानवता की इस से बड़ी सेवा और क्या हो सकती है?
हटाएंबहुत जरूरी है गोली खिलाना जवान को
जवाब देंहटाएंउतना ही जरूरी है लटकाना किसान को
अच्छे दिन के झूठ से अच्छा मुहावरा
कहाँ मिलेगा बहकाने के लिये शैतान को।
गजब :)
सुशील बाबू तुमने शैतान का जिक्र किया तो अपनी एक पुरानी गुस्ताख़ी याद आ गयी. उस्ताद अकबर इलाहाबादी ने वक़ीलों की तारीफ़ में कहा था -
हटाएं'पैदा हुआ वक़ील तो शैतान ने कहा,
लो आज हम भी, साहबे-औलाद हो गए.'
मैंने वक़ील की जगह नेता रखकर शेर को दुरुस्त किया था -
'नेता ज़मीं पे उतरा तो, शैतान खिल गया,
कल तक यतीम था, मगर अब, बाप मिल गया.'
धन्यवाद ध्रुव सिंह जी. 'लोकतंत्र' संवाद मंच से जुड़ना मेरे लिए अपार हर्ष का विषय होता है. मुझे इसमें बहुत सुन्दर रचनाओं को पढने का जो आनंद मिलता है, उसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है.
जवाब देंहटाएंऔरों की सुध अब कहां । जय जवान जय किसान अब गुजरे जमाने की बातें हैं ।
जवाब देंहटाएंमीना जी, जैसे ही फ़िटनेस लीला, चुनाव रैलियां, विदेश यात्राओं और 'मन की बात' से फ़ुर्सत मिलेगी, वो किसानों और जवानों की सुध भी लेंगे. साहब के घर 5-10 साल की देर भले हो पर अंधेर नहीं है.
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