बुधवार, 16 जनवरी 2019

एबीपी न्यूज़ पर शत्रुघ्न सिन्हा का धमाका

एबीपी न्यूज़ पर रूबिया लियाक़त को दिए गए साक्षात्कार में शत्रुघ्न सिन्हा ने जिस बेबाकी से अपनी बात रखी, जिस तरह की हाज़िर-जवाबी दिखाई, जिस तरह की विनोदप्रियता और वैचारिक परिपक्वता दिखाई, भाषा पर जैसी अपनी पकड़ दिखाई, वैसा कर पाने की, वैसा दिखा पाने की क्षमता, वैसी प्रतिभा, शायद ही किसी राजनेता में हो सकती है.
शत्रुघ्न सिन्हा ने स्पष्ट कर दिया कि वो पटना साहब से ही लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे और उनकी बातों से यह भी स्पष्ट हो गया कि बीजेपी इस बार पटना साहब से या कहीं और से भी उनको अपना प्रत्याशी बनाने वाली नहीं है.
सम्भावना इस बात की अधिक है कि शत्रुघ्न सिन्हा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ेंगे और इसमें कांग्रेस, आर. जे. डी.का उनको समर्थन मिलेगा.
शत्रुघ्न सिन्हा ने मोदी सरकार की नोटबंदी की खुलकर आलोचना की. विपक्षियों के साथ बदले की भावना से कार्रवाही किये जाने की भर्त्सना की, शासकवर्ग और आम आदमी के बीच संवाद-हीनता पर टिप्पणी की, स्मृति ईरानी जैसी कम शिक्षित और राजनीति में अनुभवहीन टीवी एक्ट्रेस को मानव-संसाधन मंत्री बनाए जाने की हंसी उड़ाई, लेकिन सबसे ज़्यादा छींटाकशी की तो - 'वन-मैन रूल' और 'टू-मैन आर्मी' पर.
ख़ुद को मंत्री न बनाए जाने के दर्द को उन्होंने चतुराई के साथ अडवाणी और यशवंत सिन्हा की उपेक्षा से और अटल जी की नीतियों को सर्वथा त्याग दिए जाने से जोड़ दिया.
ऊंचे-ऊंचे सिद्धांतों की बात करने वाले शत्रुघ्न सिन्हा एक बात में बहुत कमज़ोर दिखाई दिए. जिस से उनके मधुर सम्बन्ध हों, उसकी बुराइयाँ उन्हें दिखाई नहीं देतीं. इमरजेंसी लगाने वाली इंदिरा गाँधी और राबड़ी जैसी अनपढ़ को मुख्यमंत्री बनाने वाले लालू उन्हें बेदाग दिखाई देते हैं क्यों कि उन से उनके व्यक्तिगत सम्बन्ध बहुत अच्छे हैं या बहुत अच्छे थे. अपने पैर छूने वाले हाईस्कूल फ़ेल तेजस्वी का भविष्य उन्हें बड़ा उज्जवल दिखाई देता है और मायावती जी उन्हें इसलिए अच्छी लगती हैं क्योंकि उनकी किसी बड़ी मुसीबत में उन्होंने उनकी बड़ी मदद की थी. यही वह सज्जन हैं जो पाकिस्तान के ज़ालिम तानाशाह जियाउल-हक़ के खासुल-ख़ास थे.
मुझे शत्रुघ्न सिन्हा के शानदार साक्षात्कार का यह 'पर्सनल-इक्वेशन' वाला अध्याय, सबसे कमज़ोर लगा.
लेकिन अपनी इस कमी के बावजूद कुल मिलाकर शत्रुघ्न सिन्हा का यह साक्षात्कार हवा के ताज़े झोंके जैसा लगा. उन से कई बातों से असहमत होते हुए भी मैं उनके इस साक्षात्कार को बहुत-बहुत रोचक, सफल और धमाकेदार मानता हूँ.
आगामी लोकसभा चुनाव में पटना साहब से शत्रुघ्न सिन्हा की जीत मेरी दृष्टि में सुनिश्चित है.
मुझे लगता है कि शत्रुघ्न सिन्हा का यह साक्षात्कार बीजेपी के लिए खतरे की घंटी का सूचक है. और अगर गठबंधन सरकार केंद्र में आती है तो यह तय है कि उसमें शत्रुघ्न सिन्हा को कोई बहुत महत्वपूर्ण पद प्राप्त होगा.
मैं सलाह दूंगा महा-उबाऊ और सरदर्द बढ़ाने वाले साक्षात्कार देने वाले देश के शीर्षस्थ नेताओं को (ख़ासकर रविशंकर प्रसाद, निर्मला सीतारमण और अरुण जेटली को), कि वो इस साक्षात्कार को देखें और कोशिश करें कि उनके साक्षात्कार, उनकी प्रेस-कांफ्रेंस कुछ ऐसा ही रंग जमाएं.

17 टिप्‍पणियां:

  1. शत्रुघ्न सिन्हा की प्रतिक्रियाएँँ कई बार टीवी पर देखी और सुनी हैं । बोलते हमेशा ही सन्तुलित और स्पष्ट हैं अपनी बात कहने का उनका अपना अलग ही तरीका है । आपने बड़ी कुशलता से खूबियों और खामियों को इंगित किया जो आपकी लेखनी की विशेषता है ।

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    1. धन्यवाद मीना जी.
      शत्रुघ्न सिन्हा अपनी बेबाक़ डायलौग डिलीवरी के साथ-साथ अपनी बात को बहुत ख़ूबसूरत तरीक़े से पेश भी करते हैं. उनकी बातों में कहीं गहराई होती है तो कहीं पूर्व-निश्चित धारणा के कारण उनमें उथलापन भी आ जाता है. लेकिन उनकी अपने दर्शकों और श्रोताओं पर पकड़ हमेशा बनी रहती है.
      यह तय है कि जितनी तकलीफ़ बीजेपी को उनको निगलने में हो रही थी, उस से कहीं अधिक तकलीफ़ अब उनको थूकने में होगी.

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  2. बुद्धिजीवियों को सलाह देने से बचने का जी ओ भी है :)

    फिर भी लाजवाब है।

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    1. सुशील बाबू, हम बुद्धिजीवियों के लिए 'जी. ओ.' का मतलब तो आम तौर पर - 'मत जियो' या 'जीने नहीं देंगे' ही तो होता है.
      तुम नए चावल हो. हम पुराने चावलों ने तो अपनी नौकरी की शुरुआत में इमरजेंसी के ज़माने वाले फ़रमान भी झेले हैं.

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  3. मेरे विचारों को 'चर्चा मंच'में सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद दिलबाग विर्क जी.
    मुझे कल के अंक की प्रतीक्षा रहेगी.

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  4. नमस्ते,

    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 17 जनवरी 2019 को प्रकाशनार्थ 1280 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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    1. 'पांच लिंकों का आनंद' में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी. मुझे कल के अंक की प्रतीक्षा रहेगी.

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  5. जी,यह चर्चा सुनी और आपकी प्रतिक्रिया भी पढ़ी।
    राजनीति के अपने ही रंग है।अब आगे देखते हैं कि
    ऊंट किस करवट बैठता है।

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    1. अभिलाषा जी, ऊंट के करवट लेते ही आक़ाओं की किस्मत भी करवट लेने वाली है.

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  6. बहुत ही सुन्दर लिखा है आप ने आदरणीय
    सादर

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    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद अनीता जी.
      शत्रुघ्न सिन्हा की बातों में दम तो बहुत होता है. वैसे थोड़ी नाटकीयता भी होती है लेकिन वो उनकी अन्य ख़ूबियों को बढ़ाती ही है, उन्हें कम नहीं करती.

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  7. जी सर...शत्रुघ्न सिन्हा ने तो माननीय के सत्ता सँभालने के पहले ही दिन बगावत का मोर्चा खोल दिया था..।
    अब चाहे कुछ भी हो सब मतलब परस्त गिरगिट ही हैं..अपनी सुविधानुसार प्रलाप करने वाले बहुरुपिये।

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    1. शत्रुघ्न सिन्हा पहले दिन से बाग़ी हैं इसलिए उन्हें गिरगिट नहीं कहा जा सकता. हाँ, सियासत में मतलब-परस्त तो सभी होते हैं, सो शत्रुघ्न सिन्हा भी हैं.

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  8. बात तो आपकी सोलह आने सच है ,शत्रुघ्न जी की बातों में ,और साथ ही उन्हें पेश करने के तरीके का कोई सानी नहीं है । रही बात राजनीति की ,तो इसमें कुछ भी असंभव नहीं ,कब किसकी बाजी़ पलट जाए ,पता नहीं ।
    बहरहाल आपका लेख बहुत रोचक लगा ,आदरणीय ।

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    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद शुभा जी.
      मैं शत्रुघ्न सिन्हा की वाक्-पटुता का क़ायल हूँ, उनकी देश-सेवा की भावना का नहीं. उन्हें सत्ताधारी दल से मुख्य शिकायत तो यही है कि मुझ जैसे सीनियर को मलाईदार पद क्यों नहीं दिया.
      फिर भी अपनी बात को वो बहुत ख़ूबसूरती से पेश करते हैं, इसे तो उनके विरोधियों को भी मानना ही पड़ेगा.

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  9. शत्रुघ्न सिन्हा की राजनीति की प्रतिक्रियाएँँ टीवी पर सुनी हैं वो अक्सर सभी बातों को गहराई से ही कहते है .....उनके इन्ही बेबाक़ डायलौग के ते कई क़ायल है

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    1. संजय भास्कर जी, राज-नेताओं की भेंट-वार्ताएं इतनी पकाऊ, इतनी झूठी और इतनी बासी होती हैं कि टीवी ऑफ़ कर के ही चैन मिलता है. लेकिन शत्रुघ्न सिन्हा जब भी बोलते हैं, उनको सुनकर हमको हमेशा अच्छा लगता है, भले ही कुछ बातों पर हम उन से इत्तिफ़ाक़ न रखते हों.

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