फ़क़त ज़ंजीर बदली जा रही थी
मैं समझा था रिहाई हो गयी है
विकास शर्मा राज़
नई सरकार से उम्मीदें –
फ़क़त ठग-गैंग बदला जा रहा था
मैं समझा दिन सुहाने आ गए हैं
पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है
मीर तक़ी मीर
इंदिरा-युग से आज तक -
क्या घर के क्या बाहर वाले सभी हक़ीक़त जानें हैं
फ़ौरेन हैण्ड विपक्षी साज़िश बस दो यही बहाने हैं
'वाह' के लिए धन्यवाद दोस्त !
जवाब देंहटाएंफ़क़त ज़ंजीर बदली जा रही थी
जवाब देंहटाएंमैं समझा था रिहाई हो गयी है
वाह!!!
सधु चन्द्र जी, आपकी इस 'वाह' के हक़दार तो विकास शर्मा 'राज़' हैं.
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