कबीर -
पानी केरा बुलबुला, अस मानस की जात,
देखत ही छुप जाएंगे, ज्यों तारा परभात.
संशोधित दोहा
पानी केरा बुलबुला, अस भक्तन की जात,
प्रभु हारे, छुप जाएंगे, ज्यों तारा परभात.
रहीम -
बड़े बड़ाई नहिं करें, बड़े न बोलें बोल,
हीरा मुख ते कब कहे, लाख टका मेरो मोल.
संशोधित दोहा
बड़े तभी तक हैं बड़े, खुले न जब तक पोल,
पोल खुले तो फिर बिकें, दो कौड़ी के मोल.
एक बार फिर कबीर -
माली आवत देखि के, कलियाँ करीं पुकारि,
फूलन-फूलन चुन लिए, काल्हि हमारी बारि.
चुनाव की वेला -
नेता आवत देखि के, वोटर करी पुकार,
पांच साल सुधि भूलि के, अब लौटा मक्कार.
अंत में एक बार फिर रहीम -
रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गयी सुरग-पताल,
आप तो कहि के घुस गयी, जूता खाय कपाल,
संशोधित दोहा -
अर्नब जिह्वा बावरी, धन बटोर कर लाय,
गाली के अनुपात में, टीआरपी बढ़ि जाय.
आज के समय पर सटीक बिठाये है आपने दोहों को
जवाब देंहटाएंमेरे दोहों के उदार आकलन के लिए धन्यवाद कविता जी.
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१०-१०-२०२०) को 'सबके साथ विकास' (चर्चा अंक-३८५०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
'सबके साथ विकास' (चर्चा अंक - 3850) में मेरे दोहे सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद अनीता.
हटाएंलाजवाब
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद मित्र !
हटाएंसमसमायक़ी पर सटीक संशोधन गुरुदेव
जवाब देंहटाएंमेरी गुस्ताख़ी के उदार आकलन के लिए धन्यवाद बलबीर सिंह राणा 'अडिग' !
हटाएंवर्तमान संदर्भ में भावपूर्ण व सटीक बिठाए गए शब्दविन्यास
जवाब देंहटाएंउदार आकलन के लिए धन्यवाद सधु चन्द्र जी.
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