लाज़िम है कि हम भी देखेंगे -
जो झूठे ज़ालिम अहमक हैं
मसनद पे बिठाए जाते हैं
मंसूर कबीर सरीखे सब
सूली पे चढ़ाए जाते हैं
क्यूं दीन-धरम की खिदमत में
नित लाश बिछाई जाती हैं
नफ़रत वहशीपन खूंरेज़ी
घुट्टी में पिलाई जाती हैं
बोली औरत की अस्मत की
हाटों में लगाई जाती है
नारी-पूजन की क़व्वाली
हर रोज़ सुनाई जाती है
बिकता हर दिन ईमान यहाँ
गिरवी ज़मीर हो जाता है
कुर्सी पर जैसे ही बैठे
फिर फ़र्ज़ कहीं सो जाता है
आहें सुनता है कौन यहाँ
फ़रियादों से न पिघलता है
नगरी-अंधेर में सिक्का तो
धोखे-फ़रेब का चलता है
बनवास राम का देखा था
अब रामराज्य का देखेंगे
दोज़ख की आग में जलते हुए
हम हिंदुस्तान को देखेंगे
घुट-घुट कर जी कर देखेंगे
तिल-तिल कर मर कर देखेंगे
फिर अगले जनम भी देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे -----
'मंसूर कबीर सरीखे सब सूली पे चढ़ाए जाते हैं' (चर्चा अंक - 3866) में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद अनीता.
जवाब देंहटाएंघुट्टी में पिलाई जाती हैं
जवाब देंहटाएंबोली औरत की अस्मत की
हाटों में लगाई जाती है
नारी-पूजन की क़व्वाली
हर रोज़ सुनाई जाती है
बिकता हर दिन ईमान यहाँ
गिरवी ज़मीर हो जाता है
कुर्सी पर जैसे ही बैठे
उत्कृष्ट रचना
वाह!
प्रशंसा के लिए धन्यवाद सधु चन्द्र जी.
जवाब देंहटाएंघुट्टी में पिलाई जाती हैं
जवाब देंहटाएंबोली औरत की अस्मत की
हाटों में लगाई जाती है
नारी-पूजन की क़व्वाली
हर रोज़ सुनाई जाती है
बिकता हर दिन ईमान यहाँ
गिरवी ज़मीर हो जाता है
कुर्सी पर जैसे ही बैठे
फिर फ़र्ज़ कहीं सो जाता है
समसामयिक हालातों पर उत्कृष्ट सृजन...
एकदम खरी खरी...
वाह!!!
प्रशंसा के लिए धन्यवाद सुधा जी. तरक्कीपसंद शायरी पर चर्चा, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का ज़िक्र किए बिना अधूरी है.
जवाब देंहटाएंतेज व्यंग्य !
जवाब देंहटाएंजहाँ काम आए कलम, कहा करे तलवार !!!
प्रशंसा के लिए धन्यवाद मीना जी.
जवाब देंहटाएंकलम घिसत इक जुग भया
मिले तो खर-पतवार
क्या बात है
जवाब देंहटाएं'वाह' तो फ़ैज़ के लिए बनता है. फिर भी मेरे लिए उसे इस्तेमाल करने के लिए शुक्रिया दोस्त !
हटाएं