गांधी न याद आए -
सौ ऊपर इक्यावन साल
बापू का अब नहीं कमाल
दलित बेचारे हैं बदहाल
कृषक हो गए हैं कंगाल
छोड़ स्वदेशी का जंजाल
मंगवाते आयातित माल
गुत्थम-गुत्था हिन्दू-मुस्लिम
इक-दूजे की खींचे खाल
अमन-शांती समझ बवाल
हथियारों का बढ़ा जलाल
नाथू-मन्दिर में सर झुकता
गांधी दिल से दिया निकाल
ग्राम-स्वराज्य पर मेरी एक पुरानी कविता -
गाँधी के जाँनशीन -
जब भी रुकती है मेरी कार किसी गाँव के बीच
मुझको गाँधी के ख़यालों पे हंसी आती है
न यहाँ बार न होटल न सिनेमा कोई
इनमें इन्सान को रहने में शरम आती है
मुल्क की रूह बसा करती है इन गाँवों में
सिर्फ़ दीवानों को ये बात समझ आती है
यूँ इलैक्शन में चला जाता हूं मजबूरी में
गाँव में याद तो पेरिस की गली आती है
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०३-१०-२०२०) को ''गाँधी-जयंती' चर्चा - ३८३९ पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
गाँधी-जयंती चर्चा-3839 में मेरी कविताओं को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता.
जवाब देंहटाएंवाह सुन्दर सटीक
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद मित्र !
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह लाजवाब सृजन सर!
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद मीना जी.
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद हिंदी गुरु !
हटाएंधन्यवाद !
जवाब देंहटाएंलाजवाब! हमेशा की तरह नयी कविता तो विडम्बना है आज की, पर पुरानी में जो तेज प्रहार किया है वो ग़ज़ब है , अद्भुत है।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम।
ऐसी प्रशंसा के लिए धन्यवाद मन की वीणा. आजकल देशभक्त जिस तरह से गाँधी जी का पोस्टमार्टम करते हैं उसे देख-सुन कर कुंठित हो मेरी कलम अपने-आप चलने लगती है.
हटाएंशब्द - शब्द झरने जैसे झरते चले गये हैं... ऐसा बहाव कि पाठक पढ़ना शुरू करे तो सीधा आखिरी शब्द पर ही रुके... ऊपर से भाषा कटाक्ष वाली... आज के हालात पर गांधी जी की छुरी से लगातार वार करती रचना... अत्यंत सटीक - अत्यंत शानदार...
जवाब देंहटाएंविशाल चर्चित जी, आपने तो मेरी कविताओं की प्रशंसा में कविता ही कर दी.
हटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद.
बहुत सुंदर रचना आदरणीय
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अनुराधा जी.
हटाएंगाँव में याद तो पेरिस की गली आती है। बहुत ही सटिक और निर्विवादित सत्य है ये गोपेश भाई। सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्योति. तीस साल से भी अधिक पुरानी मेरी इस रचना को देशभक्त आज भी बासी और अप्रासंगिक नहीं होने दे रहे हैं. यह समझ में नहीं आ रहा कि इस पर हंसूं या फिर रोऊं !
जवाब देंहटाएंअद्भुत!... वर्तमान का सारगर्भित चित्रण!
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद गजेन्द्र भट्ट 'हृदयेश' जी.
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