कोरोना-संकट के बीच बिहार-चुनाव की धूम मची हुई है.
कोई दस लाख युवाओं को रोज़गार देने वाला है तो कोई राम-राज्य की पुनर्स्थापना कर उसकी राजधानी पटना शिफ्ट करने वाला है और कोई अपने दिवंगत पिता के नाम पर सहानुभूति के वोट मांगने वाला है.
लगता है कि अब – ‘ऑल इज़ वेल’ है. बीमारी, बेरोज़गारी, भुखमरी, मंदी और सांप्रदायिक वैमनस्य की समस्याओं का स्थायी समाधान हो गया है.
बिहार क्या था और अब क्या हो गया है इस पर रोने बैठें तो हमारे आंसुओं से गंगाजी समुद्र जितनी विशाल हो जाएंगी.
बिहार में लालू प्रसाद यादव का आगमन एक नए युग का सूचक है. एक अलमस्त, बेफ़िक्र ग्रामीण विदूषक से वो राजनीति में कब चाणक्य और मेकियावेली के भी उस्ताद बन गए, किसी को यह पता भी नहीं चला.
प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के शासनकाल में लालू यादव चारे घोटाले में आरोपित हुए तो उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी. फिर जो हुआ वो उस से पहले भारतीय इतिहास में कभी नहीं हुआ. लालू ने अपनी जगह अपनी लगभग अंगूठा-छाप पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनवा दिया.
लोकतंत्र की इस खुली हत्या से उस दिन मेरे साथ बिहार का गौरवशाली इतिहास भी रोया था.
महाकवि दिनकर की अमर रचना – ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ से प्रेरित होकर तब मैंने एक कविता लिखी थी.
हो सकता है कि यह कविता आप मित्रों को आज भी प्रासंगिक लगे.
बिहार-विलाप -
हे महावीर औ बुद्ध तुम्हारे दिन बीते
प्रियदर्शी धम्माशोक रहे तुम भी रीते
पतिव्रता नारियों की सूची में नाम न पा
लज्जित निराश धरती में समा गईं सीते
नालन्दा वैशाली का गौरव म्लान हुआ
अब चन्द्रगुप्त के वैभव का अवसान हुआ
सदियों से कुचली नारी की क्षमता का पहला भान हुआ
मानवता के कल्याण हेतु माँ रबड़ी का उत्थान हुआ
घर के दौने से निकल आज सत्ता का थाल सजाती है
संकट मोचन बन स्वामी के सब विपदा कष्ट मिटाती है
पद दलित अकल हो गई आज हर भैंस यही पगुराती है
अपमानित मां वीणा धरणी फिर लुप्त कहीं हो जाती है
जन नायक की सम्पूर्ण क्रांति शोणित के अश्रु बहाती है
जब चुने फ़रिश्तों की ग़ैरत बाज़ारों में बिक जाती है
जनतंत्र तुम्हारा श्राद्ध करा श्रद्धा के सुमन चढ़ाती है
बापू के छलनी सीने पर फिर से गोली बरसाती है
क्या हुआ दफ़न है नैतिकता या प्रगति रसातल जाती है
समुदाय-एकता विघटन के दलदल में फंसती जाती है
फलता है केवल मत्स्य न्याय समता की अर्थी जाती है
क्षत-विक्षत आहत आज़ादी खुद कफ़न ओढ़ सो जाती है
पुरवैया झोंको के घर से विप्लव की आंधी आती है
फिर से उजड़ेगी इस भय से बूढ़ी दिल्ली थर्राती है
पुत्रों के पाद प्रहारों से भारत की फटती छाती है
घुटती है दिनकर की वाणी आवाज़ नई इक आती है
गुजराल ! सिंहासन खाली कर पटना से रबड़ी आती है
गुजराल ! सिंहासन खाली कर पटना से रबड़ी आती है
लाजवाब
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद मित्र ! मेरी यह कविता तुमने तो शायद पहले भी पढ़ी होगी.
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 23-10-2020) को "मैं जब दूर चला जाऊँगा" (चर्चा अंक- 3863 ) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
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"मीना भारद्वाज"
'मैं जब दूर चला जाऊंगा' (चर्च अंक - 3863) में मेरी कविता को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद मीना जी.
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ अक्टूबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
'पांच लिंकों का आनंद' के 23 अक्टूबर, 2020 के अंक में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद श्वेता !
जवाब देंहटाएंअद्भुत और कालजयी!
जवाब देंहटाएंहे कविराज ! मेरी रचना को इतना प्यार और सम्मान देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !
हटाएंबिहारियों का सम्मान नष्ट करने वाले इन नेताओं का कब नाश होगा पता नहीं
जवाब देंहटाएंउम्दा लेखन
प्रशंसा के लिए धन्यवाद विभा जी.
हटाएंइन लुटेरे नेताओं के कारण बिहार का और बिहारियों का नसीब कुछ ज़्यादा खोटा है लेकिन बाक़ी प्रदेशों का और उनके निवासियों का, भाग्य-सूर्य भी भ्रष्टाचार और अनाचार के घने बादलों से घिरा हुआ है.
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद ओंकार जी.
हटाएंवाह!प्रत्यक्ष प्रहार बहुत अच्छा लगा सर पढ़कर।
जवाब देंहटाएंलाजवाब
प्रशंसा के लिए धन्यवाद अनीता !
हटाएंइन सियासती चिकने घड़ों पर तो मेरे व्यंग्य-वाण फिसल कर गिर जाते हैं.
वर्तमान चुनावी माहौल को सार्थक करती....
जवाब देंहटाएंजीवंत व्यंग्यात्मक काव्य
उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद सधु चन्द्र जी.
हटाएंमाँ रबड़ी का उत्थान हुआ !
जवाब देंहटाएंपद दलित अकल हो गई आज हर भैंस यही पगुराती है
ऐसी पंक्तियों की रचना आप ही कर सकते हैं। विद्वानों और ज्ञानियों की धरती बिहार का सत्यानाश कर दिया नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए !
हँसी और आँसू साथ ही आ जाएँ, ऐसी रचना।
प्रशंसा के लिए धन्यवाद मीना जी !
हटाएंइन दुष्ट और ठग नेताओं की तो छोड़िये, लोकतंत्र की ऐसी हत्या को कायर्तापूर्वक बार-बार सहन करने के लिए आने वाली पीढियां हमको भी कभी माफ़ नहीं करेंगी.