कवि नीरज से क्षमा याचना –
मूल कविता –
‘अब के सावन में, शरारत ये मेरे साथ
हुई,
मेरा घर छोड़ के, कुल शहर में बरसात हुई.’
नए बजट के सन्दर्भ में संशोधित कविता –
‘इस बजट में, ये शरारत क्यूँ मेरे साथ
हुई?
राहतें सूख गयीं, टैक्स की बरसात हुई.’
मूल कविता –
‘बिन धागे की सुई ज़िन्दगी,
सिये न कुछ, बस, चुभ-चुभ जाए.’
संशोधित कविता –
‘बिन धागे की सुई जेटली,
सिये न कुछ, बस, चुभ-चुभ जाए.’
बेहतरीन अभिव्यक्ति.....बहुत बहुत बधाई.....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद चतुर्वेदी जी. वैसे बधाई के पात्र तो जेटली जी हैं.
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