सूफियाना तरीक़े का देशप्रेम –
एक मस्जिद में एक मौलवी साहब बैठे हुए
थे. उनके सामने एक आदमी आया और बिना वज़ू (नमाज़ पढ़ने से पहले हाथ-पैर की शुद्धि
करना) किए हुए जल्दी-जल्दी नमाज़ पढ़ने लगा. इस
तरह जल्दी-जल्दी नमाज़ पढ़कर जब वो जाने लगा तो मौलवी साहब ने उसे रोका और
उसे घुड़क कर कहा –
‘नालायक! नमाज़ पढ़ने का यह क्या तरीक़ा
हुआ? चल पहले जाकर वज़ू कर, फिर सलीके से नमाज़ दुबारा पढ़.’
उस आदमी ने कायदे से वज़ू किया, फिर
सलीके से नमाज़ पढ़ी. नमाज़ पढ़कर जब वो मौलवी साहब को सलाम करके मस्जिद से बाहर जाने
लगा तो मौलवी साहब ने रौब से उस से पूछा –
‘क्यूँ बरखुरदार, तुमको नमाज़ पढ़ने का कौन
सा तरीका पसंद आया?’
उस आदमी ने अदब से जवाब दिया –
‘हुज़ूर, पहला वाला.’
मौलवी साहब ने हैरत से पूछा –
‘वह क्यूँ?’
उस आदमी ने जवाब दिया –
‘मैंने पहली बार नमाज़ खुदा के खौफ़ से
पढ़ी थी और दूसरी बार आपके खौफ़ से.’
पर सूफ़ी इस ‘खौफ़े खुदा’ से भी ज्यादा
महत्ता ‘खुदा से मुहब्बत’ को देते हैं. उनका मानना है –
‘खौफ़े खुदा’ से अगर खुदा को याद किया तो
क्या अच्छा किया. खुदा को याद करना है तो उसे दिल से याद करो, उससे डरकर, उसके
हुक्म की तामील मत करो बल्कि उससे मुहब्बत करके उसकी दिखाई हुई राह पर अपनी मर्ज़ी
से चलो.’
देशभक्ति के मामले में भी देशभक्ति का सूफ़ियाना
तरीक़ा ही श्रेयस्कर है. जिस के दिल में देशप्रेम का जज़्बा हो, वह ‘जय हिन्द’ बोले,
‘भारत माता की जय’ के नारे लगाए या न लगाए, सिर्फ ‘भारत माता की जय’ बोलने के आधार
पर किसी की देशभक्ति या देश के प्रति गद्दारी पर फ़ैसला देने वाले हम कौन होते हैं?
महाराष्ट्र विधान सभा में एक ड्रामेबाज़
विधायक ने ‘भारत माता की जय’ बोलने से इंकार करने का ड्रामा किया और फिर ऐसे
गद्दार को तथाकथित देशभक्त विधायकों ने सदन से निष्कासित करवा दिया. वाह ! वाह ! ऐसी
देशभक्ति पर बच्चो, बजाओ ताली.
ये विधायक तब खुद को सदन से निष्कासित
क्यूँ नहीं करवाते जब उनके अपने क्षेत्र का क़र्ज़ और दुर्भिक्ष का मारा कोई किसान
आत्महत्या कर लेता है?
पिछले दो सालों में हमारे देश में
गद्दारों और और देशभक्तों की बाढ़ सी आ गई है. खैर गद्दारों से निपटना तो आसान है
पर हे भगवान ! तुम से करबद्ध प्रार्थना है कि इन स्वघोषित देशभक्तों से देश को
बचाने के लिए तुम फिर एक बार अवतरित हो जाओ.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें