मैं भगोड़ा नहीं –
मैं गया वक़्त नहीं हूँ, जो नहीं आऊँगा,
लूटने मुल्क को मैं, फिर से, लौट
आऊँगा.
रंग
बदले ----
हुर्रे! देशभक्ति, खाकी से, भूरी, और
हाफ़ से पूरी हो गई.
कबीर उवाच –
कांकर, पाथर जोड़ि कै, संसद लई
बनाय,
ता चढ़ नेता रोज़ ही, जनता को बहकाय.
जनता को बहकाय, गयी अपनी मति मारी,
राज-पाट देकर उनको, खुद हुए भिखारी.
तस्कर, क़ातिल, डॉन, एक-दूजे से धाकड़,
हीरे, मोती फ़ेंक, चुन लिए हमने कांकर.
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