बुधवार, 30 मार्च 2016

सुस्वागतम

दहशतगर्दों और उनके सरपरस्तों का एक बार फिर से इस्तकबाल -
मुल्क की सरहद खुली है आइए,
और छाती पर मेरी चढ़ जाइए.
बम-धमाकों से हमारी नींद खोली शुक्रिया,
बढ़ती आबादी की कुछ रफ़्तार कम की, शुक्रिया.
आपकी मेहमांनवाज़ी अब हमारा है धरम,
आप आये, है इनायत, आपके हम पर करम.   
एक क़त्लेआम पर ही हाय ! फांसी का हुकम,
हाय अफज़ल ! हाय मेमन !, रो रहे बेज़ार हम.
मुल्क की सरहद खुली है, आइए -----
नादिर, अब्दाली को अस्मत, सौंप दी थी,  बेहिचक,
फिर भी जो बाकी बची है, लूटकर ले जाइए.
क़त्लो-गारद आपका मज़हब, हमें भी है कुबूल, 
खून की नदियाँ बहाकर, मुल्क पर छा जाइए.      

मुल्क की सरहद खुली है, आइए ----  

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