फिराक़
गोरखपुरी से क्षमा-याचना के साथ –
बहुत
पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
संशोधित
शेर -
बहुत
पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
मुसाहिब, अपने आक़ा की महक, पहचान लेते हैं
मुसाहिब, अपने आक़ा की महक, पहचान लेते हैं
ग़रज़
कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में
संशोधित
शेर -
ग़रज़
कि काट दिए,
ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त
वो तलुए चाट के गुजरें, कि दुम हिलाने में.
वो तलुए चाट के गुजरें, कि दुम हिलाने में.
ऐ दोस्त,
हमने तर्के-मोहब्बत के बावजूद,
महसूस की है तेरी ज़रुरत, कभी, कभी.
संशोधित शेर –
ऐ दोस्त,
हमने तर्के-मोहब्बत के बावजूद,
इक नाज़नीं से पेच लड़ाए, अभी, अभी.
याद करते हैं किसी को, मगर इतना भी नहीं,
भूल जाते है किसी को, मगर ऐसा भी नहीं.
नेताजी उवाच –
अपने वादे से मुकरने का सिला दो, मगर ऐसा भी नहीं,
जूते-चप्पल से नवाज़ो, मुझे,
गोली से नहीं.
बहुत खूब लगे रहिये :)
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मेरे इकलौते कद्रदान !
जवाब देंहटाएंअब किराए के भी, पाठक नहीं मिल पाते हैं,
उनकी तारीफ़ को दिल, हाय तड़पता क्यूँ है?
एक बस, बस एक, प्रशंसक नसीब में आया,
बाक़ी हर शख्स, मुझे देख के हँसता क्यूँ है?
वाह..
जवाब देंहटाएंजबरदस्त
तोड़-मरोड़
पसंद आई
सादर
धन्यवाद यशोदाजी. फ़िराक़ गोरखपुरी के अलावा मैंने मिर्ज़ा ग़ालिब, जिगर मुरादाबादी, जोश मलिहाबादी, साहिर लुधियानवी और सबसे ज़्यादा अकबर इलाहाबादी के अशआर तोड़े-मरोड़े हैं. उन्हें किश्तों में आपकी नज़र करूँगा. इनके अतिरिक्त हिंदी के अनेक महाकवियों की भी मैंने इसी प्रकार की सेवा (?) की है.
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