सापेक्षता का सिद्धांत –
दुनिया भर में सापेक्षता के सिद्धांत की खोज का श्रेय अल्बर्ट आइन्सटीन को दिया जाता है पर यह कितने लोग जानते हैं कि इस सिद्धांत का सबसे अधिक सदुपयोग हमारे देश के नेताओं द्वारा किया जाता है.
पिछले कुछ दिनों से गो-रक्षकों के दलित-दमन चक्र के कारण देश भर में दलित वोट बैंक खिसकते देख मोदीजी ने उत्साही गो-रक्षकों को गुंडा तक कह दिया है और उनके लाठी-धर्म पर लगाम कसने का बीड़ा उठाया है.
मैंने मोदीजी के इस निश्चय का स्वागत करने के स्थान पर यह प्रश्न उठाया था कि गो-रक्षकों की गुंडागर्दी और हेकड़ी तो सबको पिछले कई साल से दिखाई दे रही थी पर मोदीजी को दलित वोट-बैंक हाथ से खिसकते देख ही इसका ज्ञान क्यूँ हुआ. मेरी अपनी राय यह थी –
‘डैमेज कंट्रोल के लिए अब बहुत देर हो चुकी है. मोदीजी को दलितों को अपनी ओर मिलाए रखने के लिए बहुत पहले ही कार्रवाही करनी चाहिए थी.’
‘केला जबहिं न चेतिया, जब ढिंग लागी बेर,
अब चेते ते का भया, जब काँटा लीन्हे घेर.’
विपक्षी दलों ने मोदीजी के उदगारों की उनके द्वारा उठाए जाने वाले सख्त क़दमों की खिल्ली उड़ाई तो मोदी-समर्थक बिफ़र गए. उन्होंने उदाहरण देकर यह दर्शाया कि कांग्रेस के राज में, समाजवादी पार्टी के राज, में इस से बड़े-बड़े, इस से भयानक-भयानक अपराध आए दिन होते रहते हैं फिर गो-रक्षकों की भोली सी गुंडागर्दी या उनके द्वारा गौशालाओं में नन्हे-नन्हे घोटालों पर इतना इतना हंगामा क्यूँ हो रहा है?
आजकल राजनीतिक दल इस आधार पर खुद को उजला साबित करते हैं कि उनके यहाँ कलंकित जन-प्रतिनिधियों का प्रतिशत अन्य राजनीतिक दलों के कलंकित जन-प्रतिनिधियों की तुलना में कम है.
कोई राजनीतिक दल अपने दल को इसलिए गाँधीवादी, विनोबावादी, लोहियावादी या जयप्रकाश नारायनवादी बताता है क्यूंकि उसके यहाँ अरबपति जन-प्रतिनिधियों का प्रतिशत अन्य राजनीतिक दलों में अरबपति जन-प्रतिनिधियों की तुलना में कम है.
मोदी-समर्थकों के तर्क में या अन्य राजनीतिक दलों के तर्कों में दम है पर मेरा उन सब से नम्र निवेदन है कि हर जगह आइन्सटीन का सापेक्षता का सिद्धांत लागू नहीं हो सकता.
मेरी कमीज़ के दाग सिर्फ इसलिए तो उजले नहीं हो जाएंगे क्यूंकि दूसरों की कमीजों के दाग मेरी कमीज़ के दागों से ज़्यादा काले हैं.
मैं चोरी करके इसलिए तो दोष-मुक्त नहीं हो जाऊँगा क्यूंकि मेरा पड़ौसी डाका डालने में पकड़ा गया है.
हो
सकता है कि मेरी बात स्वर्गीय आइन्सटीन और कुछ देशभक्तों को पसंद न आए पर मुझे
उम्मीद है कि मेरे जैसे कुछ सामान्य-बुद्धि के सामान्य जनों को इस बात में कुछ दम
अवश्य दिखाई देगा. दुनिया भर में सापेक्षता के सिद्धांत की खोज का श्रेय अल्बर्ट आइन्सटीन को दिया जाता है पर यह कितने लोग जानते हैं कि इस सिद्धांत का सबसे अधिक सदुपयोग हमारे देश के नेताओं द्वारा किया जाता है.
पिछले कुछ दिनों से गो-रक्षकों के दलित-दमन चक्र के कारण देश भर में दलित वोट बैंक खिसकते देख मोदीजी ने उत्साही गो-रक्षकों को गुंडा तक कह दिया है और उनके लाठी-धर्म पर लगाम कसने का बीड़ा उठाया है.
मैंने मोदीजी के इस निश्चय का स्वागत करने के स्थान पर यह प्रश्न उठाया था कि गो-रक्षकों की गुंडागर्दी और हेकड़ी तो सबको पिछले कई साल से दिखाई दे रही थी पर मोदीजी को दलित वोट-बैंक हाथ से खिसकते देख ही इसका ज्ञान क्यूँ हुआ. मेरी अपनी राय यह थी –
‘डैमेज कंट्रोल के लिए अब बहुत देर हो चुकी है. मोदीजी को दलितों को अपनी ओर मिलाए रखने के लिए बहुत पहले ही कार्रवाही करनी चाहिए थी.’
‘केला जबहिं न चेतिया, जब ढिंग लागी बेर,
अब चेते ते का भया, जब काँटा लीन्हे घेर.’
विपक्षी दलों ने मोदीजी के उदगारों की उनके द्वारा उठाए जाने वाले सख्त क़दमों की खिल्ली उड़ाई तो मोदी-समर्थक बिफ़र गए. उन्होंने उदाहरण देकर यह दर्शाया कि कांग्रेस के राज में, समाजवादी पार्टी के राज, में इस से बड़े-बड़े, इस से भयानक-भयानक अपराध आए दिन होते रहते हैं फिर गो-रक्षकों की भोली सी गुंडागर्दी या उनके द्वारा गौशालाओं में नन्हे-नन्हे घोटालों पर इतना इतना हंगामा क्यूँ हो रहा है?
आजकल राजनीतिक दल इस आधार पर खुद को उजला साबित करते हैं कि उनके यहाँ कलंकित जन-प्रतिनिधियों का प्रतिशत अन्य राजनीतिक दलों के कलंकित जन-प्रतिनिधियों की तुलना में कम है.
कोई राजनीतिक दल अपने दल को इसलिए गाँधीवादी, विनोबावादी, लोहियावादी या जयप्रकाश नारायनवादी बताता है क्यूंकि उसके यहाँ अरबपति जन-प्रतिनिधियों का प्रतिशत अन्य राजनीतिक दलों में अरबपति जन-प्रतिनिधियों की तुलना में कम है.
मोदी-समर्थकों के तर्क में या अन्य राजनीतिक दलों के तर्कों में दम है पर मेरा उन सब से नम्र निवेदन है कि हर जगह आइन्सटीन का सापेक्षता का सिद्धांत लागू नहीं हो सकता.
मेरी कमीज़ के दाग सिर्फ इसलिए तो उजले नहीं हो जाएंगे क्यूंकि दूसरों की कमीजों के दाग मेरी कमीज़ के दागों से ज़्यादा काले हैं.
मैं चोरी करके इसलिए तो दोष-मुक्त नहीं हो जाऊँगा क्यूंकि मेरा पड़ौसी डाका डालने में पकड़ा गया है.
सही पकड़े हैं :)
जवाब देंहटाएंपकड़े रहियेगा ।
हम तो सही पकड़े हैं पर सारे देशवासियों को जो सापेक्षता के सिद्धांत वाली मानसिकता जकड़े है उसका क्या होगा?
जवाब देंहटाएंहम तो सही पकड़े हैं पर सारे देशवासियों को जो सापेक्षता के सिद्धांत वाली मानसिकता जकड़े है उसका क्या होगा?
जवाब देंहटाएं