प्रोफ़ेसर अनिल जोशी ने
सूर्योदय अथवा सूर्यास्त की तस्वीर के साथ लिखा था -
'जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को, मिलता एक सहारा'
इसके जवाब में मैंने प्रसादजी के इस अमर गीत की पहली पंक्ति लिख दी -
'अरुण, यह मधुमय देश हमारा.'
इस पर अनिल जोशी टिप्पणी करते हैं-
'मधु तो नहीं, मय अवश्य है इस देश, सॉरी, प्रदेश में.'
वैसे अनिल जोशी हरद्वार में बने बाबा रामदेव के शुद्ध और सस्ते मधु को भूल गए हैं.
मेरा जवाब है -
'अनिल, मदिरामय देश (सॉरी, प्रदेश) तुम्हारा,
जहाँ टुन्न रहने का मद्यप, लुत्फ़ उठाता, सारा.'
एक बार इसी भाव की अपनी एक कविता -'पहाड़' मैंने पोस्ट की थी तो अनिल जोशी नाराज़ हो गए थे. पर इस बार शायद ऐसा नहीं होगा.
'जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को, मिलता एक सहारा'
इसके जवाब में मैंने प्रसादजी के इस अमर गीत की पहली पंक्ति लिख दी -
'अरुण, यह मधुमय देश हमारा.'
इस पर अनिल जोशी टिप्पणी करते हैं-
'मधु तो नहीं, मय अवश्य है इस देश, सॉरी, प्रदेश में.'
वैसे अनिल जोशी हरद्वार में बने बाबा रामदेव के शुद्ध और सस्ते मधु को भूल गए हैं.
मेरा जवाब है -
'अनिल, मदिरामय देश (सॉरी, प्रदेश) तुम्हारा,
जहाँ टुन्न रहने का मद्यप, लुत्फ़ उठाता, सारा.'
एक बार इसी भाव की अपनी एक कविता -'पहाड़' मैंने पोस्ट की थी तो अनिल जोशी नाराज़ हो गए थे. पर इस बार शायद ऐसा नहीं होगा.
कौन सी मदिरा का नशा किस को हो रहा है
जवाब देंहटाएंहर कोई पी रहा है सब को कुछ हो रहा है
हरकतें देख लीजिये जनाब हर किसी की यहाँ
शराब पीने वाला ही खाली बदनाम हो रहा है ।
शराब पीने में कोई बुराई नहीं पर शराब का दरिया बहाते रहने के लिए अपने स्वास्थ्य, अपने परिवार, अपने परिवेश, अपनी और दूसरों की नैतिकता, शालीनता आदि की ऐसी की तैसी करने में महा बुराई है. और ये बात भी सही है कि समाज में ऐसे लोग भी हैं जो शराब या किसी अन्य नशे को हाथ भी नहीं लगाते पर इंसान का खून कोल्ड ड्रिंक की तरह बिना तक़ल्लुफ़, गटागट पी लेते हैं.
जवाब देंहटाएंसच तो ये हैं कि देवभूमि में दारु देवभूमि के नाम पर कलंक का टीका है, जो कई घर परिवार उजाड़ रहा है....
जवाब देंहटाएंअल्मोड़ा में, दुगालखोला में हमारे पड़ौस में एक शराबी रहता था. उसकी पत्नी और तीनों बेटियां रोज़ उसके ज़ुल्मों का शिकार होती थीं. एक दिन अचानक बिना कोई नोटिस दिए वह मर गया. दो-तीन दिन रस्मी तौर पर मातम मनाकर सब काम पर लग गए. उस घर की छोटी बेटी, प्यारी से छह साल की गुड़िया हमारे घर नई फ्रॉक पहन कर आई. मेरी श्रीमतीजी ने तारीफ़ की तो वो बोली - आंटी जब से पापा मरे हैं, हमको खूब मज़ा आ रहा है.' आज पंजाब, उत्तर-पूर्व और देवभूमि में कितने लोग अपने ज़रा से मज़े के लिए क्या-क्या नहीं उजाड़ रहे हैं.
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