शनिवार, 3 सितंबर 2016

दिल ही तो है

‘आप’ के प्रवक्ता आशुतोष ने संदीप कुमार की विवाहेतर कामुक करतूतों को नितांत स्वाभाविक और आम बताते हुए अपने ब्लॉग में गांधीजी, नेहरूजी, लोहियाजी और अटलजी के प्रेम प्रसंगों का उल्लेख कर भारत भर में हलचल मचा दी है. अपने दोस्त को बचाने के चक्कर में आशुतोष खुद देश के सबसे बड़े खलनायक के रूप में उभर कर हम सबके सामने आ गए हैं. आशुतोष के इन विचारों से संदीप कुमार का तो कुछ भला नहीं होने वाला, अलबत्ता ‘आप‘ को ज़बर्दस्त नुक्सान पहुंचा है और साथ में यह भी स्पष्ट हो गया है कि ‘आप’ में आपसी फूट दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है.

यहाँ मैं देश की महान विभूतियों पर आशुतोष द्वारा लगाए आक्षेपों तक अपनी बात सीमित रखना चाहूँगा. विश्व इतिहास में ऐसे हज़ारों किस्से होंगे जहाँ महान विचारक, वैज्ञानिक, साहित्यकार, कलाकार, राजनीतिज्ञ, शासक आदि विवाहेतर प्रेम सम्बन्धों, यहाँ तक कि अप्राकृतिक यौन-सम्बन्धों में लिप्त रहे हों.

सुकरात, प्लेटो, एलेग्जेंडर आदि सम-लैंगिक सम्बन्धों के लिए बदनाम हैं और इसी सूची में ल्योनार्दो द विन्ची का नाम भी शामिल है. बाबर, रसखान, सरमद शहीद और फ़िराक़ गोरखपुरी भी इसी बिरादरी के थे.

अपनी कविता 'गिरा हुआ शहसवार में मैंने एक आशिक़ मिजाज़ अपदस्थ मंत्री की व्यथा को चित्रित किया है -

'वो जो दिन-रात रहा करता था, गुलज़ार कभी,
गुलो-बुलबुल का हंसी बाग़, उजड़ता क्यूँ है?
रासलीला तो रचाते हैं, हजारों नेता,
इक मेरा किस्सा ही, अख़बार में छपता क्यूँ है?'

इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ प्रथम आजन्म अविविवाहित रही और हमेशा उसके प्रेम-प्रसंग सबकी ज़ुबान पर रहे. महान विचारक और ‘सोशल कॉन्ट्रैक्ट’ रचयिता रूसो के बारे में कहा जाता था कि –
‘उसके अवैध सम्बन्धों के फलस्वरूप जन्मे बच्चे, फ्रांस के हर अनाथालय में पल रहे हैं.’

उन्नीसवीं शताब्दी में महारानी विक्टोरिया के बेंजामिन डिज़रैली के साथ छुपे प्रेम-प्रसंग की सर्वत्र चर्चा होती थी. इंग्लैंड की राजनीति के पितामह कहे जाने वाले ग्लैड्सटन बुढ़ापे तक अपने आशिक़ाना मिजाज़ के लिए बदनाम थे. एक बार चुनाव होने से पहले किसी बदनाम महिला से ग्लैड्सटन के चक्कर की खबर लेकर लोग उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदी बेंजामिन डिज़रैली के पास पहुंचे. बेंजामिन डिज़रैली ने अपने समर्थकों को यह निर्देश दिया कि चुनाव होने तक वो इस खबर को जनता तक न पहुँचने दें. समर्थकों ने हैरान होकर जब इस निर्देश का कारण पूछा तो वो बोले –
‘जनता को अगर यह खबर पता चल गई तो ग्लैड्सटन की चुनाव में जीत पक्की हो जाएगी. लोग यह मानकर उसे वोट देंगे कि बुड्ढे में अभी भी दम बाक़ी है.’

1893 में शिकागो विश्व-धर्म सम्मलेन में ऐतिहासिक भाषण देकर जब स्वामी विवेकानंद विश्व-विख्यात हो गए तो अनेक गौरांग बालाएं उनकी शिष्या बन गईं. इनमें सिस्टर निवेदिता का नाम सबको ज्ञात है. सिस्टर निवेदिता ने अपने ‘मास्टर’ के प्रति अपने प्रेम और आकर्षण को कभी नहीं छुपाया. रबीन्द्रनाथ टैगोर ने विवेकानंद-सिस्टर निवेदिता सम्बन्ध पर एक उपन्यास भी लिखा था. बालमुकुन्द गुप्त ने अपने पत्र ‘भारतमित्र’ में विवेकानंद की गौरांग शिष्याओं को लेकर ‘जोगीड़ा’ शीर्षक कविता के अंतर्गत कटाक्ष किए थे.

गांधीजी के विरोधियों ने तो उनके आचरण को सदैव अनैतिक सिद्ध करने का प्रयास किया है पर हम जैसे उनके प्रशंसक भी आँख-मूंदकर उन्हें हर बात में महात्मा नहीं कह सकते.

सब जानते हैं कि नेहरूजी और कमला नेहरू के सम्बन्ध कभी मधुर नहीं रहे और कमला नेहरू की मृत्यु के बाद तो नेहरूजी के प्रेम-सम्बन्धों के किस्सों की बाढ़ ही आ गई. हमारे पुरखे इस बात पर गर्व करते थे कि हमारा जन-नायक गवर्नर-जनरल की पत्नी को टहला रहा है और इसे वो इंग्लैंड पर हिंदुस्तान की फ़तेह के रूप में देखा करते थे. पद्मजा नायडू, राजकुमारी अमृत कौर, तारकेश्वरी सिन्हा के नाम तो नेहरूजी के साथ जोड़े ही गए थे. बाक़ी नाम मुझे याद नहीं आ रहे हैं.

अटलजी ने किसी साक्षात्कार में खुद कहा था कि वो अविवाहित तो हैं किन्तु ब्रह्मचारी नहीं हैं.

मेरा कहना फिर यही है कि निजी सेक्स-लाइफ़ को लेकर हमेशा हाय-तौबा मचाने की ज़रुरत नहीं है. हमारे अनेक देवी-देवता भी इस मामले में कोई दूध के धुले नहीं हैं.



संदीप कुमार का यह अपराध अक्षम्य है और वह इसलिए कि उसने अब तक कोई अच्छा काम किया ही नहीं है. वह तो लड़कियों को अपने जाल में फंसाकर उन का शोषण करने वाला एक ब्लैकमेलर है. आशुतोष ने उसकी तरफ़दारी कर खुद भी अपनी मिटटी पलीद की है. किन्तु आशुतोष के ब्लॉग में वर्णित महानुभावों के साहसिक अभियानों को लेकर इतना बड़ा हंगामा खड़ा करने की भी कोई आवश्यकता नहीं है.

9 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लाग बुलेटिन पर जा कर आभार तो दे कर आइये जनाब :)

    बहुत सुन्दर

    मिट्टी में नहाना
    बहुत जरूरी होता है
    एक कमल खिलाने
    के लिये पहले
    कीचड़ को धोना
    और बोना ही होता है । जय हो ।

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    1. मुझे पढ़ने वाले किसी सुशील कुमार जोशी के अलावा कम ही लोग होते हैं. 'ब्लॉग बुलेटिन' मेरी पोस्ट को अपने बुलेटिन में शामिल करे और मैं आभार न प्रकट करूँ , ऐसा कभी नहीं हो सकता.
      हमारे जन-नायक मिटटी और कीचड़ में नहाते तो रोज़ हैं लेकिन कमल खिलाने के बजाय गुल खिलाते हैं. और जब ये गुल जग-ज़ाहिर हो जाते हैं तो कुछ दिन हंगामा खड़ा हो जाता है पर बाद में फिर किसी नए गुल खिलाने की तैयारी शुरू हो जाती है.

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    2. बहुत अच्छा किया आपने ब्लाग बुलेटिन के पेज पर जाकर टिप्पणी देकर । इसी तरह ब्लागों पर आते जाते रहिये । अपनी उपस्थिति दर्ज कराइये । लोग भी आना जाना शुरु करेंगे । जो ब्लाग आपको अच्छा लगे । उसका अनुसरण करिये।

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  2. 'ब्लॉग बुलेटिन' की बुलेटिन 'प्रेम से पूर्वाग्रह तक' में मेरी पोस्ट को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद. आपके माध्यम से मेरी रचना अधिक पाठकों तक पहुँच सकेगी. आभार.

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  3. http://bulletinofblog.blogspot.in/2016/09/blog-post_3.html
    पर भी तो जाइये :)

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  4. अरे वाह! आपने तो सबका कच्चा चिट्ठा खोल दिया! वैसे दूसरी ओर यह भी सच्चाई है कि दूसरों के अवगुण गिनाने से स्वयं के अवगुण गिनती से बाहर नहीं हो जाते!
    एक संतुलित आलेख - एक संवेदनशील विषय पर!

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    1. जिस दिन हम-आप खुद को दूध का धुला मान लेंगे, हमको-आपको, दूसरों के कृत्यों पर टिप्पणी करने का अधिकार नहीं रहेगा. वैसे हमारे-आपके अवगुणों की गिनती की नौबत तो तभी आएगी जब हम-आप सेलेब्रिटी बन जाएंगे वरना कोई हमारे पाप-पुण्य का हिसाब रखने की तकलीफ़ क्यूँ उठाएगा?

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  5. तैय्यारी रखिए..
    (यानि कि खैर मनाइए)
    आप जल्द ही पाँच लिंके का आनन्द मे भी आने वाले है
    सादर

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  6. यशोदाजी, 'पांच लिंकों का आनंद' से स्थायी रूप से जुड़ने में मुझे बहुत खुशी होगी. मेरे मित्र प्रोफ़ेसर सुशील जोशी मुझसे हमेशा कहते रहे है कि तमाम ब्लॉग से जुड़ो. अब उनकी नेक सलाह की कीमत समझ में आ रही है.

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