आदरणीय राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी की पोस्ट पर उद्धरित कथा का नवीनीकरण -
नास्ति मूलमनौषधम्'
(ऐसी कोई वनस्पति है ही नहीं, जो किसी न किसी व्याधि की चिकित्सा में उपयोगी न हो.)
नास्ति मूलमनौषधम्'
(ऐसी कोई वनस्पति है ही नहीं, जो किसी न किसी व्याधि की चिकित्सा में उपयोगी न हो.)
एक कथा है कि महर्षि चरक ने अपने शिष्यों की परीक्षा लेने के लिए उन्हें
अलग-अलग दिशाओं में एक योजन (चार कोस) तक जाने के लिए कहा और निर्देश दिया
कि इस बीच ऐसी कोई वनस्पति, फूल, जड़ पत्ता और घास मिल जाए जो औषधि के रुप
में काम न सके, उसे ले आओ.
ब्रह्मचारी विभिन्न दिशाओं में गए और उनमें से अनेक ब्रह्मचारी पोटली बाँधकर कुछ वनस्पतियों को ले आए और अनेक गठरी में कुछ बाँधकर. एक विद्यार्थी खाली हाथ लौट आया किन्तु वो अपने साथ दो चारपाइयों पर चार-चार कहारों की मदद से दो लहूलुहान व्यक्तियों को ढोकर ले आया.
उस विद्यार्थी से गुरुजी ने पूछा-
''क्या तुम्हें एक योजन तक ऐसी कोई वृक्ष-वनस्पति नहीं मिली जिसका फल, फूल, पत्ता, जड़, लकड़ी, छाल और तृण औषधि के रुप में अनुपयुक्त हो?''
विद्यार्थी ने अपने हाथ जोड़कर गुरु जी को उत्तर दिया -
''गुरुदेव, ऐसी कोई वनस्पति मुझे दीखी ही नहीं जो औषधि के रुप में प्रयुक्त न हो सके. लेकिन मुझे मार्ग में आपस में एक-दूसरे का सर फोड़ते हुए ये दो भिन्न-भिन्न राजनीतिक दलों के प्रवक्ता दिखाई दिए. मैं इन्हें अपने साथ ले आया हूँ. मेरे विचार से इनकी समस्त सृष्टि में कोई भी उपयोगिता नहीं है और चूंकि ये जड़बुद्धि हैं इसलिए इनकी गणना मनुष्यों में नहीं, बल्कि वृक्ष-वनस्पति की किसी श्रेणी में ही की जानी चाहिए."
आचार्य उसका उत्तर सुनकर प्रसन्न हुए और उन्होंने उसको अपने गले लगाते हुए उससे कहा -
"तुम मेरे सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी हो"
ब्रह्मचारी विभिन्न दिशाओं में गए और उनमें से अनेक ब्रह्मचारी पोटली बाँधकर कुछ वनस्पतियों को ले आए और अनेक गठरी में कुछ बाँधकर. एक विद्यार्थी खाली हाथ लौट आया किन्तु वो अपने साथ दो चारपाइयों पर चार-चार कहारों की मदद से दो लहूलुहान व्यक्तियों को ढोकर ले आया.
उस विद्यार्थी से गुरुजी ने पूछा-
''क्या तुम्हें एक योजन तक ऐसी कोई वृक्ष-वनस्पति नहीं मिली जिसका फल, फूल, पत्ता, जड़, लकड़ी, छाल और तृण औषधि के रुप में अनुपयुक्त हो?''
विद्यार्थी ने अपने हाथ जोड़कर गुरु जी को उत्तर दिया -
''गुरुदेव, ऐसी कोई वनस्पति मुझे दीखी ही नहीं जो औषधि के रुप में प्रयुक्त न हो सके. लेकिन मुझे मार्ग में आपस में एक-दूसरे का सर फोड़ते हुए ये दो भिन्न-भिन्न राजनीतिक दलों के प्रवक्ता दिखाई दिए. मैं इन्हें अपने साथ ले आया हूँ. मेरे विचार से इनकी समस्त सृष्टि में कोई भी उपयोगिता नहीं है और चूंकि ये जड़बुद्धि हैं इसलिए इनकी गणना मनुष्यों में नहीं, बल्कि वृक्ष-वनस्पति की किसी श्रेणी में ही की जानी चाहिए."
आचार्य उसका उत्तर सुनकर प्रसन्न हुए और उन्होंने उसको अपने गले लगाते हुए उससे कहा -
"तुम मेरे सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी हो"
हा हा। उत्तराखण्ड रत्न दिलवा दूँगा इसको यहाँ भेजिये।
जवाब देंहटाएंसुशील बाबू, तुम जहाँ चाहो इसका उपयोग-प्रयोग कर सकते हो. 'उत्तराखंड रत्न' का सम्मान भले न मिले पर तुम जैसे कद्रदानों के दिल के एक कोने में थोड़ी सी जगह मिले, मेरे लिए यही काफ़ी है.
हटाएंअरे वाह्ह्ह...सत्य का दर्पण दिखाया है आपने सर।
जवाब देंहटाएंपर विडंबना ये है कि हम काम के औषधीय पौधों के वृक्षों की आहुति ऐसे बेकार लोगों के हवन में प्रयुक्त करते है।
आपके शब्द प्रहार बेहद असरदार है सर।👌👌👌
धन्यवाद श्वेता जी. 'इक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय.' कभी वो दिन भी आएगा जब हमारी औषधीय वनस्पतियाँ स्वयं हवन कर, धरती को प्रदूषित करने वाले इन महानुभावों की आहुति उसमें डालेंगीं.
हटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०९ जुलाई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति मेरा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
विशेष : हम चाहते हैं आदरणीय रोली अभिलाषा जी को उनके प्रथम पुस्तक प्रकाशन हेतु आपसभी लोकतंत्र संवाद मंच पर अपने आगमन के साथ उन्हें प्रोत्साहन व स्नेह प्रदान करें। 'एकलव्य'
धन्यवाद ध्रुव सिंह जी. 'लोकतंत्र' संवाद मंच का मैं हर सोमवार इंतज़ार करता हूँ.
हटाएंनिमंत्रण विशेष : हम चाहते हैं आदरणीय रोली अभिलाषा जी को उनके प्रथम पुस्तक ''बदलते रिश्तों का समीकरण'' के प्रकाशन हेतु आपसभी लोकतंत्र संवाद मंच पर 'सोमवार' ०९ जुलाई २०१८ को अपने आगमन के साथ उन्हें प्रोत्साहन व स्नेह प्रदान करें। सादर 'एकलव्य' https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंरोली अभिलाषा जी को को 'बदलते रिश्ते' के प्रकाशन पर बधाई! 'लोकतंत्र' संवाद मंच पर उन्हें पुनः बधाई दी जाएगी.
हटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मीनाजी.
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