मेरा मक़सद श्री गोपालदास नीरज के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक निबंध लिखना नहीं है. मैं तो उनके एक प्रशंसक (यानी कि खुद मैं) के बचपन से लेकर उसके बुढ़ापे तक की यात्रा में उनके गीतों की महत्ता का उल्लेख करना चाहता हूँ.
जब मैं क़रीब 7-8 साल की उम्र का था, तब मैंने नीरज का गीत– ‘कारवां गुज़र गया.’ सुना था. रोचक बात यह थी कि इस गीत को हमारे लिए एक सत्यकथा के रूप में प्रस्तुत किया गया था, यानी नीरज की एक प्रेमिका प्रेम-बेल पल्लवित होने से पहले ही उनसे बिछड़ जाती है, फिर उसका किसी अन्य व्यक्ति से विवाह होता है और फिर बिना पिया-मिलन के वह विधवा हो जाती है.
7-8 साल की उम्र में कविता में दी गयी कहानी को भी सत्य-कथा मान लेना कोई अजीब बात नहीं है.
मेरे बड़े भाई साहब का साहित्यिक प्रेम और नीरज के गीतों के लिए उनकी दीवानगी ने मुझे भी उस उम्र से नीरज का प्रशंसक बना दिया जब उनको समझने की मुझको तमीज ही नहीं थी.
नीरज का एक बहुत ख़ूबसूरत गीत -
‘माखनचोरी कर तूने
कुछ तो कम किया बोझ ग्वालन का
लेकिन मेरे श्याम बता
इस रीती गागर का क्या होगा
वीतराग हो गया मनुज
अब बूढ़े ईश्वर का क्या होगा.’
(इस गीत का अर्थ मुझे 1959 से लेकर 1977 तक समझ में नहीं आया था पर 1977 में हरदोई में आयोजित एक कवि सम्मलेन में सुबह 4 बजे नीरज ने इस गीत को व्याख्या के साथ ऐसे सुनाया कि वह आज तक तक मेरे दिलो-दिमाग पर छाया हुआ है)
नीरज उत्तर प्रदेश के जिले इटावा के रहने वाले थे और इटावा वालों के किसी कवि-सम्मलेन को ठुकराना उनके बस में नहीं था. 1959 से 1962 तक पिताजी की पोस्टिंग इटावा में थी. नीरज के भतीजे श्री घनश्यामदास 'नीरद' पिताजी के कोर्ट में अहलमद थे. उनके माध्यम से हमको नीरज के तमाम किस्से पता चले थे.
हमारे इटावा प्रवास के इन तीन सालों में नीरज, तीन बार वार्षिक नुमाइश के कवि-सम्मलेन में आए थे और उन्होंने ‘कारवां गुज़र गया’ गीत को गाकर सुनाया था. जिन लोगों ने फ़िल्म ‘नई उमर की नई फ़सल’ में रौशन के संगीत में मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में ही यह गीत सुना है, वो मेरी इस बात पर विश्वास नहीं कर सकते कि नीरज ख़ुद इस गीत को बेहतर धुन में और बेहतर तरीक़े से गाते थे. नीरज के स्वरों का आरोह-अवरोह का मुक़ाबला या तो फ़िराक गोरखपुरी के अंदाज़ से किया जा सकता है या फिर कैफ़ी आज़मी के.
उन दिनों नीरज गिलास या बोतल से नहीं, बल्कि बाल्टियों से शराब पिया करते थे. वैसे भी उन बेचारे को काव्य-पाठ की अपनी बारी आने का रात बारह बजे तक इंतज़ार तो करना ही होता था. काव्य-पाठ की अपनी बारी आने पर नीरज झूमते-लड़खड़ाते मंच पर आते थे, थोड़ा बहकते थे, थोड़ा भूलते थे तो कोई न कोई श्रोता उनकी अधूरी पंक्ति को पूरा कर देता था. बस, फिर वो मूड में आ जाते थे और मूड में गीत गाते हुए नीरज को सुनना एक अलौकिक आनंद का अनुभव होता था.
यह वह ज़माना था जब गोपाल सिंह नेपाली, भारत भूषण अग्रवाल, देवराज दिनेश, काका हाथरसी जैसे दिग्गज कवि-सम्मेलनों की शोभा बढ़ाते थे. लेकिन नीरज तो नीरज थे. हर कवि-सम्मलेन की जान तो नीरज ही हुआ करते थे.
नीरज की कविताओं पर मरने-मिटने वाली सुंदरियाँ कतार लगाकर उनसे मिलती थीं. हमने सुना था कि मजाज़ लखनवी के नाम पर अलीगढ़ यूनिवर्सिटी की लड़कियां पर्चियां निकाल कर यह तय करती थीं कि वो किसकी क़िस्मत में आएँगे. मजाज़ को तो मैंने देखा नहीं पर नीरज के लिए खवातीनों की कुछ ऐसी ही तड़प का मैं प्रत्यक्षदर्शी हूँ.
हिंदी-उर्दू का जैसा सुन्दर संगम नीरज के गीतों में मिलता है, वैसा अन्यत्र मिलना दुर्लभ है. हम लोगों के ये समझ में नहीं आता था कि नीरज फ़िल्मों के लिए गीत क्यों नहीं लिखते. फिर नीरज फ़िल्मों में गीत लिखने चले गए.
फ़िल्म ‘नई उमर की नई फ़सल’ का गीत – ‘आज की रात बड़ी शोख बड़ी नटखट है’ भी हमने नीरज से सुना था, उनके अपने अंदाज़ में, पर इस गीत के लिए मोहम्मद रफ़ी, आशा भोंसले और संगीतकार रौशन ने पूरा इंसाफ़ किया था –
‘पहले इन सब के लिए एक इमारत गढ़ लूं
फिर तेरी मांग सितारों से भरी जाएगी.’
ऐसा लगता है कि फैज़ की नज़्म – ‘मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग’ ने नीरज को भी बहुत प्रभावित किया था.
‘प्रेम पुजारी’ और ‘मेरा नाम जोकर’ के गीत हिंदी फ़िल्म इतिहास के सबसे स्तरीय गीत हैं.
नीरज के प्रशंसकों को कश्मीर पर लिखा उनका गीत –
‘खुशबू सी आ रही है
कहीं जाफ़रान की
खिड़की खुली हुई है
किसी के मकान की’
और
‘अब के सावन में
शरारत ये मेरे साथ हुई
मेरा घर छोड़ के
कुल शहर में बरसात हुई.’
कभी भुलाए नहीं भूलते.
नीरज के आलोचक उन पर इल्ज़ाम लगते हैं कि वो मुट्ठी भर शब्दों को बार-बार इस्तेमाल करते हैं. कितनी हास्यास्पद बात है. मेरा इन आलोचकों से सवाल है – ‘आपको सीमित व्यंजनों वाला स्वादिष्ट भोजन चाहिए या 50 व्यंजनों वाला जला-भुना या अध-कच्चा bhojanभोजन?’
नीरज के प्रेम-गीत मुख्यतः विरह काव्य की श्रेणी में आते हैं. उनका वियोगी रूप ही हमको सबसे ज़्यादा भाता है. उनके दोहों में उनका सूफ़ियाना मिजाज़ दिखाई पड़ता है तो उनके अंतिम चरण की कविताओं में हमको ओशो के दर्शन का प्रभाव दिखाई पड़ता है. लेकिन हमारे लिए नीरज प्रेम के कवि हैं, दर्द के गीतकार हैं, तड़प और कसक के शायर हैं.
जाओ नीरज तुम आसमान में जाओ ! लेकिन हमको यकीन है कि तुम वहां भी छा जाओगे और वहां भी समां बाँध दोगे. तुम हमसे दूर जा रहे हो, ये तुम्हारा वहम है. सूरदस की भाषा में हम कहेंगे –
‘बांह छुडाए जात हौ, निबल जान के मोहि,
हिरदे ते जब जाहुगे, सबल कहोंगी तोय.’
नीरज जी की कविताएं,गीत,ग़ज़ल मन मस्तिष्क पर अपनी छाप छोड़ने में कामयाब है।
जवाब देंहटाएंमुझे भी उनके गीत बहुत पसंद है।
शब्दों के मनमोहक जादू बिखरने वाले महान कवि को आपके द्वारा प्रेषित शब्दों की भावपूर्ण श्रद्धांजलि हर पाठक के मन की अभिव्यक्ति प्रतीत हो रही।
सादर नमन नीरज जी को🙏
आपका बहुत आभार।
धन्यवाद श्वेता जी. नीरज हम सबकी दिल की धडकनों को अपने गीतों में माला के मोतियों जैसा पिरोते थे. भावों का ऐसा अनूठा चित्रकार तो ऊपरवाला अपने ख़ास मूड में ही बनाता होगा.
हटाएंसुन्दर। नमन नीरज जी को। बाल्टियाँ समझ में नहीं आयी बस।
जवाब देंहटाएंतुम नीरज को पीते हुए देखते तो कहते कि - 'आपने ये क्यों नहीं लिखा को वो ड्रम से पीते थे.' लेकिन वो महान कवि थे.
हटाएंनहीं पीने वाला पीना समझाये :)
हटाएंअब मैं तो चाय और छाछ के अलावा कुछ पीता नहीं, पीने-पिलाने के बारे में चचा ग़ालिब जैसे किसी तजुर्बेकार से मालुमात हासिल करो.
हटाएंकारवां गुज़र गया ...., सचमुच गुजर ही तो गया.., नमन कविवर नीरज को । उनसे जुड़े अनमोल पल साझा करने के बहुत बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मीना जी. मुझे ऐसी विभूतियों के चले जाने पर शोक प्रकट करने की औपचारिकता स्वीकार्य नहीं है. नीरज ने भरपूर जीवन जिया और अपनी रचनाओं से हमको भरपूर आनंद दिया. उसी आनंद को मैंने अपने मित्रों के साथ भी साझा किया है.यही उनके प्रति मेरी श्रद्धांजलि है.
हटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २३ जुलाई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति मेरा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' २३ जुलाई २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीया निशा नंदिनी भारतीय जी से करवाने जा रहा है। जिसमें ३४० ब्लॉगों से ग्यारह श्रेष्ठ रचनाएं भी शामिल हैं। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
धन्यवाद ध्रुव सिंह जी. 'लोकतंत्र' संवाद मंच के माध्यम से नीरज के प्रति मेरी श्रद्धांजलि जन-जन तक पहुंचेगी. इस महान जन-कवि को शत-शत प्रणाम !
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, तेरे रंग में यूँ रंगा है - नीरज जी को श्रद्धांजलि - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मित्र ! यह मेरे लिए अत्यंत हर्ष का विषय है कि 'ब्लॉग बुलेटिन' के प्रतिष्ठित मंच के माध्यम से नीरज के प्रति मेरे उद्गार सुधी पाठकों तक पहुंचेंगे.
जवाब देंहटाएंएक युग का अंत हुआ है ...
जवाब देंहटाएंकविता की मधुरता खोई है आज ... नमन है मेरा ...
नीरज की कविताओं में भाव-पक्ष और काव्य-पक्ष दोनों ही समृद्ध थे और उनका प्रस्तुतीकरण तो बेमिसाल था.
हटाएंकवि नीरज जी के बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा. उनके गीत बहुत ही कर्णप्रिय हैं. नीरज जी को हार्दिक श्रधांजलि.
जवाब देंहटाएंयह नश्वर शरीर त्यागने के बाद भी नीरज, अपने क़लाम के ज़रिए, हमारे दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे.
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