शनिवार, 28 जुलाई 2018

ग्रहण


24 अक्टूबर, 1995 को हमने अन्धविश्वास को नकारते हुए, जलपान करने के बाद,  अल्मोड़ा के सर्किट हाउस से लगभग 93% सूर्य-ग्रहण का अविस्मर्णीय दृश्य देखा था. 
भौतिक शास्त्र के विद्वान और मेरे मित्र राजीव जोशी ने फ़ेसबुक पर चन्द्र-ग्रहण तथा सूर्य-ग्रहण से जुड़े अंध-विश्वास को तोड़ने का अभियान छेड़ा है. मैं इस प्रयास की सराहना करता हूँ.
जयद्रथ वध -
हज़ारों साल पहले भी हमारे ऋषि-मुनि सूर्य ग्रहण तथा चन्द्र ग्रहण के वैज्ञानिक कारणों को जानते थे.
श्री मैथिली शरण गुप्त के खंड काव्य 'जयद्रथ वध' का प्रसंग बड़ा रोचक है -
अर्जुन ने सूर्यास्त से पहले अभिमन्यु के हत्यारे जयद्रथ का वध करने का प्रण किया था और ऐसा न कर पाने पर उसे ख़ुद चिता में कूदकर अपने प्राण देने थे.
कौरव सेना ने जयद्रथ को सूर्य का उजाला रहने तक ऐसा छुपाया कि अर्जुन उस तक पहुँच ही नहीं पाया. फिर अँधेरा छा गया, अपने-अपने घोंसलों की और लौटते हुए पक्षी कलरव करने लगे.
सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का वध करने का अपना प्रण पूरा न कर पाने के कारण निराश अर्जुन स्वयं धधकती हुई चिता में कूदने के लिए उसकी और बढ़ने लगा. किन्तु श्री कृष्ण तब भी मुस्कुरा रहे थे.
रात होती देख छुपा हुआ जयद्रथ भी सबके सामने आ गया.
श्री कृष्ण ने आकाश की और देखा फिर यकायक अँधेरा छटने लगा, सूर्य फिर से चमकने लगा.
उस दिन पूर्ण सूर्य ग्रहण था, यह केवल श्री कृष्ण को पता था. उनको यह भी पता था कि पूर्ण सूर्य-ग्रहण के समय दिन में भी रात होने का भ्रम होता है और दिन को रात समझकर पक्षी अपने घोंसलों में वापस जाने लगते हैं. ग्रहण समाप्त होते ही सूर्य को तो फिर से चमकना ही था. श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा -
'हे पार्थ प्रण पूरा करो, देखो अभी दिन शेष है.'
फिर क्या था? अर्जुन ने तुरंत अपने गांडीव की प्रत्यंचा खींच, वाण चलाकर, जयद्रथ का वध कर दिया.

5 टिप्‍पणियां:

  1. जी,सर,
    अंधविश्वास की भावना को प्रबल बनाने में समाज में स्वयं को श्रेष्ठता का दर्जा देने वाले कुछ पोंगा विद्वानों का अहम योगदान है।

    ग्रहण एक खगोलीय घटना है। संसार के रचयिता ने प्रकृति के अद्भुत लौकिक और अनुपम चित्रकारी से धरती का श्रृंगार किया और मनुष्यों ने अपनी बौद्धिक क्षमता के आधार पर उन रंगों को परिभाषित किया।

    महाभारत का यह चिरपरिचित प्रसंग ग्रहण की महत्ता का उल्लेख करता है।
    सादर
    आभार।

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  2. धन्यवाद श्वेता जी. आपने तो ग्रहण जैसी खगोलीय घटना की काव्यात्मक और वैज्ञानिक व्याख्या कर दी.

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  3. कृष्ण जी आजकल नहीं नजर आ रहे हैं। मुस्कुराते नहीं भी तब भी दिखता तो सही अर्जुन भाई के साथ खड़े हो गा रहे हैं।

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    1. श्री कृष्ण अवश्य आएँगे और अर्जुन के सामने खड़े होकर गीता का उपदेश भी गाएंगे पर तुम्हें इसके लिए प्रतीक्षा करनी होगी. इस बार वाला कंस कुछ ज़्यादा ही शक्तिशाली है, श्री कृष्ण को उसके अनगिनत रक्तबीज टाइप समर्थकों का, और उसका वध करने के लिए ज़्यादा तैयारी करने की ज़रुरत है.

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