महामहिम भी क्या अर्थी को,
कान्धा देने आएँगे?
याद में उसके सभी तिरंगे,
कुछ दिन क्या झुक जाएंगे?
स्वर्ग-गमन के बाद उसे क्या,
भारत-रत्न दिलाएंगे?
माला फेरन के नाटक का,
क्या हम अंत कराएंगे?
कांकर-पाथर से गरीब का,
घर क्या कभी बनाएंगे?
आपस में जो लड़ते मूए,
मर्म समझ क्या पाएंगे?
ढाई आखर प्रेम का पंडित,
भला कभी पढ़ पाएंगे?
माया ठगिनी सत्यानासी,
जान कभी क्या पाएंगे?
मन्दिर-मस्जिद छोड़ आप क्या,
सांचे हिरदे आएँगे?
राम-रहीमा साथ बैठ कर,
सब में मेल कराएंगे?
धरम-दीन के नाम खून का,
दरिया नहीं बहाएंगे?
अगर नहीं कुछ ऐसा हो तो,
मगहर में मरना बेहतर.
बहुत सादगी पुर-सुकून से,
माटी में मिलना बेहतर.
नहीं जलाओ दफ़न करो मत,
उसे भुला दो तो बेहतर,
भारत के इतिहास से उसका,
नाम मिटा दो तो बेहतर.
वाह
जवाब देंहटाएं'वाह !' के लिए धन्यवाद मित्र !
जवाब देंहटाएंका कासी, का मगहर भैया
जवाब देंहटाएंएके बात, बस ता ता थैया!
जे लउकत है, से छाया है
जे बोलत हैं, से माया है।
वाह दोस्त !
हटाएंतुमने दिल ख़ुश किया !
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (14 सितंबर 2020) को '14 सितंबर यानी हिंदी-दिवस' (चर्चा अंक 3824) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
'14 सितम्बर यानी हिंदी दिवस' (चर्चा अंक - 3824) में मेरी कविता को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद मित्र !
जवाब देंहटाएंहमको-आपको-सबको हिंदी-दिवस की बधाई और शुभकामनाएँ !
तीखे कटाक्ष के साथ ललकार भरी श्रेष्ठ रचना के लिए बधाई 🌹🌹🌹
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद डॉक्टर शरद सिंह.
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंहिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।
प्रशंसा के लिए धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक !
हटाएंहिंदी दिवस की आपको भी हार्दिक बधाई !
वाह बेहतरीन रचना आदरणीय।
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद अनुराधा जी.
हटाएंमन्दिर-मस्जिद छोड़ आप क्या, सांचे हिरदे आएँगे? राम-रहीमा साथ बैठ कर, सब में मेल कराएंगे? धरम-दीन के नाम खून का, दरिया नहीं बहाएंगे
जवाब देंहटाएंवाह!!!
क्या बात....
लाजवाब सृजन।
आप ऐसी प्रशंसा करेंगी सुधा जी तो दो-चार ऐसी ही कविताओं की और रचना हो जाएगी.
हटाएंप्रशंसा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !
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जवाब देंहटाएंगोपेश जी प्रणाम, माया ठगिनी सत्यानासी, जान कभी क्या पाएंगे? मन्दिर-मस्जिद छोड़ आप क्या, सांचे हिरदे आएँगे?...आपके द्वारा उठाए गए इन प्रश्नों में जीवन का सारतत्व छिपा है...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अलकनंदा जी.
हटाएंकबीर के व्यक्तित्व और कृतित्व ने मुझको बहुत अधिक प्रभावित किया है.
कबीर की बानी अगर कोई समझ ले और उसे अपने जीवन में अपनाले तो दुनिया की उठा-पटक उसे पाप-मार्ग की ओर कभी बढ़ने नहीं देगी.