शनिवार, 12 सितंबर 2020

काशी क्यों तन तजे कबीरा

जो काशी तन तजे कबीरा, कैसे शोक मनाएंगे? 

 महामहिम भी क्या अर्थी को, कान्धा देने आएँगे? 

 याद में उसके सभी तिरंगे, कुछ दिन क्या झुक जाएंगे? 

 स्वर्ग-गमन के बाद उसे क्या, भारत-रत्न दिलाएंगे? 

 माला फेरन के नाटक का, क्या हम अंत कराएंगे? 
 
कांकर-पाथर से गरीब का, घर क्या कभी बनाएंगे? 

 आपस में जो लड़ते मूए, मर्म समझ क्या पाएंगे? 

 ढाई आखर प्रेम का पंडित, भला कभी पढ़ पाएंगे? 

 माया ठगिनी सत्यानासी, जान कभी क्या पाएंगे? 

 मन्दिर-मस्जिद छोड़ आप क्या, सांचे हिरदे आएँगे? 

 राम-रहीमा साथ बैठ कर, सब में मेल कराएंगे? 

 धरम-दीन के नाम खून का, दरिया नहीं बहाएंगे? 

 अगर नहीं कुछ ऐसा हो तो, मगहर में मरना बेहतर.

 बहुत सादगी पुर-सुकून से, माटी में मिलना बेहतर. 

नहीं जलाओ दफ़न करो मत, उसे भुला दो तो बेहतर, 

 भारत के इतिहास से उसका, नाम मिटा दो तो बेहतर.

17 टिप्‍पणियां:

  1. का कासी, का मगहर भैया
    एके बात, बस ता ता थैया!
    जे लउकत है, से छाया है
    जे बोलत हैं, से माया है।

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (14 सितंबर 2020) को '14 सितंबर यानी हिंदी-दिवस' (चर्चा अंक 3824) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव


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  3. '14 सितम्बर यानी हिंदी दिवस' (चर्चा अंक - 3824) में मेरी कविता को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद मित्र !
    हमको-आपको-सबको हिंदी-दिवस की बधाई और शुभकामनाएँ !

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  4. तीखे कटाक्ष के साथ ललकार भरी श्रेष्ठ रचना के लिए बधाई 🌹🌹🌹

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  5. बहुत सुन्दर।
    हिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।

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    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक !
      हिंदी दिवस की आपको भी हार्दिक बधाई !

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  6. वाह बेहतरीन रचना आदरणीय।

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  7. मन्दिर-मस्जिद छोड़ आप क्या, सांचे हिरदे आएँगे? राम-रहीमा साथ बैठ कर, सब में मेल कराएंगे? धरम-दीन के नाम खून का, दरिया नहीं बहाएंगे
    वाह!!!
    क्या बात....
    लाजवाब सृजन।

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    1. आप ऐसी प्रशंसा करेंगी सुधा जी तो दो-चार ऐसी ही कविताओं की और रचना हो जाएगी.
      प्रशंसा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !

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  9. गोपेश जी प्रणाम, माया ठगिनी सत्यानासी, जान कभी क्या पाएंगे? मन्दिर-मस्जिद छोड़ आप क्या, सांचे हिरदे आएँगे?...आपके द्वारा उठाए गए इन प्रश्नों में जीवन का सारतत्व छ‍िपा है...बहुत खूब

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    1. प्रशंसा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अलकनंदा जी.
      कबीर के व्यक्तित्व और कृतित्व ने मुझको बहुत अधिक प्रभावित किया है.
      कबीर की बानी अगर कोई समझ ले और उसे अपने जीवन में अपनाले तो दुनिया की उठा-पटक उसे पाप-मार्ग की ओर कभी बढ़ने नहीं देगी.

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