कलयुगी सुदामा : मित्र ! मुझे दो लाख रूपये दे दो. अगर मुझे ये रकम नहीं मिली तो तुम समझ
लेना कि तुम्हारा दोस्त मर गया !
कलयुगी श्री कृष्ण : मित्र ! तुम किस से बात कर रहे हो? मैं तो तुमसे भी पहले मर चुका हूँ.
सन्दर्भ :
रहिमन वे नर मर चुके जो कहुं मांगन जाहिंं
उन ते पहले वे मुए जिन मुख निकसत नाहिं
सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हटाएंदो लाख रुपये दे दो।
जवाब देंहटाएंतुम हमारी जान भी ले सकते हो मित्र !
हटाएंलाख टके की बात ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अमृता जी.
हटाएंरहीम के ज़माने में लाख टका तो हीरे का मोल हुआ करता था.
आदरणीय गोपेश जी , कलयुगी मित्रों को ज्ञात है कि वे जिससे मांगने आये हैं उसके यहाँ बहुत माल दबा पड़ा है | पर मालदार कहता है ,मेरा माल भले कुत्ता खा जाए पर मंगते दोस्त क्यों दूँ जिससे वापिसी की कोई उम्मीद नहीं ? यही है कलयुगी दोस्ती और मैत्री व्यवहार |
जवाब देंहटाएंरेणु जी,
हटाएंकलयुगी मित्र मुसीबत में साथ देने के लिए नहीं होते हैं बल्कि नित नई-नई मुसीबतें पैदा करने के लिए होते हैं -
दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिए
अच्छा बहाना दे गए रहीम जी उधार माँगनेवालों को मना करने का....
जवाब देंहटाएं"भाई मैं तो तुमसे पहले ही मर चुका हूँ, विश्वास ना हो तो रहीमजी का ये दोहा पढ़ लो"
मीना जी, रहीम के दोहे बड़े काम के हैं वैसे मैंने आज की सियासती उठापटक के मद्देनज़र उनके कई दोहों को नए सांचे में ढाला भी है.
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