शनिवार, 26 सितंबर 2020

धीरज की परीक्षा

 सेठ जी (अपनी धर्मपत्नी से) : प्रिये ! इस लॉकडाउन में मेरा धंधा बिलकुल चौपट हो गया है. मुझे अपने धंधे को फिर से पटरी पर लाने लिए पचास लाख रुपयों की सख्त ज़रुरत है.

तुम्हारे अकाउंट में तो दो करोड़ रूपये फ़ालतू पड़े हैं. तुम अगर पचास लाख रुपयों की मदद कर दो तो मैं बर्बाद होने से बच जाऊंगा.
गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है -
धीरज धर्म मित्र अरु नारी।
आपद काल परिखिअहिं चारी॥
तुम तो धार्मिक भी हो. मेरी मित्र भी हो और एक महान नारी तो हो ही.

मुझे विश्वास है कि तुम मेरे इस आपद काल में मेरी मदद कर के तुलसीदास जी की इस कसौटी पर खरी उतरोगी.

धर्मपत्नी : प्राणनाथ ! तुलसीदास जी ने धर्म, मित्र और नारी से पहले 'धीरज' का उल्लेख किया है.
आप आपदकाल के समय - धर्म, मित्र और नारी को परखना भूल जाइए और केवल अपने धीरज को परखिए.
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11 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी व्यंग्यात्मक पोस्ट को 'स्वच्छ भारत समृद्ध भारत' (चर्चा अंक - 3837) में सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' !

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  2. भाभी जी ने ऐसा तो नहीं कहना चाहिये था नहीं देती कोई बात नहीं थी :)

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  3. ख़ुदा जब माल देता है, कंजूसी आ ही जाती है.

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  4. वाह! आदरणीय सर आपने भविष्य को अंकित किया है आज तो नहीं परंतु आने वाला समय शायद कुछ ऐसा ही कहेगा ।
    बेहतरीन आपकी क़लम बोलती है।
    सादर

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  5. अनीता, ऐसा ज़माना आ चुका है. आत्मकेंद्रित होना आज व्यावहारिक माना जाता है. अब मुसीबत में तो अपना साया भी साथ छोड़ देता है फिर पत्नी या पति अगर ऐसा करे तो क्या आश्चर्य !

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  6. सत्य कहा सर ! पैसे के साथ कंजूसी आ ही जाती है ।

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    1. मीना जी, यहाँ अपना हाल कुछ दूसरी तरह का है. पैसा आए या न आए, अपनी कंजूसी क़ायम है.

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  7. आदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल जी, नमस्ते 👏! आपकी यह लघुकथा बहुत कुछ अनकहे भी कह रही है। लघुकथा के मानकों पर खरी उतरती है। साधुवाद!--ब्रजेन्द्रनाथ
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    सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ

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    उत्तर
    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद ब्रजेन्द्रनाथ जी !
      मैं आपकी रचनाओं का आनंद समय मिलते ही मैं अवश्य लूँगा. इधर कुछ ज़्यादा ही व्यस्त हूँ.

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