बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

दौरे-जवानी

दौरे-जवानी -
ठीक-ठाक घर में रहने का सुख तब मिला जब बच्चे बाहर सेटल हो गए, कार तब आई जब उसकी सवारी करने के लिए सिर्फ हम पति-पत्नी रह गए. भारत भ्रमण और एकाद बार विदेश भ्रमण करने की औक़ात तब हुई है जब कि सफ़र (उर्दू का) करना सफ़रिंग में तब्दील हो गया है . कहते हैं कि इतिहास (उर्दू में तारीख़) खुद को दोहराता है. लेकिन इसको ग़लत बताते हुए एक शायर कहता है –
‘झूठ है कि तारीख़ हमेशा, अपने को दोहराती है,
अच्छा मेरा दौरे जवानी, थोड़ा सा दोहराए तो.’

आज से दस दिन बाद, दो दिन के लिए लखनऊ जा रहा हूँ. वहां मौक़ा मिला तो नक्खास (कबाड़ का सबसे बड़ा बाज़ार) जाकर एच. जी. वेल्स की किसी टाइम मशीन को खोजने की कोशिश करूँगा. उसकी मदद से शायद मेरा दौरे-जवानी वापस आ जाए.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें