गुनाहों का देवता –
धर्मवीर भारती का उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ हिंदी साहित्य
का अब तक का सबसे रूमानी उपन्यास है. इस उपन्यास को पढ़कर न जाने कितनों ने रोमांस
करना सीखा होगा. आश्चर्य की बात है कि इस उपन्यास पर अब तक कोई फ़िल्म नहीं बनी है.
रोमांटिक फ़िल्में बनाने के लिए विख्यात स्वर्गीय यश चोपड़ा से तो हमको यह आशा अवश्य
थी कि वो इस पर कोई फ़िल्म बनायेंगे पर पता नहीं क्यूँ यशजी ने इस पर फ़िल्म बनाने
का विचार ही नहीं किया.
सन साठ के दशक में एक सफल फ़िल्म निर्माता, धर्मवीर भारती के
पास ‘गुनाहों का देवता’ पर फ़िल्म बनाने का प्रस्ताव लेकर पहुंचे. वो इसके लिए भारतीजी
को एक मोटी रकम देने के लिए भी तैयार थे. भारतीजी ने हामी भरने से पहले पूछ लिया –
‘आपने अब तक कौन-कौन सी फ़िल्में बनाई हैं?’
फ़िल्म निर्माता ने जवाब दिया –
‘अजी, बड़ी हिट फ़िल्में बनाई हैं. आपने ‘काली टोपी लाल
रूमाल’ फ़िल्म तो देखी होगी. वो इस खाकसार ने ही बनाई है.’
भारतीजी ने उन फ़िल्म निर्माता से आगे कोई बात ही नहीं की.
लेकिन किस्सा यहाँ ख़त्म नहीं हुआ. उन फ़िल्म निर्माता ने ‘गुनाहों का देवता’ नाम से
फ़िल्म बनाई जिसमें उन्होंने जीतेंद्र और राज श्री जैसे महान कलाकारों को लिया था.
फ़िल्म के टाइटल से भ्रमित होकर पता नहीं कितने अभागे इस फ़िल्म को देखने पहुँच गए
थे.
‘गुनाहों का देवता’ की कहानी पर अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी
को लेकर ‘एक था चंदर, एक थी सुधा’ फ़िल्म की कुछ शूटिंग इलाहाबाद में हुई भी थी पर
दुर्भाग्य से यह फ़िल्म पूरी नहीं बन पाई.
आज गुलज़ार या उनकी जैसी समझ वाला कोई निर्माता, निर्देशक इस
महान उपन्यास पर ईमानदारी से फ़िल्म बनाये तो मारधाड़, फूहड़ रोमांस और बे सिर-पैर की
कामेडी पर बनी फ़िल्मों से फैला प्रदूषण कुछ कम हो सकता है.
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