नपुंसक कौन?
अल्मोड़ा में, हमारे पड़ौस में एक परिवार रहता था. अंकल, आंटी
और उनके दो बेटे. बड़ा बेटा जो कि काफ़ी शरीफ और तमीज़दार था, वो किसी संस्थान में
क्लर्क था और छोटे गंजेड़ी, भंगेड़ी साहबज़ादे परम निखट्टू थे. अंकल आंटी की एक बेटी
थी, जो कि अमेरिका में सेटल थी. बड़े बेटे की शादी हो चुकी थी लेकिन आंटी के
विस्तृत वृतांत के अनुसार उनकी बहू का शादी से पहले ही किसी से अफ़ेयर था, इसलिए वो
उनके सोने जैसे सपूत को हमेशा के लिए छोड़कर चली गयी थी और जाते-जाते उन्हें दो लाख
रुपयों की चोट भी पहुंचा गयी थी.
हमारे कुछ और पड़ौसी दबी-दबी ज़ुबान में इस सोने जैसे सपूत को
नपुंसक बताते थे. अंकल-आंटी के पड़ौसियों के अनुसार इस बहू द्वारा अपनी ससुराल
वालों को चोट पहुँचाने की बात सही थी लेकिन इसको वह आउट ऑफ़ कोर्ट सेटलमेंट बताते
थे जो कि अंकल-आंटी की अमेरिका वासी बेटी ने बहू के घर वालों को दो लाख रूपये देकर
कराया था. आंटी अक्सर अपने लड़के के बारे में झूठी अफवाहें उड़ाने वालों से हम लोगों
को सावधान करती रहती थीं पर मुझे पड़ौसियों की इस कहानी में दम दिखाई देता था .
अंकल-आंटी के बड़े सपूत थे ही ऐसे ही-मैन. तीस-पैंतीस किलो का यह बांका नौजवान अपने
संस्थान से लौटते समय अपना छोटा सा बैग भी ऐसे कराहते और हाँफ़ते हुए लाता था जैसे
वह कोई पहाड़ उठाकर ला रहा हो. बेचारी आंटी अपने सपूत को नाश्ते में रोजाना एक
दर्जन बादाम घिसकर खिलाती थी, मलाईदार दूध भी देती थी पर भैयाजी सूखे छुआरे के
सूखे छुआरे ही रहे आए, उनकी सेहत में कभी भी कोई सुधार नहीं हो पाया.
अंकल अपने बड़े बेटे की दूसरी शादी कराने के मामले में
बिलकुल उदासीन थे पर आंटी अपने कमाऊ सपूत का घर दुबारा बसाने के लिए जी-जान से कोशिश
कर रही थीं. पहली बहू से ठोकर और धोखा खा चुकी आंटी इस बार किसी सुकन्या को बिना-दान
दहेज़ के अपनी बहू बनाने को तैयार थीं. आख़िर उनकी कोशिश रंग लाई और उनके सपूत की
दुबारा शादी हो गयी. हम बरात में तो नहीं गए पर हमने भी नयी बहू के शुभागमन पर दी जाने
वाली दावत का लुत्फ़ उठाया. नयी बहू सुन्दर, बहुत ही ज़िन्दा दिल और मिलनसार थी.
अपनी सासू माँ के लाख रोकने पर भी वो रोज़ाना हमारे घर आ जाया करती थी. मेरी
श्रीमतीजी की तो वह मुंह-बोली भतीजी बन गयी थी. पर कुछ दिनों बाद नयी बहू का हमारे
घर आना बंद हो गया यहाँ तक कि वो अपने घर से बाहर भी दिखाई नहीं पडी. मेरी
श्रीमतीजी ने आंटी से इस बदलाव का कारण पूछा तो उन्होंने टालमटोल जवाब देकर बात
ख़त्म कर दी. अब आए दिन अंकल-आंटी के घर से रोने-चिल्लाने की आवाज़ें भी आने लगीं.
मोहल्ले में अफ़वाह का बाज़ार फिर गर्म हुआ कि नयी बहू भी पुरानी बहू की तरह अपने
नपुंसक पति को छोड़कर अपने मायके वापस जाना चाहती है.
एक दिन रोती-चीखती नयी बहू भागकर हमारे घर आ गयी और मेरी
श्रीमतीजी से प्रार्थना करने लगी कि वो मुझसे कहकर उसे उसके मायके भिजवा दे. नयी
बहू ने अपने पति को नपुंसक तो बताया ही, साथ ही साथ आंटी पर उसने यह भी इल्ज़ाम
लगाया कि वो चाहती हैं कि वह (नयी बहू) अपने देवर से सम्बन्ध स्थापित कर ले और उनके
बड़े बेटे की नपुंसकता की बात किसी से नहीं कहे. इस प्रस्ताव का विरोध करने पर उसको
घर में ही क़ैद होने के अलावा अपनी सास और देवर की रोज़ाना मार भी खानी पड़ रही थी. रहम
दिल ससुर की बदौलत उसे रूखा-सूखा खाना ज़रूर मिल रहा था पर वो भी मार-पीट की डोज़
खाने के बाद.
अब तक आंटी हमारे घर आकर मुझे और मेरी श्रीमतीजी को डांटने-फटकारने
के लिए पहुँच चुकी थीं. उनका धमकी भरा सन्देश था कि हम परदेसी लोग उनके घरेलू
मामले में कोई टांग न अड़ाएं और चुपचाप उनकी कुल्टा बहू को उनके हवाले कर दें.
बेचारी बहू के चेहरे से खून बहता देखकर मैं आग-बबूला होकर आंटी का हुक्म मानने से
इंकार कर रहा था. हल्ला सुनकर कई पड़ौसी भी जमा हो गए थे जिन में से दो-चार मुझसे
आंटी की बात मान लेने के लिए मुझ पर ज़ोर भी दे रहे थे. मैंने उनसे दृढ़ता से कहा –
‘ये लड़की इन ज़ालिम लोगों से अपनी जान बचाकर मेरे घर आई है
अब तो मैं पुलिस बुलाकर ही इस मामले का निबटारा करवाऊंगा. ये लोग इसकी मर्ज़ी के
बगैर इसे ज़बरदस्ती अपने घर नहीं रख सकते हैं.’
पुलिस बुलाने की मेरी धमकी कारगर रही. मेरे विरोधियों की
भीड़ छटने लगी और मुझे धमकी देने वाली आंटी अब मेरे हाथ-पैर जोड़ने लगीं. पुलिस नहीं
बुलाई गयी लेकिन आंटी और उनका छोटा सपूत नयी बहू की इच्छानुसार अल्मोड़ा में ही रह
रहे उसके किसी रिश्तेदार के यहाँ उसे भेजने को तैयार हो गए. फ़ोन किये जाने के एक
घंटे ही बाद नयी बहू के रिश्तेदार आकर उसे अपने घर ले गए.
इस दुखद अध्याय का अंत पिछली कहानी की ही तरह हुआ.
अंकल-आंटी की अमेरिका वासी सुपुत्री ने अल्मोड़ा आकर अपनी इस नयी भाभी के घर वालों
को भी पहली भाभी के घर वालों की तरह ही एक मोटी सी रकम देकर मामला रफा-दफ़ा कराया.
इस प्रसंग के बाद मैं मोहल्ले का नायक और खलनायक दोनों ही
एक साथ बन गया. मेरी श्रीमतीजी को भी अपने टांग-अड़ाऊ पतिदेव के खिलाफ़ काफ़ी कुछ
सुनना पड़ा. उस भोली सी, मासूम सी, निरीह लड़की की आँखों में कृतज्ञता का भाव देखकर मुझे
यही लगा कि मैंने कोई गुनाह नहीं किया.
इस घटना के बाद आंटी ने अपने ही-मैन पुत्र की तीसरी शादी
करने की फिर कोई कोशिश नहीं की.
इस प्रसंग से यह तो सिद्ध हो गया कि अंकल-आंटी का बड़ा सपूत
नपुंसक था. पर मेरा अपने पाठकों से और समाज से एक प्रश्न है –
‘क्या शारीरिक दृष्टि से असमर्थ वह लड़का ही नपुंसक था? अपनी बहू की बेबसी पर तरस खाने वाले लेकिन पूर्णतया निष्क्रिय अंकल को, दुष्ट आंटी का
समर्थन करने वालों को और मेरा विरोध करने वाले समाज के गण्यमान नागरिकों को भी मैं नपुंसक
न कहूं तो और क्या कहूं?’
गहरा शब्द है नपुंसक पर कौन कौन है बड़ी दुविधा है कहाँ से शुरु किया जाये ?
जवाब देंहटाएंशारीरिक नपुंसकता को दूर कर पाना शायद ही किसी के बस की बात है पर हम अंतर्मन की नपुंसकता और अपनी सामाजिक अथवा राजनीतिक नपुंसकता का इलाज तो खुद ही कर सकते हैं.
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन देश की पहली मिसाइल 'पृथ्वी' और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सेंगरजी. आपकी पत्रिका के माध्यम से मेरे विचार यदि जनता-जनार्दन तक पहुँच रहे हैं तो मेरे लिए इससे ज्यादा ख़ुशी की बात और क्या हो सकती है?
हटाएंमेडिकल साइंस के अनुसार कोई भी स्त्री या पुरुष लगभग 5 से 7 मिनट में संभोग संबंध हो की चरण स्थित को प्राप्त कर सकता है परंतु अगर केवल महिला की बात की जाए तो महिलाएं लगभग 25 से 30 मिनट का समय लेती है।वास्तव में यह सभी बातें संभोग की पोजीशन और एक्टिविटी पर निर्भर करती है।
जवाब देंहटाएंमहिला कितनी देर में चढ़ती है
इस महत्वपूर्ण जानकारी को साझा करने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंओम्नी आयुर्वेदा Ayurvedic Energy Booster Capsules और विभिन्न प्रकार के आयुर्वेदिक उत्पादों की पेशेवरता करता है। अधिक जानकारी के लिए, इस लिंक पर जांच कर सकते हैं।
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