रविवार, 14 सितंबर 2014

हिन्दी दिवस


सूर की राधा दुखी, तुलसी की सीता रो रही है  ।
शोर डिस्को का मचा है, किन्तु मीरा सो रही है ।
सभ्यता पश्चिम की, विष के बीज कैसे बो रही है ,
आज अपने देश में, हिन्दी प्रतिष्ठा खो रही है ।।

आज मां अपने ही बेटों में, अपरिचित हो रही है ।
बोझ इस अपमान का, किस शाप से वह ढो रही है ।
सिर्फ इंग्लिश के सहारे भाग्य बनता है यहां ,
देश तो आज़ाद  है, फिर क्यूं ग़ुलामी हो रही है ।।