शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

साहिर की नज़्म - ये किसका लहू है, कौन मरा' से आगे

कल कितने मरे,
परसों कितने,
और आज कहाँ की बारी है,
कालीन पड़े, दरियां हैं बिछी,
मातम की सब तैयारी है.
भाषण भी होने वाले हैं,
नारे भी लगने वाले हैं,
मरने वाले की झुग्गी में,
मंत्री जी आने वाले हैं.
इम्दाद बंटेगी, लाखों की,
कुछ घर भी, बनाए जाएँगे,
बेवाओं और यतीमों संग,
फ़ोटो भी, खिंचाए जाएँगे.
है हाथ, विदेशी ताक़त का,
या क़हर, विपक्षी साज़िश का,
सरकार का कोई दोष नहीं,
मुस्तैद पुलिस, मदहोश नहीं,
जो हुआ, बहुत ही बुरा हुआ,
इसे भूल के, आगे बढ़ना है,
कुछ अनजाने चेहरे, खोजो,
सब दोष, उन्हीं पर, मढ़ना है.

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

आता है याद मुझको



बुढ़ापे में याददाश्त जवाब देने लगती है. 36 साल से भी ज़्यादा वक़्त तक इतिहास पढ़ाने वाले मुझ जैसे शख्स को यह भी ठीक से याद नहीं आ  रहा है कि दिल्ली में क़त्ले-आम 1739 में हुआ था या 1947-48 में या 1984 में या फिर -----!
लेकिन एक क़िस्सा मुझे आज भी बखूबी याद है -
दिल्ली के बाशिंदों की गुस्ताख़ी देख कर नादिरशाह ने गुस्से में पागल होकर अपनी फ़ौज को दिल्ली में क़त्लेआम का हुक्म दे दिया और वह ख़ुद सुनहरी मस्जिद के ऊपर चढ़ कर देखने लगा कि दिल्ली में खून की नदी बह रही है कि नहीं.
मुग़ल बादशाह मुहम्मदशाह (रंगीला) लाल किले में एक क़ैदी की तरह रहने को मजबूर था और किसी दूसरे की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह नादिरशाह के सामने भी आ सके.
तभी बादशाह का वज़ीर नादिरशाह के सामने पंहुचा और उसने उसे अमीर खुसरो का एक शेर सुनाया -
कसे न माद कि दीगर ब तेगे नाज़ कुशी,
मगर कि ज़िन्दा कुनी ख़ल्करा व बाज़ कुशी.
(तेरी नजर की तलवार ने सब का शिकार कर लिया , तेरे गुस्से के क़हर से कोई बचा ही नहीं!
अब अपनी नज़रे-इनायत से तू सबको ज़िन्दा कर दे ताकि उन्हें दोबारा फिर मारा जा सके.)
शेर का असर हुआ और जादू जैसा हुआ.
नादिरशाह ने हुक्म दिया कि क़त्लेआम बन्द किया जाय.

बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

सुलग रही क्यूं दिल्ली, फिर-फिर?


कबीर ! तू आज फिर से बहुत याद आ रहा
है !
और
साहिर ! तूने क्या अपनी नज़्म -
'जिन्हें नाज़ है हिन्द पर, वो कहाँ हैं?'
आज लिखी है?
आख़िर में कबीर की बात - 'मरम न कोई जाना'
पर नेता जी का जवाब -
धर्म-मज़हब का मरम, मैंने भले, जाना न हो,
पर सबक़ – ‘कुर्सी-मरम’, मुझको ज़ुबानी याद है.

शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

दोहावली


निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय.
कबीर
दिल्ली-चुनाव का सबक़ -
निंदक नियरे राखिए, आँगन, कुटी छवाय,
मुख से उगले जहर जब, वोट-बैंक बढ़ि जाय
करता था सो क्यों किया, अब कर क्यों पछिताय,
बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से खाय.
कबीर
संशोधित दोहा -
बोएं पेड़ बबूल के, निस-दिन आम उड़ायं,
जनता की खोदें कबर, जन-सेवक कहलायं.
और एक अपना दोहा -
सदा ट्रम्प को होत है, पत्तन में सत्कार,

स्लम के आगे उठ गयी, अब ऊंची दीवार.

शनिवार, 15 फ़रवरी 2020

बिछड़े सभी बारी-बारी


(1)
मंत्री सुखराम जी – अरे रहने दे गिरधारी ! कब तक पैर दबाएगा?
गिरधारी – मालिक हमको पता है कि पीते ही आपको सुस्ती चढ़ती है और बदन दर्द करने लगता है. उस बखत हमारा चम्पी करना और पैर दबाना आपको कितना चैन देता है, क्या हम जानते नहीं हैं?
सुखराम जी – पहले तो तू हमारे उस दुश्मन अंगनेलाल का खासमखास था. क्या उसके भी ऐसे ही पैर दबाता था?
गिरधारी – राम ! राम ! किस मनहूस का नाम ले लिया आपने मालिक ! अब तो रात का खाना भी नसीब नहीं होगा.
सुखराम जी – तो तेरे हिस्से का मुर्ग-मुसल्लम क्या नौकर-चाकरों में बंटवा दूं?
गिरधारी – हें ! हें ! हें ! हुजूर ! आपके घर का तो मैं जहर तक न छोडूं और फिर मुर्ग-मुसल्लम में तो अमृत होता है.
सुखराम जी – बातें बनाने में तो तू उस्ताद है. अच्छा ये बता तूने उस बंदर अंगनेलाल को गच्चा क्यों दिया था?
गिरधारी – हुजूर, उस पाजी के यहाँ मेरी आत्मा बड़ी बेचैन रहती थी. बड़ा घपलेबाज़ था वो. और ऐसा दारूबाज़ कि --
सुखराम जी – घपले तो बर्खुरदार हम भी करते हैं और सुरा-सुन्दरी में तो हमारे प्राण बसते हैं.
गिरधारी – आप तो राजा इन्दर हो ! आप अपनी इन्दर सभा में जो जी चाहे करें, उस टुटपुन्जिए की आपके सामने क्या औक़ात !
सुख राम जी – ऐसी बात है तो फिर निकाल इसी बात पर हमारी हल्का-हल्का सुरूर वाली शैम्पैन !
गिरधारी – जरूर अन्नदाता ! लेकिन थोड़ा चरनामृत हमको भी मिल जाता तो बड़ी किरपा होती.
सुखराम जी – ले भई, तू भी ले ! चीयर्स !
गिरधारी – वो क्या कहते हैं हुजूर, चेयर्स !   
(2)    
सुखराम जी – गिरधारी ! इलेक्शन सर पर आ गया है और तू है कि हाथ पर हाथ धरे बैठा है !
गिरधारी – हुजूर, गिरधारी का काम दिखाई नहीं देता पर सही बखत पर उसका डंका दुस्मन के कानों में बजता जरूर है.
सुखराम जी – तुझको तीस लाख दिए थे उनका क्या किया तूने?
गिरधारी – उस बेनी प्रसाद के एक दर्जन आदमी खरीद लिए हैं और हाँ, सौ बच्चे पिछले एक महीने से –
जीतेगा, भई जीतेगा, सुक्खी भैया जीतेगा !
और
गली-गली में सोर है, बेनी साला चोर है !
पूरे सहर में घूम—घूम कर चिल्ला रहे हैं. आपने तो सुना होगा.
सुखराम जी – अरे भई शोर होता है सोर नहीं ! 
वैसे तेरा काटा तो पानी भी नहीं मांगता. अच्छा ये बता, तू कहीं हमको भी उस तरह तो नहीं काटेगा जैसे कि तूने अंगनेलाल को काटा था?
गिरधारी – सीना चीर के दिखा सकता हूँ मालिक ! उसके अन्दर आपकी ही छबि होगी. मेरी भक्ती की कहानी तो हुजूर अब तक बच्चों की किताबों में आ जानी चाहिए थी.
सुखराम जी – वाह रे मेरे हनुमान जी !
गिरधारी – आप ही हो मेरे जय श्री राम !
(3)
सुख राम जी – गिरधारी ! बेनी प्रसाद के कैंप की क्या खबर है?
गिरधारी – उसके अड्डे में तो हुजूर मातम पसरा है. रोज़ उसका कोई न कोई बन्दा उसे छोड़कर हमारी सेना में आ रहा है. अब तो चूहे तक उसका घर छोड़कर जाने लगे हैं.
सुखराम जी – हट झूठे ! उसकी जन-सभाओं में तो हज़ारों की भीड़ जुटती है.
गिरधारी – उनमें आधे तो हमारे आदमी होते हैं जो इस मौके की फिराक में रहते हैं कि कब उसकी मीटिंग में पथराव किया जाए और कब कोई धमाका !
सुखराम जी – देख भाई ! कैसी भी हिंसा हो, हमारा नाम नहीं आना चाहिए.
गिरधारी – मेरे रहते आपके नाम पर कभी आंच नहीं आ सकती.
सुखराम जी – तेरे जैसे वफ़ादार हों तो फिर हमारी जीत तो पक्की ही है.
गिरधारी – जीत तो सवा सोलह आने पक्की मालिक ! पर ज़रा लठैतों और कट्टेबाज़ों की रसद-पानी के लिए बीस-पच्चीस लाख और मिल जाता ---
सुखराम जी – रसद-पानी में बोतलें भी तो शामिल होंगी?
गिरधारी – हुजूर बोतलें ही तो उनकी गाड़ियों का डीजल-पेट्रोल हैं. ससुरे बिना दारू पिए कोई गलत काम करते ही नहीं हैं.
सुखराम जी – मुबारकपुर की हमारी कल की रैली में भीड़ बहुत कम थी. तूने तो भीड़ इकठ्ठा करने के लिए अपने आदमियों को पैसे भी दिए थे.
गिरधारी – मुबारकपुर में कल दो-तीन मौतें एक साथ हो गई थीं. लोगबाग़ मातमपुर्सी में चले गए थे. आज स्यामनगर में भीड़ का आप जलवा देखिएगा.
सुखराम जी – तू आज श्यामनगर में हादसों को पकड़कर रखना. अगर आज की रैली में भीड़ नहीं जुटी तो फिर तेरी मौत पक्की !
गिरधारी – हें ! हें ! हें ! राम जी के हाथों मारा जाऊंगा तो स्वर्ग ही तो मिलेगा न हुजूर !
(4)
सुखराम जी की धर्मपत्नी कमला देवी – सुनो जी, तुम अपने इस गिरधारी पर बिल्कुल भरोसा मत करना. हमारा छुटका भैया केसू बता रहा था कि इस ससुरे गिरधारी को बेनी प्रसाद ने खरीद लिया है. इस घर के भेदी ने तुम्हारी लंका न ढाई तो कहना !
सुखराम जी – तुम्हारा छुटका भैया केसू चार बार हमको दगा दे चुका है. हमने तो तय कर लिया है कि वो जिसकी भी बुराई करेगा हम उसे अपने नव-रत्नों में शामिल कर लेंगे.  
कमला देवी जी – पछताओगे मंत्री जी ! अगर ऐसे ही विभीषणों पर विश्वास करते रहोगे तो जल्दी ही तुम मंत्री से मुख्यमंत्री तो नहीं, पर संतरी ज़रूर बन जाओगे.
सुखराम जी –
हम को मिटा सके, ये ज़माने में दम नहीं,
हमसे ज़माना ख़ुद है, ज़माने से हम नहीं.
कमला देवी – तुम तो खुदा से भी दो-चार मंजिल ऊपर पहुँच गए हो. इतनी ऊंचाई से जब औंधे मुंह गिरोगे तो हमसे कहोगे –
तुम्हारा छुटका भैया केसू सही कह रहा था.
सुखराम जी – नामुमकिन ! अच्छा चलो शर्त बदते हैं. अगर हम हारे तो तुम्हारा डायमंड सेट पक्का !
कमला देवी – हारने के चार दिन बाद ही तुम जेल में होगे और फिर मुक़द्दमेबाज़ी में तुम्हारा इतना खर्च होगा कि तुम हमको फूलों का एक गजरा भी दिलाने के क़ाबिल नहीं बचोगे.
सुखराम जी – हे भगवान ! ये बेनी प्रसाद की एजेंट को ही तुम्हें हमारी धर्मपत्नी बनाना था?
(5)
सुखराम जी – गिरधारी आज काउंटिंग है. मेरा तो दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा है. तू सच-सच बताना, मैं कहीं हार तो नहीं जाऊंगा?
गिरधारी – मालिक सूरज भले पच्छिम से उग सकता है पर आप हार नहीं सकते. अपना हिसाब पक्का है. आप पचपन हजार वोटों से उस बेनिया को पटकनी देंगे. आप तो अभी से जसन मनाने के लिए बोतल खोल लो.
सुखराम – अच्छा, अच्छा ! अब चुपचाप बैठ !
अरे ! पहले रुझान में तो मैं 100 वोटों से पिछड़ रहा हूँ.
गिरधारी – मालिक ये तो डाक वाले वोट हैं. अब परदेसियों से आप काहे को अंखिया लड़ाएँगे?
सुखराम जी – हाय ! अब तो उस बेनिए के बच्चे की लीड 500 की हो गयी.
गिरधारी – वही डाक वाला वोट ! करीब दो हजार तो होता ही है मालिक. आप काहे को जी हल्का कर रहे हैं? अगले दौर से ही आपकी जीत का डंका बजने लगेगा.
सुखराम जी – ले बज गया जीत का डंका ! वो बेनिया 2500 वोटों से आगे निकल गया.
गिरधारी – हेलो ! भूपिंदर किस एरिया की काउंटिंग चल रही है? क्या कहा उस्मानपुर की? तब तो ठीक है !
उस्मानपुर तो हुजूर के दुस्मनों का एरिया है. स्यामनगर में तो हम उस बेनिया को आठ-दस हजार वोट से पछाड़ेंगे.
सुखराम जी – भाड़ में गया तेरा उस्मानपुर और श्यामनगर ! कमबख्त ! अब उस गधे की लीड बीस हजार की हो गयी है.
गिरधारी – अन्दर की खबर तो आप तक पहुँची ही नहीं है. भूपिंदर का  अभी-अभी फिर से फ़ोन आया है. अब हम बारह हजार वोट से आगे हो गए हैं.
सुखराम जी – सच कह रहा तू? अगर मैं जीत गया तो अपना श्यामनगर वाला बंगला तेरे नाम कर दूंगा.
गिरधारी – मालिक संझा तक आप बंगले की चाबियाँ मुझे देने के लिए तैयार रहिएगा. मैं अब खुद काउंटिंग देखने जा रहा हूँ. आपको पल-पल की खबर देता रहूँगा.
सुखराम जी – ऑल दि बेस्ट गिरधारी ! अच्छी-अच्छी खबर भेजना वरना तेरी गर्दन तेरे धड़ अलग हो जाएगी.
गिरधारी – आप तो बस बंगले की चाबियाँ मुझे सौंपने की तैयारी कीजिए. मैं लौट कर जीत के जसन की तैयारी करता हूँ.
(6)
सुखराम जी – हे भगवान ! उस बेनिए की लीड चालीस हज़ार की हो गयी है और वो गिरधारी का बच्चा न तो ख़ुद फ़ोन कर रहा है और न ही मेरा उठा रहा है.
कमलादेवी – अब किसी का फ़ोन आएगा भी नहीं ! मंत्री जी ! अब आप पचास हज़ार वोटों से पिछड़ रहे हैं.
सुखराम जी – वो श्यामनगर की काउंटिंग ट्रेंड बदल देगी.
कमलादेवी – शुतुरमुर्ग रेत में कब तक मुंह गड़ाए रहेगा? उसकी मौत तो चारों तरफ़ से मंडरा रही है.
केसू – जीजाजी, जीजाजी ! जरा छत पर चलिए ! देखिए आपका गिरधारी जुलूस के आगे कैसे नाच रहा है !
सुखराम जी – मैं न कहता था ! जीत तो हमारी ही होगी ! चल भाई ! छत पर चलकर अपने जश्न का नज़ारा देखते हैं.
केसू – जीजाजी, आपका गिरधारी जुलूस के आगे-आगे नाच तो रहा है पर ये तो देखिए कि उसके हाथ में झंडा कौन सा है ! और उसके पीछे उसकी वानर-सेना कौन से नारे लगा रही है !
सुखराम जी – हाय मर गया ! ये साला गिरधारी उस बेनिए की पार्टी का झंडा लेकर नाच रहा है और उसके पीछे बच्चे पता नहीं क्या-क्या नारे लगा रहे हैं !
केसू – हमको तो ये नारे साफ़ सुनाई दे रहे हैं –
गली-गली में शोर है, सुक्खी साला चोर है !
जीत गया भई जीत गया, बेनी भैया जीत गया !
सुखराम जी – कमला-केसू ! मेरा दिल बैठा जा रहा है. डॉक्टर महरा को बुलाओ !
केसू – जिज्जी ! जीजाजी पहले भी तीन बार हार चुके हैं. इनकी चमड़ी बहुत मोटी है. इनको एक और हार से कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा पर अब भी इनके साथ रहना मुझे बहुत भारी पड़ेगा. मैं भी बेनी भैया के जुलूस में शामिल होकर अपने पुराने पाप धोने जा रहा हूँ.
कमलादेवी – केसू ! हमसे ऐसी गद्दारी?
केसू – मैं तो कहता हूँ जिज्जी कि तुम भी मेरे साथ चलो. जिस नाव में छेद हो गया हो उसे छोड़ना ही अकलमंदी है. मैंने तो बेनी भैया से तुम्हारे बारे में एडवांस में बात भी कर ली है. तुम उनकी पार्टी में आ जाओगी तो वो तुम्हें पार्टी के महिला मोर्चे का जिला-अध्यक्ष बना देंगे.
कमलादेवी – पर भैया ! पति का साथ कैसे छोड़ सकती हूँ?
केसू – आपके इस पति ने तो कितनी औरतों के लिए आपको छोड़ा है. अभी भी मैं इसकी दो-चार गुमनाम महबूबाओं के नाम आपको गिना सकता हूँ.
कमलादेवी – तूने मेरी हिम्मत बढ़ा दी केसू ! इन्होंने मेरी कभी परवाह नहीं की. अब मैं ऐसे हरजाई की नहीं, बल्कि अपने दिल की मानूँगी.
चल केसू !  चलते हैं तेरे बेनी भैया के जुलूस में !
केसू और कमलादेवी एक साथ –
गली-गली में शोर है, सुक्खी साला चोर है !
जीत गया भई जीत गया, बेनी भैया जीत गया !