(1)
शुक्ल
जी – अरे
लियाक़त भाई, सुना
आपने ! हमारे मोहल्ले के शोहदे अख्तर ने शहर के नामी गुंडे अवधेश को चाकू से गोद
दिया.
लियाक़त
भाई – वो
कमबख्त अवधेश बचा कि मर गया?
शुक्ल
जी – अवधेश
के शरीर पर चाकू के कुल 16 वार थे. वो पट्ठा तो पोस्ट मार्टम के लिए अस्पताल पहुँचाया भी जा
चुका है.
लियाक़त
भाई – चलो
पाप कटा. इस कमबख्त अवधेश ने शहर भर की लड़कियों को छेड़ने का ठेका ले रक्खा था.
वैसे हुआ क्या था? अख्तर और अवधेश का तो आपस में बड़ा याराना था. दोनों मिलकर लड़कियां छेड़ते थे और दुकानदारों से हफ़्ता वसूली भी दोनों मिलकर ही किया करते थे. ज़रूर किसी लड़की को लेकर ही दोनों में झड़प हुई होगी.
वैसे हुआ क्या था? अख्तर और अवधेश का तो आपस में बड़ा याराना था. दोनों मिलकर लड़कियां छेड़ते थे और दुकानदारों से हफ़्ता वसूली भी दोनों मिलकर ही किया करते थे. ज़रूर किसी लड़की को लेकर ही दोनों में झड़प हुई होगी.
शुक्ल
जी – हाँ, दोनों के बीच झड़प तो एक
लड़की को लेकर ही हुई थी. वो रीटा विल्सन नर्स है न ! उसी पर हक़ जमाने का कम्पटीशन
था दोनों के बीच !
लियाक़त
भाई – चलो
अच्छा हुआ ! एक पापी चाकू से मारा गया और अब दूसरा फांसी पर लटकेगा.
शुक्ल
जी – हुज़ूर
ग़लतफ़हमी में मत रहिए. दो गुंडों के बीच की इस आपसी जंग को सियासती रंग भी दिया जा
सकता है और मज़हबी रंग भी !
लियाक़त
भाई – दोस्त
! इतना बुरा मत सोचा करो ! मैं दुआ करूंगा कि तुम्हारा ये डर कभी सच्चाई में नहीं
बदले !
शुक्ल जी – आपकी ही ज़ुबां में मैं कहूँगा. आमीन !
शुक्ल जी – आपकी ही ज़ुबां में मैं कहूँगा. आमीन !
(2)
इंस्पेक्टर
बदन सिंह – कमला, कमला ! सुनती हो? जगतपुरा में एक क़त्ल हो
गया है. मैं फ़ौरन मौक़ा-ए-वारदात पर जा रहा हूँ. अब चाय-वाय थाने में ही कर लूँगा.
कमला
– अरे, चाय-नाश्ता तैयार होने
में बस पांच मिनट और लगेंगे.
बदन
सिंह – मैडम, ड्यूटी इज़ ड्यूटी !
क्या तुम अपने पति को जानती नहीं हो?
कमला
– ख़ूब
जानती हूँ. मैं तो ये भी जानती हूँ कि तुम जब भी भूखे पेट घर से निकलते हो तो
तुम्हारे सामने जो भी आता है उसकी तुम बे-भाव पिटाई कर देते हो.
बदन
सिंह – अरे
भई, क़त्ल
का मामला है.
कमला
– क़त्ल
से मुझे क्या लेना-देना? मेरे
तो गोभी के पराठे बेकार जाएंगे.
बदन
सिंह – मैडम, हर क़त्ल के मामले से
तुम्हारा लेना-देना होता है. याद नहीं? गोकुल सुनार के क़ातिल
बेटे गोपाल को बेदाग छुड़वाने की एवज़ में जो रकम मिली थी, उसी से तुम्हारा हीरे
का हार आया था.
कमला
– ठीक
है, जाओ
पर इस बार मुझे उसी हार के मैचिंग कंगन चाहिए.
बदन
सिंह – इसका
वादा तो मैं नहीं कर सकता. पहले जाकर देखूं तो कि जाल में फंसी मछली कितनी मोटी
है.
(3)
पंडित
बृजभूषण – शिव
! शिव ! शिव ! हम सब के सामने ही हमारे अपने समुदाय का एक सुशील, होनहार और
प्रतिभा-संपन्न युवक, एक
पापी म्लेच्छ के चाकू से काल की गोद में समा गया और हम हैं कि हाथ पर हाथ धरे बैठे
हैं !
मौलाना साहब ! आप कोई ग़लतफ़हमी मत पालिएगा. हमारा हिन्दू समुदाय ईंट का जवाब पत्थर से देगा. आपके समुदाय के दो-चार युवकों के शवों को कन्धा देने का अवसर हम आपको अवश्य देंगे.
मौलाना साहब ! आप कोई ग़लतफ़हमी मत पालिएगा. हमारा हिन्दू समुदाय ईंट का जवाब पत्थर से देगा. आपके समुदाय के दो-चार युवकों के शवों को कन्धा देने का अवसर हम आपको अवश्य देंगे.
मौलाना
सदरुद्दीन – धमकी
किसे दे रहे हैं पंडित जी? हमने
क्या चूड़ियाँ पहन रक्खी हैं? हमारे किसी एक जवान को
अगर खरोंच भी आई तो तो आपके घरों की न जाने कितनी खवातीनों को चूड़ियाँ उतारनी पड़
जाएंगी. हमारा अख्तर बेगुनाह है. उस गुंडे अवधेश ने उस पर क़ातिलाना हमला किया था.
अख्तर को अपनी जान बचाने के लिए मजबूरन चाकू चलाना पड़ा था जिसमें यकायक उस बदमाश
की मौत हो गयी.
पंडित
बृजभूषण – क्या
अदालत में आप की खाला का राज है? आपके अख्तर को तो हम
फांसी दिलाकर रहेंगे और अगर कहीं उसे अदालत ने छोड़ दिया तो वह हमारे कोप से तो
जीवित बच ही नहीं सकता.
मौलाना
सदरुद्दीन – लगता
है कि बाबू अवधेश का दोज़ख में अकेले मन नहीं लग रहा है. आप कहें तो उनके तमाम
यार-दोस्त भी वहां पहुंचवा दें !
पंडित
बृजभूषण – एक
भोले-भाले, निष्पाप
अवधेश को नर्क में भिजवाने की बात कहकर मुसीबत मोल ले ली है आपने मौलाना ! अब तो
खून की नदियाँ बहेंगी.
मौलाना
सदरुद्दीन – हम
भी सोच रहे हैं कि काफ़िरों के खून से बनी नदी में नहा ही लिया जाय !
(4)
एम.
पी. धर्मावतार – हमारी-तुम्हारी
उम्र हो गयी है क़ुर्बान अली ! अब वक़्त आ गया है कि हम और तुम अपने-अपने बेटों को
अपनी-अपनी कौम की कमान सौंप दें.
क़ुर्बान
अली – बात
तो तुम्हारी सही है धर्मावतार भाई ! पर हमारे और तुम्हारे बेटों को ऐयाशी और
आवारागर्दी से फ़ुर्सत तो मिले ! नालायक आए दिन हमारी नाक कटवाते रहते हैं.
धर्मावतार
– हम
और तुम भी तो जवानी में इश्तहारी मुजरिम थे. दोनों जेल गए थे, डाके के मामले में और
फिर लौटे तो दोनों ही भारत छोड़ो आन्दोलन के वीर स्वतंत्रता सेनानी बन कर !
क़ुर्बान
अली – भाई, ज़रा होशियार ! दीवारों
के भी कान होते हैं.
अच्छा ये सब छोड़ो. यह बताओ कि इस अवधेश के क़त्ल के मामले का क्या कोई फ़ायदा उठाया जा सकता है?
अच्छा ये सब छोड़ो. यह बताओ कि इस अवधेश के क़त्ल के मामले का क्या कोई फ़ायदा उठाया जा सकता है?
धर्मावतार
– बिल्कुल
फ़ायदा उठाया जा सकता है. अपने बेटे जमील को तुम मजलिस-ए-इस्लाम की कमान सौंप दो और
मैं अपने सपूत देशभूषण को हिन्दू-हितकारिणी सभा का प्रधान सेनापति बनवा देता हूँ.
क़ुर्बान
अली - हमारे-तुम्हारे इन दोनों पैदाइशी मक्कार सपूतों से किसी ज़िम्मेदारी के काम
की उम्मीद मत रखना.
धर्मावतार
– अरे
भाई, नाम
की कमान हमारे इन हरामखोरों पर होगी पर परदे के पीछे तो हम और तुम ही सारा ग़दर
काटेंगे.
क़ुर्बान
अली – अच्छा, प्लान तो बताओ !
धर्मावतार
– हम
अवधेश को हिन्दू धर्म-संस्कृति का संरक्षक बनाकर प्रोजेक्ट करेंगे और तुम अख्तर को
अपनी कौम का सबसे बड़ा हिमायती बताओगे. फिर हम पंडित बृजभूषण के गैंग से अवधेश के
घर पर, मुसलमानों
के नाम से हमला करवाएँगे और तुम मौलाना सदरुद्दीन के गिरोह से अख्तर के घर हम
हिन्दुओं के नाम से आग लगवाओगे.
और हाँ, इस खेल को और दिलचस्प बनाने के लिए अख्तर का मारा जाना भी ज़रूरी है.
अब इस हमले में, इस आगजनी में जितने ज़्यादा लोग मरेंगे, जितने बलात्कार होंगे और जितनी लूटपाट होगी, उतना ही ज़्यादा हमको फ़ायदा होगा.
और हाँ, इस खेल को और दिलचस्प बनाने के लिए अख्तर का मारा जाना भी ज़रूरी है.
अब इस हमले में, इस आगजनी में जितने ज़्यादा लोग मरेंगे, जितने बलात्कार होंगे और जितनी लूटपाट होगी, उतना ही ज़्यादा हमको फ़ायदा होगा.
क़ुर्बान
अली – हमारे
लिए अख्तर के घर को आग लगवाना तो आसान है पर उसको मारना मुश्किल है. इंस्पेक्टर
बदन सिंह से कहकर उसे फ़ेक एनकाउंटर में मरवाना पड़ेगा. वैसे ऐसे फ़ेक एनकाउंटर की उस
पुलिसिए की फ़ीस दस लाख है.
धर्मावतार
– लो
भाई ! मेरे हिस्से के ये पांच लाख मुझ से अभी ले लो और बाक़ी की रक़म तुम डालो.
क़ुर्बान
अली – बच्चों
के मुस्तक़बिल और कौम की खिदमत के लिए इतना रुपया तो मैं हमेशा अपनी जेब में रखता
हूँ. वैसे दो-दो लाख एक्स्ट्रा हमको-तुमको दंगे-फ़साद करवाने के लिए भी लगाने
पड़ेंगे.
धर्मावतार
– अपने-अपने
नालायक सपूतों के भविष्य को बनाने के लिए इतना इन्वेस्टमेंट तो हमको-तुमको करना ही
पड़ेगा.
(5)
राज्य
के गृहमंत्री की प्रेस कांफ्रेंस -
गृहमंत्री
– मुझको
यह घोषणा करते हुए अपार हर्ष हो रहा है कि हमने तीन दिन के अन्दर ही सद्भाव नगर
में हुई सांप्रदायिक हिंसा पर पूरी तरह से काबू पा लिया है.
इन दंगों में आईएसआई का हाथ होने के पुख्ता सुबूत मिले हैं. स्वर्गीय अवधेश के क़ातिल अख्तर के ख़ुद आईएसआई एजेंट होने की बात सामने आई है.
हमारे जाबांज़ इंस्पेक्टर बदन सिंह ने अख्तर के भागने की कोशिश के समय उसका एनकाउंटर कर उसे मार गिराया. श्री बदन सिंह को एक लाख के नक़द इनाम, और गैलेंट्री अवार्ड के साथ-साथ आउट ऑफ़ टर्न प्रोन्नति देकर उन्हें डी. एस. पी. बनाया जाता है. उनके बहादुर सहयोगियों को भी पुरस्कृत और सम्मानित किया जा रहा है.
सद्भाव नगर में कौमी-एकता को पुनर्स्थापित करने में हमारे सांसद धर्मावतार जी और हमारे विधायक क़ुर्बान अली ने, अपनी जान की भी परवाह नहीं की है. इन दोनों के सपूतों - श्री देशभूषण और जनाब जमील अली के भी हम आभारी हैं जिन्होंने कि दिन-रात एक-जुट होकर इस नफ़रत के तूफ़ान के बीच अमन का दिया जलाए रक्खा था.
मैं इन दंगों में मारे गए सभी व्यक्तियों के परिवारों को पांच-पांच लाख रूपये की और सभी घायल हुए लोगों को एक-एक लाख रूपये के अनुदान की घोषणा करता हूँ.
इन दंगों में आईएसआई का हाथ होने के पुख्ता सुबूत मिले हैं. स्वर्गीय अवधेश के क़ातिल अख्तर के ख़ुद आईएसआई एजेंट होने की बात सामने आई है.
हमारे जाबांज़ इंस्पेक्टर बदन सिंह ने अख्तर के भागने की कोशिश के समय उसका एनकाउंटर कर उसे मार गिराया. श्री बदन सिंह को एक लाख के नक़द इनाम, और गैलेंट्री अवार्ड के साथ-साथ आउट ऑफ़ टर्न प्रोन्नति देकर उन्हें डी. एस. पी. बनाया जाता है. उनके बहादुर सहयोगियों को भी पुरस्कृत और सम्मानित किया जा रहा है.
सद्भाव नगर में कौमी-एकता को पुनर्स्थापित करने में हमारे सांसद धर्मावतार जी और हमारे विधायक क़ुर्बान अली ने, अपनी जान की भी परवाह नहीं की है. इन दोनों के सपूतों - श्री देशभूषण और जनाब जमील अली के भी हम आभारी हैं जिन्होंने कि दिन-रात एक-जुट होकर इस नफ़रत के तूफ़ान के बीच अमन का दिया जलाए रक्खा था.
मैं इन दंगों में मारे गए सभी व्यक्तियों के परिवारों को पांच-पांच लाख रूपये की और सभी घायल हुए लोगों को एक-एक लाख रूपये के अनुदान की घोषणा करता हूँ.
(6)
माइक पर देशभूषण और जमील अली एक साथ – हिन्दू-मुस्लिम एकता
मंच की ओर से सभा में उपस्थित सभी महानुभावों के चाय-नाश्ते की व्यवस्था की गयी
है. राष्ट्र-गान के बाद आप सभी जलपान कर के ही यहाँ से प्रस्थान कीजिएगा.
जी सर,आपका लेखन देश काल की समसामयिक परिस्थितियों के सूक्ष्म विश्लेषण पर आधारित सदैव पाठकों को वैचारिकी मंथन को प्रेरित करता है।
जवाब देंहटाएंजाति-धर्म को अपना हथियार बनाकर सियासत सदा अपने स्वार्थ साधता रहा है काश कि मूर्ख जनता इस खेल को समझ पाती कि ये बहरुपिये उनके हितैषी नहीं बल्कि सियासी बिसात पर मात्र पाँसे की तरह उनका इस्तेमाल किया जाता रहा है।
प्रणाम सर।
सादर।
श्वेता, आम आदमी जाने-अनजाने इन मकड़ियों के जाल में आए दिन फंसता ही रहता है.
हटाएंसियासी बिसात हो या फिर मज़हबी बिसात हो, पिटता तो प्यादा ही है.
दुष्यंतकुमार जी की यह रचना याद आ गई -
जवाब देंहटाएंमत कहो,आकाश में कुहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है ।
सूर्य हमने नहीं देखा सुबह से,
क्या करोगे, सूर्य का क्या देखना है ।
इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है,
हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है ।
पक्ष औ' प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं,
बात इतनी है कि कोई पुल बना है
रक्त वर्षों से नसों में खौलता है,
आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है ।
हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था,
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है ।
दोस्तों ! अब मंच पर सुविधा नहीं है,
आजकल नेपथ्य में संभावना है।
अब तो लगता है कि आम आदमी की जिंदगी का कोई महत्त्व ही नहीं रह गया है। आए दिन 'तमस' का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मंचन हमारे चारों ओर घटित हो रहा है। आपकी बेबाक शैली में लिखी गई यह रचना मन को झकझोर देती है।
प्रशंसा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद मीना जी.
हटाएंभीष्म साहनी और दुष्यंत कुमार जैसी विभूतियों ने तो हमारी आँखें खोलने की कोशिशें तो बहुत की हैं लेकिन हम पंछियों को अगर सैयाद को ही अपना हिफ़ाज़तदां चुनना है तो वो बेचारे क्या कर सकते हैं?
प्रणाम गोपेश् सर्, आप की कहानी के चरित्र पूरे समाज में जगह-जगह में बैठे पड़े हैं यह वही लोग हैं जो अपनी रोटी सेकने के चक्कर में धर्म की आड़ में खेल खेलते हैं यह खेल कलांंतर से चला आ रहा है और शायद आगे भी चलता रहेगा ..।
जवाब देंहटाएंसमसामयिक परिस्थितियों पर आधारित आपकी कहानी वाकई में बहुत कुछ सोचने को विवश करती है इस भंवर जाल से निकलो यह भंवर जाल तुम्हारा ही दम धोंट देंगे..।
समाज को जरूरत है इस तरह की कहानियों की शायद हम अपने आपको अपने वजूद को बचा सकेंगे बहुत ही अच्छा आपने लिखा बहुत ढेर सारी शुभकामनाएं.🙏
'अनु' जी, जब आप जैसे कलम के धनी मेरी रचना की प्रशंसा करें तो मेरा फूल के कुप्पा होना लाज़मी है.
हटाएंलेकिन कहानी लिखते समय तो ऐसे पात्रों के विषय में सोच-सोच कर मेरे तन-बदन में लगातार आग लग रही थी.
ऐसी कहानियां हम सब के आसपास बुनी जाती हैं और हम उन्हें कभी उधेड़ नहीं पाते बल्कि अक्सर उनके फंदों में फँस भी जाते हैं.
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ फरवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
'पांच लिंकों का आनंद' में मेरी कहानी को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद श्वेता.
हटाएंतिरछी नज़र का ही कमाल है कि वह सारे पक्ष को देखकर समझकर आदमी की जागृत करती है।
जवाब देंहटाएंगोपेश जी आप का लेखन बहोत जोरदार है।
राजनीति और धर्म के ठेकेदारों का काला सच है ये।
जबरदस्त।
आभार।
धन्यवाद रोहतास घोरेला ! तुम जैसी नई पीढ़ी के जागरूक लोगों को भी अगर हम बुजुर्गों की रचनाएँ अच्छी लगती हैं तो जीने की इच्छा बनी रहती है और लगता है कि हम अब भी निरर्थक नहीं हुए हैं.
हटाएंअरे जनाब कैसी बातें करते हो
हटाएंआप हो तो हम हैं
मैं जब आपकी रचना पढता हूँ तो पूरे दिन विचार चलता रहता है कि आपकी सोच का उच्चतम बिंदु प्राप्त हो सके जिससे पता चल सके कि आपने ये रचना कैसे और क्यों रची।
आप जैसे आधार पर मात्र खिलने का हक है हमें.
स्टे एट होम एंड स्टे सेफ।
पुरी पटकथा खोखले सत्य पर प्रहार है,सटीक और पुरा परिदृश्य स्पष्ट करती प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका हर सृजन समय की धार सा सीधा बहाव लिए असरदार होता है ।
'मन की वीणा' के तार जब भी मेरी प्रशंसा में और उत्साह-वर्धन में झंकृत होते हैं तो मुझे अपूर्व आनंद की अनुभूति होती है.
हटाएंधन्यवाद बहुत छोटा शब्द है फिर भी इस समय तो दिल से यही निकल रहा है.
हकीकत वया करती बेहतरीन सृजन ,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कामिनी जी,
हटाएंआप लोगों की शाबाशियाँ बार-बार मुझे साहित्य-सृजन के लिए प्रेरित करती हैं.
बहुत-बहुत धन्यवाद और उम्र में बहुत बड़ा होने के नाते आशीर्वाद भी !
वाह!!!
जवाब देंहटाएंपूरी पटकथा पढ़कर ये भ्रम हुआ कि हम पढ़ नहीं सब देख रहे हैं ....कमाल का लेखन है आपका
साथ ही आज का कटु सत्य जो आपने उजागर किया है समाज को समझना होगा कि सत्य छुपाने वाले एक नही अनेक तबके हैं ...सियासत, धर्म, जात पात सभी के ठेकेदार बैठे हैं इन्तजार में...।जो देख और सुन रहे हैं वो कितना सच है इसका अंदाजा लगाना भी अत्यंत मुश्किल है...
मन को झकझोरता कमाल का सृजन...।
सुधा जी,
हटाएंचार दिन के हरिद्वार के दौरे से लौटने के बाद आप सबकी इस कहानी के विषय में प्रतिक्रियाएं पढ़ीं. बहुत आनंद आया.
इन सियासती और मज़हबी कपटियों के पोल-खोल कार्यक्रम निरंतर होते रहने चाहिए और इनकी सार्वजनिक स्थानों पर पिटाई भी होती रहनी चाहिए.
आज का सच। लाज़बाब और सजीव चित्र, मानों पीठ पीछे स्वयं गृह-मंत्री जी अपने किसी विश्वस्त के कानों में फुसफुसा रहे हों।🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद विश्वमोहन जी.
हटाएंगृहमंत्री किसी राज्य का हो या फिर केंद्र का हो, सरदार पटेल के घर की तो कोई झाडू लगाने के लायक़ भी नहीं मिलता.
बहुत बढ़िया। वाह।
जवाब देंहटाएंदोस्त ! इस पोस्ट पर बहुत दिन बाद तुम्हारी नज़र पड़ी.
हटाएंहौसला अफ़ज़ाई का शुक्रिया !
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु नामित की गयी है। )
जवाब देंहटाएं'बुधवार' ०४ मार्च २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु नामित की गयी है। )
जवाब देंहटाएं'बुधवार' ०४ मार्च २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
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आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
According to Stanford Medical, It is in fact the one and ONLY reason women in this country get to live 10 years more and weigh on average 19 KG less than we do.
जवाब देंहटाएं(And really, it is not about genetics or some secret-exercise and really, EVERYTHING to do with "HOW" they eat.)
BTW, I said "HOW", not "WHAT"...
Click on this link to reveal if this short test can help you find out your true weight loss potential
आदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु इस माह की चुनी गईं नौ श्रेष्ठ रचनाओं के अंतर्गत नामित की गयी है। )
जवाब देंहटाएं'बुधवार' २५ मार्च २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
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'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ का परिणाम घोषित।
जवाब देंहटाएंपरिणाम
( नाम सुविधानुसार व्यवस्थित किये गये हैं। )
१. लाश की नागरिकता / विश्व मोहन
२ . सर्वोपरि / रोहितास घोड़ेला
३. एक और तमस / गोपेश मोहन जैसवाल
४. हायकु /सुधा देवरानी ( श्रेष्ठ रचना टिप्पणियों की संख्या के आधार पर )
५. एक व्यंग्य : तालाब--मेढक---- मछलियाँ /आनंद पाठक ( रचना की उत्कृष्टता के आधार पर )
नोट: प्रथम श्रेणी में रचनाओं की उत्कृष्टता के आधार पर दो रचनाएं चुनी गयीं हैं। इन सभी रचनाकारों को लोकतंत्र संवाद मंच की ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं। आप सभी रचनाकारों को पुरस्कार स्वरूप पुस्तक साधारण डाक द्वारा शीघ्र-अतिशीघ्र प्रेषित कर दी जाएंगी। अतः पुरस्कार हेतु चयनित रचनाकार अपने डाक का पता पिनकोड सहित हमें निम्न पते (dhruvsinghvns@gmail.com) ईमेल आईडी पर प्रेषित करें! अन्य रचनाकार निराश न हों और साहित्य-धर्म को निरंतर आगे बढ़ाते रहें। हम आज से इस पुरस्कार योजना के अगले चरण यानी कि 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ में प्रवेश कर रहे हैं। जो आज दिनांक ०१ /०४ /२०२० (बुधवार) से प्रभावी होगा। विस्तृत सूचना हेतु दिये गये लिंक पर जाएं! सादर
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