बुढ़ापे में
याददाश्त जवाब देने लगती है. 36 साल से भी ज़्यादा वक़्त तक इतिहास पढ़ाने वाले
मुझ जैसे शख्स को यह भी ठीक से याद नहीं आ रहा है कि दिल्ली में क़त्ले-आम 1739 में हुआ था या
1947-48 में या 1984 में या फिर
-----!
लेकिन एक
क़िस्सा मुझे आज भी बखूबी याद है -
दिल्ली के
बाशिंदों की गुस्ताख़ी देख कर नादिरशाह ने गुस्से में पागल होकर अपनी फ़ौज को दिल्ली
में क़त्लेआम का हुक्म दे दिया और वह ख़ुद सुनहरी मस्जिद के ऊपर चढ़ कर देखने लगा कि
दिल्ली में खून की नदी बह रही है कि नहीं.
मुग़ल बादशाह
मुहम्मदशाह (रंगीला) लाल किले में एक क़ैदी की तरह रहने को मजबूर था और किसी दूसरे
की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह नादिरशाह के सामने भी आ सके.
तभी बादशाह का
वज़ीर नादिरशाह के सामने पंहुचा और उसने उसे अमीर खुसरो का एक शेर सुनाया -
कसे न माद कि
दीगर ब तेगे नाज़ कुशी,
मगर कि ज़िन्दा
कुनी ख़ल्करा व बाज़ कुशी.
(तेरी नजर की तलवार ने सब का शिकार कर लिया , तेरे गुस्से के क़हर से कोई बचा ही नहीं!
अब अपनी
नज़रे-इनायत से तू सबको ज़िन्दा कर दे ताकि उन्हें दोबारा फिर मारा जा सके.)
शेर का असर
हुआ और जादू जैसा हुआ.
नादिरशाह ने
हुक्म दिया कि क़त्लेआम बन्द किया जाय.
याद ना रहना अच्छा है ।
जवाब देंहटाएंइस याददाश्त कमबख्त का क्या करूं? इसको बुरी बातें और हादसे हमेशा याद रहते हैं.
हटाएंउधार लिए हुए पैसे और ओढ़े हुए उसूल को तो भूल जाना ही बेहतर है.
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(१८-०४-२०२०) को 'समय की स्लेट पर ' (चर्चा अंक-३६७५) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
कमाल की याददाश्त है आपकी और कमाल का लेखन....
जवाब देंहटाएंइतिहास में अरुचि रखने वाले मुझ जैसे विद्यार्थियों को आपकी शैली में इतिहास पढने को मिले तो इतिहास सबका पसंदीदा विषय बन जाय...।
नादिर शाह को शेर सुनाती मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'वज्रपात' में इस शेर को पढ़ा था। एक बर्बर हत्यारे के दिल को शायरी के अल्फ़ाज़ छूकर क़त्ल-ए-आम रुकवा दें,हृदय परिवर्तन कर दें तो यह साहित्य के लिए गौरव की बात है।
जवाब देंहटाएंसादर नमन सर।
आ आपकी रचना बहुत अच्छी है। जिसे कत्ल किया गया उसे जिंदा कर दो ताकि उसे फिर मारा जा सके। कत्ल करने वाले के पास सिर्फ कत्ल करने की ताकत होती है, जिंदा करने की ताकत तो होती नहीं। यही शायद हर कत्लेआम करने वाला सोच ले तो कभी कत्ल नहीं हो। --ब्रजेन्द्र नाथ
जवाब देंहटाएं