रविवार, 30 अप्रैल 2017

बाल विवाह



बाल विवाह –
मेरे तमाम दोस्त ऐसे थे जिनकी शादी उनके बचपन में ही हो गयी थी. एक मैं था जिसे लेक्चरर बनने के 7 साल बाद, 31 साल की उम्र में दूल्हा बनना नसीब हुआ था और उधर मेरे ऐसे भी दोस्त थे जो मुझसे उम्र में छोटे होते हुए भी तीन-तीन, चार-चार सपूतों, सुपित्रियों के पापा बन चुके थे. आठ-दस साल के बच्चे मुझ जैसे क्वारे को अंकल कहने के बजाय जब ताउजी कहकर बुलाते थे तो मैं मन ही मन देवानंद बन कर गाता था – ‘कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया.’
खैर, यह मेरी त्रासदी की दास्तान नहीं है. यह किस्सा उन लोगों का है जिनकी कि लड़कपन में शादी हो गयी थी और अपने छात्र-जीवन में ही जिन्हें ‘पिता श्री’ कहलाने का गौरव प्राप्त हो गया था. ग्रामीण अंचल के मेरे मित्र, खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश या बिहार के रहने वाले, इस बाल-विवाह का लुत्फ़ उठाने में सबसे आगे थे.
दो-चार अपवादों को छोड़ दिया जाय तो शादी के बाद इन बाल-दूल्हों की धर्म-पत्नियों ने अपनी पढ़ाई जारी नहीं रक्खी. हमारी ऐसी कोई भाभी जी हाईस्कूल पास थीं, कोई आठवां पास थीं, कोई पांचवां, तो कोई काला अक्षर भैंस बराबर थीं.
यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले ऐसे गुरुजन की गुरुआइनें खड़ी बोली की हिंदी बोलने में भी पसीना-पसीना हो जाती थीं. मेरे कुछ होनहार मित्र अपनी कम पढ़ी-लिखी पत्नियों (उनकी अपनी नज़र में गंवार पत्नियों) को, बच्चों के साथ अपने गाँव में रखने की व्यवस्था कर देते थे और फिर विवाह योग्य क्वारों की भांति इस फूल से उस फूल पर, भँवरे की तरह मंडराते रहते थे.
हमारे कई ऐसे मित्र थे जिन्होंने अपनी पहली पत्नी के मौजूद रहते बाक़ायदा दूसरी शादी भी कर ली थी. मेरे एक मित्र की परदेस में रहते हुए दूसरी शादी करने की खबर जब उनकी ससुराल पहुंची तो उनके घर पहुँचने पर उनकी ससुराल वालों ने उनकी जमकर कुटाई की. बेचारे हाथ-पैर तो तुड़वाकर आए ही, साथ में अदालत ने उनकी तनख्वाह का एक तिहाई हिस्सा उनकी पहली पत्नी और बेटी के गुज़ारे के लिए उन्हें देने के लिए मजबूर भी कर दिया.
बाल-विवाह के शिकार हुए मेरे एक ऐसे ही मित्र को जब मैं उनकी भंवरागिरी के लिए कोस रहा था तो उन्होंने मुझसे कहा – ‘गोपेश ! तुम शहरी लोग हम गाँव के रहने वालों की दर्द-भरी दास्तान क्या समझोगे? भाभी जी तो पढ़ी-लिखी हैं. वो अपने पति का भेजा प्रेमपत्र किसी और से थोड़ी पढ़वाती होंगी.और न ही वो अपने अधनंगे बच्चे की बहती नाक अपनी साड़ी के पल्लू से पोंछती होंगी.’
यह सुनकर अपने रोमियो टाइप दोस्त के प्रति मेरा आक्रोश बहुत मद्धम पड़ गया पर मैं फिर भी ऐसी बेमेल शादियों की वजह से अपनी पत्नियों के प्रति बेवफ़ाई करने वालों को कभी दिल से माफ़ नहीं कर पाया.
पुराने ज़माने में लड़कियों और लड़कों की तालीम में ज़मीन-आसमान का अंतर हुआ करता था. मेरे पिताजी अंग्रेज़ी के एम. ए. और एलएल. बी के टॉपर थे जब कि मेरी माँ मिडिल पास थीं. मज़े की बात थी कि पिताजी को इस से कभी कोई दिक्कत नहीं हुई.
मेरे बाबा ने बीएस. सी करने के बाद 1917 में रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज से सी. ई. किया था फिर वो गोंडा में डिस्ट्रिक्ट इंजीनियर हो गए थे. और मेरी अम्मा थीं पूरे दो दर्जा पास, केवल ब्रज भाषा में निष्णात. पर उन दोनों का आपस में प्यार देखते ही बनता था.
हमारे एक और बाबा थे. उत्तर प्रदेश शासन में उच्च पद पर आसीन पर दादी थीं केवल ‘क, ख और ग’ की जानकारी तक सीमित. एक बार बाबा कार में जा रहे थे, पेट्रोल पंप पड़ा तो वो कार में पेट्रोल डलवाने के लिए रुक गए. कार में पेट्रोल डलवाकर बाबा चलने लगे तो दादी बोलीं –
‘सरकार ! तुमने बो ना डरबायो !’
सरकार ने पूछा – ‘क्या नहीं डरबायो? कुछ बताओगी भी !’
दादी बोलीं – ‘अरे बो गाढ़ो-गाढ़ो होत है, का नाम है बाको, हाँ, मोबिल्ला.’
बाबा ने कार में मोबिल्ला पड़वाया या नहीं, यह तो नहीं पता पर यह किस्सा उन्होंने सबको मज़े ले-लेकर सुनाया था.
फिर से बात की गंभीरता पर आया जाए तो सबसे दुःख की बात यह है कि इन बेमेल शादियों की शिकार महिलाएं अपने-अपने पतियों की आशिक़ मिजाज़ी सहन करने के लिए अभिशप्त होती हैं. आज के ज़माने में बाल-विवाह गाँवों में भी अपवाद होने लगे हैं पर गांवों में अब भी विवाह के समय लड़के और लड़की की शिक्षा के स्तर के अंतर पर ध्यान नहीं दिया जाता है. इस कुप्रथा की कीमत चुकानी पड़ती है लड़के को और उस से सौ गुनी लड़की को.
बाल-विवाह के शिकार हुए हमारे जागरूक दोस्त कभी भी अपनी कम पढ़ी-लिखी पत्नी की पढ़ाई फिर से जारी कर सकते हैं. इस समस्या के निदान पर भाषण देना या उसे लेखबद्ध करना आसान है पर हक़ीक़त में इसका निवारण बहुत कठिन है. इसका निदान कठिन है पर असंभव नहीं है. अगर दुष्यंत कुमार तबियत से पत्थर उछालकर आसमान में छेद करने का हौसला रखते हैं तो क्या हमारे मित्रगण अपनी कम पढ़ी-लिखी पत्नियों को पढ़ा-लिखाकर अपने माँ-बाप और उनके माँ-बाप की गलतियों का एक सीमा तक परिष्कार नहीं सकते?