कल दिन भर हम लोग टीवी न्यूज़ देखते
रहे. बीजेपी के तीन किले ध्वस्त हो गए.
यह देखकर बड़ा संतोष मिला. घमंडी का सर नीचा होना ही चाहिए और हिंदुत्व के नाम पर
देश में सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ाने के लिए सतत प्रयत्नशील राजनीतिक दल के पूर्ण
अथवा आंशिक पराभव का जश्न मनाया ही जाना चाहिए.
लेकिन लोकसभा चुनाव के इस सेमी फ़ाइनल
में कांग्रेस की सफलता से उसके समर्थकों के उत्साहितिरेक को और राहुल गाँधी को देश
का उद्धारक समझने की चाटुकारिता को, किसी
क़ीमत पर भी अपना समर्थन नहीं दिया जाना चाहिए.
अभी दिल्ली बहुत दूर है. बीजेपी को केंद्र
में सत्ता से हटाना इतना आसान नहीं है और फिर अगर बीजेपी सेमी फ़ाइनल में पटखनी
खाने के बाद संभलकर कुछ ठीक काम करती है तो उसके फिर से सत्ता में आने की संभावनाओं
से इनकार नहीं किया जा सकता. (वैसे इसकी
सम्भावना बहुत कम है क्योंकि हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण हेतु आगामी चुनाव तक सरकार
की नीतियों को कट्टर हिंदुत्ववादी और ढोंगी-प्रपंची साधू-महात्मा संचालित करने
वाले हैं.)
सत्ता में आते ही किसी भी राजनीतिक
दल के और उसके अंधभक्तों के तेवर बदल जाते हैं. फिर भक्तों के मध्य चाटुकारिता की
प्रतियोगिता प्रारंभ हो जाती है.
चाटुकारों के मध्य ऐसी प्रतियोगिताएँ
होना और ऐसे संवाद होना आम बात है. इनकी कुछ बानगी देखिए -
1. तूने
सिर्फ़ दुम हिलाई जब कि मैंने दुम हिलाने के साथ प्रभु के तलुए भी चाटे.
2. मैं
नित्य प्रभु-चालीसा का पाठ करता हूँ.
3. मैंने
देश के इतिहास में अपने प्रभु को महावीर,
बुद्ध और महात्मा गाँधी से भी ऊंचे आसन पर विराजमान किया है.
4. मेरे प्रभु
के महा-प्रयाण के बाद राज-सत्ता, उनके
वंश के अधिकार में ही रहनी चाहिए.
5. प्रभु
के आँख मूंदते ही उनकी स्मृति में दो-चार सरकारी भवनों में उनका स्मारक तथा उनकी
एक भव्य मूर्ति बनाए जाने के लिए सरकार के 10-20 अरब रूपये खर्च करने में किसी
प्रकार का कोई संकोच नहीं करना चाहिए.
6. प्रभु
के निंदक और आलोचक को या तो देश-निकाला दे दिया जाना चाहिए या फिर उसे जेल में ठूंस
दिया जाना चाहिए.
7. ज़रुरत
पड़ने पर प्रभु के कट्टर विरोधी को किसी फ़ेक एनकाउंटर में दोज़ख पहुँचाने में भी कोई
तक़ल्लुफ़ नहीं करना चाहिए.
8. मेरे
प्रभु सपने में भी ग़लत नहीं हो सकते. उनका प्रत्येक कार्य दोष-रहित होता है, उनकी वाणी में माँ शारदा निवास करती हैं और उनके पाँवों तले
जन्नत होती है.
ऐसे अमर वाक्य लाखों हो सकते हैं
किन्तु उक्त आठ उदाहरणों से ही मेरी बात शायद सब तक पहुँच सकती है.
मुझे इस अंधभक्ति से, इस चाटुकारिता से, इस
तलुए चाटने की होड़ से, और
अपने आक़ा के आलोचकों पर भूखे भेड़िये जैसा टूट पड़ने पर, सख्त ऐतराज़ है. आजकल
फ़ेसबुक पर या अपने ब्लॉग पर अपने निर्भीक तथा बेबाक विचार व्यक्त करते ही मुझे चाटुकारों
की इस जमात के कोप का भाजन होना पड़ता है.
मैं अपनी आदत से मजबूर हूँ. नेहरु जी
का प्रशंसक होते हुए भी मैं 1962 में उनकी असावधानीवश चीन से भारत की क़रारी शिक़स्त
को मैं भूल नहीं पाता.
इंदिरा गाँधी द्वारा इमरजेंसी लगाया
जाना और संजय गाँधी को देश का सर्वेसर्वा बनाने का उनका कृत्य, दोनों ही, मेरी
दृष्टि में अक्षम्य थे.
राजीव गाँधी की श्री लंका के आतंरिक मामलों
में टांग अड़ाना और फिर तमिलों की आकांक्षाओं को कुचलने में श्री लंका के
राष्ट्रपति के हाथों उनका कठपुतली बनना मुझे आत्मघाती लगा था.
पी. वी. नरसिंह राव ने आर्थिक दृष्टि
से भारत को मज़बूत बनाया था लेकिन अयोध्या में विवादित ढाँचे के विध्वंस को रोक न
पाना उनकी सबसे बड़ी असफलता थी.
अटल जी पाकिस्तान से दोस्ती करने के
अभियान पर निकले थे और कारगिल में हमारी सेना सोती रही. पाकिस्तान द्वारा हमारी
चौकियों पर अधिकार किए जाने की खबर हमको एक गरड़िए से मिली. और अटल जी सैकड़ों
जवानों की शहादत के बाद उन चौकियों पर हमारे द्वारा फिर से अधिकार किए जाने पर 'विजय दिवस’ मना
रहे थे. मैं इसको अटल जी के शासनकाल की सबसे
बड़ी असफलता मानता हूँ.
मनमोहन सिंह को सोनिया गाँधी और
राहुल गाँधी के इशारों पर नाचना भी मुझे स्वीकार्य नहीं था.
मेरी दृष्टि में मोदी के नोटबंदी के
फ़ैसले ने देश का कितना नुकसान किया, इसका
आकलन करने के लिए अर्थ-शास्त्रियों को महाभारत से भी बड़ा ग्रन्थ लिखना होगा.
विदेश-यात्राओं में राजीव गाँधी का
रिकॉर्ड तोड़कर और वहां भाड़े के प्रशसंकों से – ‘मोदी-मोदी’ के
नारे लगवा कर देश को क्या हासिल हुआ, यह आज भी मेरी समझ से बाहर है.
और मैं मोदी-युग में टर्राने वाले
देशभक्त, रामभक्त, गौभक्त, कुँए
के मेढकों का उदय भी देश के लिए एक भयानक त्रासदी मानता हूँ.
‘समाजवादी
पार्टी’, आर. जे. डी.., ब. स. पा.’,‘तृणमूल
कांग्रेस’,
साम्यवादी पार्टियाँ, ‘आप’ और
दक्षिण भारत के विभिन्न राजनीतिक दल भी देश का किसी प्रकार से भला नहीं कर रहे हैं.
मैं अराजकतावादी नहीं हूँ और न ही
लोकतंत्र की तुलना में तानाशाही का हिमायती हूँ लेकिन मैं यह मानता हूँ कि
लोकतंत्र में शासक की नकेल कसने का अधिकार जनता का होना चाहिए और नीति निर्धारण में
शासक की सनक से अधिक महत्व, उस
विषय के विशेषज्ञों की राय को दिया जाना चाहिए.
अपने मित्रों की पोस्ट पर भी जब मैं
कोई टिप्पणी करता हूँ तो किसी न किसी राजनीतिक दल के या किसी धर्म-विशेष के दो-चार
अंधभक्त मेरे खून के प्यासे हो जाते हैं.
मुझे आलोचना स्वीकार्य है. असहमति का मैं स्वागत करता हूँ, किन्तु वैचारिक मतभेद होने पर अनावश्यक रूप से आक्रामक
भाषा और व्यक्तिगत आक्षेप को मैं सहन नहीं कर सकता.
मेरा अपने सभी मित्रों से
करबद्ध निवेदन है कि वो अपनी पोस्ट पर अभद्र तथा आक्रामक टिप्पणी करने वालों को या
तो नियंत्रित करें या फिर उनकी आपत्तिजनक टिप्पणी को यथा-शीघ्र डिलीट कर दें.
बार-बार शालीनता की सीमा तोड़ने वाले को तो मित्र-मंडली से निष्कासित किया जाना ही
श्रेयस्कर है.
यदि मेरे मित्र मेरे इस अनुरोध के
बावजूद अपने लठैत तथा गाली-गलौज करने वाले अभद्र-अशिष्ट मित्रों से मधुर
सम्बन्ध बनाए रखते हैं तो उन्हें मुझसे सम्बन्ध तोड़ने होंगे अन्यथा मैं स्वयं उन
से हमेशा-हमेशा के लिए नाता तोड़ लूँगा.