अंधभक्ति और अन्धविश्वास –
गुरमीत राम-रहीम को दो साध्वियों के बलात्कार के आरोप में 10+10=20 वर्ष का कारावास मिला है. आज इस समाचार की ही सर्वत्र चर्चा है. सब जगह बाबा की भर्त्सना हो रही है. तमाम टीवी न्यूज़ चेनल्स उसके काले कारनामों की सिलसिलेवार पोल खोल रहे हैं. हो सकता है कि इस ढोंगी बाबा को भविष्य में दो लोगों का क़त्ल करवाने की सज़ा भी मिल जाए. पर सवाल उठता है कि हमारे समाज में क्या एक ही गुरमीत राम-रहीम है? क्या हमारे बीच एक ही आसाराम बापू है? फिर सवाल यह उठता है कि ये गुरमीत राम-रहीम, ये आसाराम बापू कैसे लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं का दिल जीतने में कामयाब हो जाते हैं? कैसे बड़ी-बड़ी हस्तियाँ इनके चरण पखार कर खुद को धन्य मानती हैं? कैसे कोई भी राजनीतिक दल, कोई भी नेता इनकी उपेक्षा नहीं कर सकता?
आप इनके प्रवचन सुनिए. कोई हाईस्कूल पास बच्चा इनसे अच्छी बातें कर सकता है. आप निर्मल बाबा को सुनिए जो आपके मोजों का रंग बदलवा कर आपकी बिगड़ी किस्मत संवार सकता है.
हम नाचती मटकती, भड़कीली पोशाकों में सजी और चालू फ़िल्मी गानों पर अश्लील मुद्राओं के साथ थिरकती राधा माँ को अपनी आराध्या बनाने में गर्व का अनुभव करते हैं.
घर का मुखिया अगर किसी ढोंगी बाबा अथवा प्रपंची साध्वी की शरण में जाता है तो उसका पूरा परिवार इच्छा से या अनिच्छा से उसी की तरह गुमराह हो जाता है. हज़ारों भक्त बाबा जी के आश्रम में, उनके गुरुकुल में अपने अबोध बेटे-बेटियों को आँख मूंदकर भेज देते हैं. फिर उनको होश आता है पर कब? आम तौर पर तब जब कि उनके बेटे की बाबाजी के गुरुकुल में रहस्यमय ढंग से मृत्यु हो जाती है या उनकी साध्वी बनी बेटी का बाबा जी के आश्रम में बलात्कार हो जाता है. अपराधी बाबाजियों के साथ क्या ऐसे अंधभक्त माता-पिता को उल्टा लटका कर कोड़े मारना ज़रुरी नहीं है?
तंत्र-मन्त्र में हमारा अटूट विश्वास हमारा बेड़ा गर्क करने में सदैव सफल रहा है और चमत्कार में हमारी आस्था हमको डुबाने में सदा सहायक रही है. जब ढोंगी बाबा और साध्वियां अपनी तांत्रिक शक्तियों का दावा करते हैं तो उनका कोई भक्त कभी उनसे उसका प्रमाण नहीं मांगता. सिद्धि प्राप्त करने के लिए भक्तगण अपनी संतानों को भी दांव पर लगाने के लिए तैयार रहते हैं. ये बाबा और ये साध्वियां अपने क्रियाकलापों पर रहस्य का एक ऐसा आवरण आच्छादित किए रहते/रहती हैं कि भक्त उनकी थाह कभी पा ही नहीं सकता और फिर मन्त्र-मुग्ध हो वह अपने आराध्य/आराध्या के इशारे पर कैसा भी नृत्य और कैसा भी कुकृत्य करने के लिए तैयार हो जाता है.
बाबाओं और महंतों के अखाड़े, दरवेशों की खानकाहें प्रायः अनाचार के गढ़ होते हैं और यह धार्मिक विकृति आज से नहीं बल्कि सदियों से समाज में अंधकार फैलाती आ रही है.
आज अगर स्वामी विवेकानंद होते तो उनके अनुयायियों की संख्या निश्चित रूप से गुरमीत राम-रहीम के अनुयायियों से कम होती.
1974 में जे. पी. की सम्पूर्ण क्रान्ति के आवाहन के समय जय गुरुदेव लखनऊ विश्वविद्यालय में भाषण देने आए थे. जय गुरुदेव ने देश की सभी समस्यायों का निवारण करने के लिए साधुओं की सरकार बनाने की पेशकश की थी. मूर्खतापूर्ण बातों से हम सबको बोर करने वाले इन बाबाजी के आज भी लगभग एक करोड़ अनुयायी हैं और मथुरा के निकट ताजमहल को टक्कर देने वाला इनका भव्य मंदिर है.
दलित, खासकर अशिक्षित वर्ग को अब कबीर जैसा सच्ची राह दिखाने वाला सतगुरु नहीं चाहिए और न ही आज उन्हें जोतिबा फुले जैसा सुधारक चाहिए और न डॉक्टर अम्बेडकर जैसा बुद्धिजीवी मसीहा चाहिए. उन्हें बाबा राम-रहीम या जय गुरुदेव, रामपाल जैसे अपनी ही जैसी पिछड़ी मानसिकता के भटकाने वाले और झूठे सब्ज़-बाग़ दिखाने वाले पथ-प्रदर्शक अधिक आकर्षित करते हैं.
वैसे हम तथाकथित बुद्धिजीवी भी अन्धविश्वास में कम पढ़े-लिखों से पीछे नहीं होते. कितने बुद्धिजीवियों के घरों में आराध्य-देव के चित्र अथवा मूर्ति पर भभूत आने के किस्से आप सबने सुने होंगे.
आप सबने उन केन्द्रीय मंत्री जी का किस्सा तो सुना ही होगा जिन्होंने एक बाबाजी के सपने के आधार पर गड़े खज़ाने को निकालने के लिए सरकार के करोड़ों रूपये खुदाई में खर्च करवा दिए थे.
पुराने ज़माने में धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के, चंद्रा स्वामी के और अब बाबा रामदेव के सरकारी प्रभाव से तो हम सब अवगत हैं ही.
अन्धविश्वास पर प्रहार करने की हिम्मत जो करता है, प्रायः उसका हशर डॉक्टर नरेंद्र दाभोलकर सा होता है. पर आज हमको समाज में व्याप्त अज्ञान के अंधकार को दूर करने के लिए सैकड़ों डॉक्टर दाभोलकरों की आवश्यकता है.
हम कब सुधरेंगे? कब हम दर्शन और विज्ञान की पुस्तकों को तिलिस्म और तंत्र-मन्त्र की पुस्तकों से अधिक महत्ता देंगे? कब हम टीवी चेनल्स पर भूत-प्रेत की कहानियां देखना बंद करेंगे? कब हम इन बाबाओं की, इन साध्वियों की और इन दरवेशों की अरबों-खरबों की कमाई करने वाली दुकानों का बहिष्कार करेंगे? कब हम इनके भू-माफिया रूप की पोल खोलेंगे? कब हम इनके अनाचार के अड्डों को तहस-नहस करेंगे?
आस्था भटकाने के लिए नहीं होती. धर्म हमको कुमार्ग की ओर अग्रसर नहीं करता और सतगुरु हमको अन्धविश्वासी नहीं बनाता, हमारी इंसानियत को ख़त्म कर हमको अपनी अनुगामी भेड़ नहीं बनाता. पर हम भटके हुओं को समझाए कौन?
खैर जब तक हम भटकते रहते हैं तब तक हमको दर्जनों बाबा राम-रहीम के अवतरण के लिए तैयार रहना होगा.
गुरमीत राम-रहीम को दो साध्वियों के बलात्कार के आरोप में 10+10=20 वर्ष का कारावास मिला है. आज इस समाचार की ही सर्वत्र चर्चा है. सब जगह बाबा की भर्त्सना हो रही है. तमाम टीवी न्यूज़ चेनल्स उसके काले कारनामों की सिलसिलेवार पोल खोल रहे हैं. हो सकता है कि इस ढोंगी बाबा को भविष्य में दो लोगों का क़त्ल करवाने की सज़ा भी मिल जाए. पर सवाल उठता है कि हमारे समाज में क्या एक ही गुरमीत राम-रहीम है? क्या हमारे बीच एक ही आसाराम बापू है? फिर सवाल यह उठता है कि ये गुरमीत राम-रहीम, ये आसाराम बापू कैसे लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं का दिल जीतने में कामयाब हो जाते हैं? कैसे बड़ी-बड़ी हस्तियाँ इनके चरण पखार कर खुद को धन्य मानती हैं? कैसे कोई भी राजनीतिक दल, कोई भी नेता इनकी उपेक्षा नहीं कर सकता?
आप इनके प्रवचन सुनिए. कोई हाईस्कूल पास बच्चा इनसे अच्छी बातें कर सकता है. आप निर्मल बाबा को सुनिए जो आपके मोजों का रंग बदलवा कर आपकी बिगड़ी किस्मत संवार सकता है.
हम नाचती मटकती, भड़कीली पोशाकों में सजी और चालू फ़िल्मी गानों पर अश्लील मुद्राओं के साथ थिरकती राधा माँ को अपनी आराध्या बनाने में गर्व का अनुभव करते हैं.
घर का मुखिया अगर किसी ढोंगी बाबा अथवा प्रपंची साध्वी की शरण में जाता है तो उसका पूरा परिवार इच्छा से या अनिच्छा से उसी की तरह गुमराह हो जाता है. हज़ारों भक्त बाबा जी के आश्रम में, उनके गुरुकुल में अपने अबोध बेटे-बेटियों को आँख मूंदकर भेज देते हैं. फिर उनको होश आता है पर कब? आम तौर पर तब जब कि उनके बेटे की बाबाजी के गुरुकुल में रहस्यमय ढंग से मृत्यु हो जाती है या उनकी साध्वी बनी बेटी का बाबा जी के आश्रम में बलात्कार हो जाता है. अपराधी बाबाजियों के साथ क्या ऐसे अंधभक्त माता-पिता को उल्टा लटका कर कोड़े मारना ज़रुरी नहीं है?
तंत्र-मन्त्र में हमारा अटूट विश्वास हमारा बेड़ा गर्क करने में सदैव सफल रहा है और चमत्कार में हमारी आस्था हमको डुबाने में सदा सहायक रही है. जब ढोंगी बाबा और साध्वियां अपनी तांत्रिक शक्तियों का दावा करते हैं तो उनका कोई भक्त कभी उनसे उसका प्रमाण नहीं मांगता. सिद्धि प्राप्त करने के लिए भक्तगण अपनी संतानों को भी दांव पर लगाने के लिए तैयार रहते हैं. ये बाबा और ये साध्वियां अपने क्रियाकलापों पर रहस्य का एक ऐसा आवरण आच्छादित किए रहते/रहती हैं कि भक्त उनकी थाह कभी पा ही नहीं सकता और फिर मन्त्र-मुग्ध हो वह अपने आराध्य/आराध्या के इशारे पर कैसा भी नृत्य और कैसा भी कुकृत्य करने के लिए तैयार हो जाता है.
बाबाओं और महंतों के अखाड़े, दरवेशों की खानकाहें प्रायः अनाचार के गढ़ होते हैं और यह धार्मिक विकृति आज से नहीं बल्कि सदियों से समाज में अंधकार फैलाती आ रही है.
आज अगर स्वामी विवेकानंद होते तो उनके अनुयायियों की संख्या निश्चित रूप से गुरमीत राम-रहीम के अनुयायियों से कम होती.
1974 में जे. पी. की सम्पूर्ण क्रान्ति के आवाहन के समय जय गुरुदेव लखनऊ विश्वविद्यालय में भाषण देने आए थे. जय गुरुदेव ने देश की सभी समस्यायों का निवारण करने के लिए साधुओं की सरकार बनाने की पेशकश की थी. मूर्खतापूर्ण बातों से हम सबको बोर करने वाले इन बाबाजी के आज भी लगभग एक करोड़ अनुयायी हैं और मथुरा के निकट ताजमहल को टक्कर देने वाला इनका भव्य मंदिर है.
दलित, खासकर अशिक्षित वर्ग को अब कबीर जैसा सच्ची राह दिखाने वाला सतगुरु नहीं चाहिए और न ही आज उन्हें जोतिबा फुले जैसा सुधारक चाहिए और न डॉक्टर अम्बेडकर जैसा बुद्धिजीवी मसीहा चाहिए. उन्हें बाबा राम-रहीम या जय गुरुदेव, रामपाल जैसे अपनी ही जैसी पिछड़ी मानसिकता के भटकाने वाले और झूठे सब्ज़-बाग़ दिखाने वाले पथ-प्रदर्शक अधिक आकर्षित करते हैं.
वैसे हम तथाकथित बुद्धिजीवी भी अन्धविश्वास में कम पढ़े-लिखों से पीछे नहीं होते. कितने बुद्धिजीवियों के घरों में आराध्य-देव के चित्र अथवा मूर्ति पर भभूत आने के किस्से आप सबने सुने होंगे.
आप सबने उन केन्द्रीय मंत्री जी का किस्सा तो सुना ही होगा जिन्होंने एक बाबाजी के सपने के आधार पर गड़े खज़ाने को निकालने के लिए सरकार के करोड़ों रूपये खुदाई में खर्च करवा दिए थे.
पुराने ज़माने में धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के, चंद्रा स्वामी के और अब बाबा रामदेव के सरकारी प्रभाव से तो हम सब अवगत हैं ही.
अन्धविश्वास पर प्रहार करने की हिम्मत जो करता है, प्रायः उसका हशर डॉक्टर नरेंद्र दाभोलकर सा होता है. पर आज हमको समाज में व्याप्त अज्ञान के अंधकार को दूर करने के लिए सैकड़ों डॉक्टर दाभोलकरों की आवश्यकता है.
हम कब सुधरेंगे? कब हम दर्शन और विज्ञान की पुस्तकों को तिलिस्म और तंत्र-मन्त्र की पुस्तकों से अधिक महत्ता देंगे? कब हम टीवी चेनल्स पर भूत-प्रेत की कहानियां देखना बंद करेंगे? कब हम इन बाबाओं की, इन साध्वियों की और इन दरवेशों की अरबों-खरबों की कमाई करने वाली दुकानों का बहिष्कार करेंगे? कब हम इनके भू-माफिया रूप की पोल खोलेंगे? कब हम इनके अनाचार के अड्डों को तहस-नहस करेंगे?
आस्था भटकाने के लिए नहीं होती. धर्म हमको कुमार्ग की ओर अग्रसर नहीं करता और सतगुरु हमको अन्धविश्वासी नहीं बनाता, हमारी इंसानियत को ख़त्म कर हमको अपनी अनुगामी भेड़ नहीं बनाता. पर हम भटके हुओं को समझाए कौन?
खैर जब तक हम भटकते रहते हैं तब तक हमको दर्जनों बाबा राम-रहीम के अवतरण के लिए तैयार रहना होगा.