नाम में बहुत कुछ रक्खा है –
हमारे पिताजी का नाम – ‘अम्बिका प्रसाद’ है और माँ का नाम – ‘चन्द्र कला’ है.
पिताजी और माँ के नाम में शायद ही किसी को कन्फ्यूज़न होता था.
हाँ, कुछ विद्वान लोग पिताजी नाम - ‘अम्बिका प्रसाद’ की जगह – ‘अम्बा प्रसाद’ ज़रूर कर देते थे.
माँ-पिताजी की पांच संतान हुईं. सबसे बड़ी सन्तान हमारी स्वर्गीया बहन जी थीं. पिताजी ने बड़े प्यार से उनका नाम – ‘ज्योत्स्ना’ रक्खा.
स्कूल से ले कर कॉलेज तक और फिर शादी के बाद भी बहन जी के नाम का शुद्ध उच्चारण करने वाले उँगलियों पर ही गिने जा सकते थे.
कोई उन्हें – ‘ज्योतिसना’ कहता था तो कोई उन्हें – ‘ज्योतिष्ना’ कह कर संबोधित करता था.
उनकी एक महा-विदुषी जिठानी उन्हें प्यार से – ‘जोतना’ कहा करती थीं.
अपनी जिठानी जी का प्यार भरा संबोधन तो बहन जी बर्दाश्त कर लेती थीं पर जब हम भाई लोग उन्हें – ‘जोतना बहन’ कहते थे तो वो हमारे पीछे डंडा ले कर दौड़ पड़ती थीं.
हमारे जीजाजी ने बहन जी के इस कष्ट का निवारण करने के लिए उन्हें – ‘ज्योति’ कहना शुरू कर दिया था और ख़ुशकिस्मती से – ‘ज्योति’ को ‘जोती’ कहने वाले बहुत कम थे.
पिताजी ने हम चारों भाइयों के नाम एक-दूसरे से बेमेल रक्खे थे –
बड़े बेटे का नाम – ‘कमल कान्त’, दूसरे बेटे का नाम – ‘श्रीश चन्द्र’, तीसरे बेटे का नाम – ‘कानन विहारी’ और चौथे बेटे यानी कि मुझ खाक़सार का नाम – ‘गोपेश मोहन’ रक्खा था.
‘कमल कान्त’ नाम के साथ छेड़छाड़ करने वाले बिरले ही होते थे.
कुछ लोग भाई साहब के नाम को सुधार कर – ‘कमला कान्त’ अवश्य कर देते थे.
हमारे श्रीश भाई साहब के नाम के साथ बहन जी के नाम की ही तरह खूब अत्याचार होते थे.
श्रीश भाई साहब के एक क्लास टीचर ने अटेंडेंस रजिस्टर में उनका नाम – ‘शिरीष’ लिखा और भाई साहब को निर्देश दिया कि आगे से वो ख़ुद को – ‘शिरीष’ ही कहें.
भाई साहब के अधिकांश पुरबिए मित्रगण उनको – ‘सिरीस’ कहते थे लेकिन उनके एक मित्र उन्हें – ‘सिहिर’ कहा करते थे.
हमारे कानन विहारी भाई साहब को नाम के मामले में किसी ख़ास मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा.
मेरा सीधा-सादा सा नाम – 'गोपेश मोहन' पता नहीं क्यों लोगों के गले से नीचे नहीं उतरता था.
अधिकांश लोग मेरे नाम को सुधार कर – ‘गोपाल मोहन’ या फिर – ‘गोपी मोहन’ कर देते थे.
मेरी शादी के बाद मेरे ससुर जी ने मुझ से कहा –
‘गोपेश जी, हम लोग आपको – ‘योगेश’ कह कर बुलाएंगे.’
मैंने विनम्रता से पूछा –
‘पापा, आप लोगों को मेरा नाम बदलने की क्या ज़रुरत पड़ गयी?’
ससुर जी ने फ़रमाया –
‘गोपेश यानी कि कृष्ण जी के सोलह हज़ार रानियाँ थी.
भला हम क्यों चाहेंगे कि हमारी बेटी किसी ऐसे इंसान की पत्नी हो जिसके सोलह हज़ार पत्नियाँ हों.’
मैंने ससुर जी की इस बात पर अपनी दलील दी –
‘अगर आप लोग मेरा नाम सोलह हज़ार रानियों वाले ‘गोपेश’ से बदल कर – ‘योगेश’ कर देंगे तो आपकी बेटी को भारी दिक्कत हो जाएगी क्योंकि ‘योगेश’ यानी कि योगियों के ईश की तो कोई पत्नी या कोई रानी हो ही नहीं सकती.’
मेरी श्रीमती जी का नाम – ‘रमा’ है. इसको रोमन लिपि में – ‘Rama’ लिखा जाता है.
इस - ‘Rama’ को – ‘रमा’ पढ़ने वाले कम और - 'राम’ या फिर – ‘रामा’ पढ़ने वाले ज़्यादा मिलेंगे.
एक बार हम दिल्ली से झारखंड स्थित अपने तीर्थ-स्थल सम्मेद शिखर गए थे. रेलवे रिज़र्वेशन में रमा को फ़ीमेल की जगह मेल बना दिया गया. हमको इस यात्रा में कितनी परेशानी हुई यह हम ही जानते हैं.
मैंने तो सफ़र की ऐसी परेशानियों से बचने के लिए श्रीमती जी को नकली मूंछ लगाने की सलाह दी थी लेकिन उन्होंने उस पर अमल नहीं किया.
मेरी बड़ी बेटी गीतिका को बहुत से लोग – ‘गीता’ कहते हैं और वो इसका बुरा भी नहीं मानती.
एक बार अस्पताल के पर्चे में क्लर्क ने उसका नाम – ‘गुटका’ लिखा था. मुझे तो बिटिया जी का यह नया नाम बहुत पसंद आया पर बिटिया जी ने इस नाम को सुनते ही अपने दांतों को पीसना शुरू कर दिया.
हमारी छोटी बेटी रागिनी का नाम बिगाड़ने वालों में उसे – ‘रगीनी’ कहने वाले कम हैं और – ‘रजनी’ कहने वाले काफ़ी हैं.
गीतिका के बेटे – ‘अमेय’ को दुबई में कोई भी उसके सही नाम से नहीं पुकारता. कोई उसे – ‘अमेया’ कहता है, कोई उसे – ‘अमे’ कहता है तो कोई – ‘अमया’ कहता है.
मेरा आप मित्रों को सुझाव है कि अपने बच्चों का नामकरण करने से पहले अपने अड़ौसी-पड़ौसी से आप विचारणीय नाम का उच्चारण करवा कर देखिए.
अगर अधिकतर जनता प्रस्तावित नाम का गलत उच्चारण करती है तो फिर आप अपने बच्चे के लिए कोई सरल सा नाम चुन लीजिए.
इस से आपको उन परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा जिन से हमारे परिवार को दो-चार होना पड़ा है.