गुरुवार, 8 सितंबर 2016

बहाली

यह बात 1972 की है. मेरे बड़े भाई साहब ने तब उत्तरकाशी के जिलाधीश का दायित्व कुछ ही दिन पहले सम्हाला था. ऑफिस में उनके सामने एक प्रार्थना पत्र रक्खा गया जिसमें जिलाधीश के कार्यालय से सम्बद्ध, अस्थायी पद पर नियुक्त एक बर्खास्त किए गए चपरासी ने खुद को फिर बहाल किए जाने की प्रार्थना की थी.

जिलाधीश-कार्यालय की ओर से उस चपरासी को बर्खास्त किए जाने का कारण यह बताया गया था कि वह बिना कोई सूचना दिए, बिना छुट्टी का कोई आवेदन दिए, तीन महीने तक अपनी ड्यूटी पर नहीं आया, उसके घर के पते पर एक रजिस्टर्ड पत्र द्वारा उसे कार्यालय में तुरंत ड्यूटी पर आने का नोटिस भी दिया गया था जिसका कि उसने कोई जवाब नहीं दिया. अन्ततः उसके ग़ैर-ज़िम्मेदाराना व्यवहार को देखते हुए उसे बर्खास्त कर दिया गया. एक अस्थायी कर्मचारी को इतनी बड़ी गलती के लिए माफ़ कर देना तो एक गलत नज़ीर बन जाती इसलिए भाई साहब की नज़रों में भी उस गरीब का बर्खास्त किया जाना ही जायज़ था. पर फिर भी भाई साहब ने उस अपदस्थ चपरासी का आवेदन पूरी तरह से पढ़ना उचित समझा.

प्रार्थी ने बहुत भावुक होकर काव्यात्मक शैली में नए जिलाधीश महोदय से अपनी कृपा वृष्टि से उसके सूने जीवन में फिर से बहार लाने की गुहार लगाई थी और साथ ही उसने अपनी बहाली के पक्ष में अनेक ऐसे बिंदु रक्खे थे जो उसकी दृष्टि में ऐसे थे जिन्हें कि पढ़कर कोई भी न्यायप्रिय जिलाधीश उसको बहाल किए बिना रह ही नहीं सकता था.

एक साधारण सा प्रार्थना पत्र अब दिलचस्प होता जा रहा था. भाई साहब ने प्रार्थना पत्र में दी गई दलीलों को ध्यान से पढ़ा.

1. प्रार्थी ने पिछले 5 सालों में उत्तरकाशी में नियुक्त जिलाधीशों की तन-मन से सेवा की है और उन सभी से शाबाशी प्राप्त की है. प्रमाण के रूप में पिछले दो जिलाधीशों के द्वारा प्रार्थी को दिए गए प्रशंसा पत्र संलग्न हैं.

2. प्रार्थी ने पिछले जिलाधीश महोदय के कहने पर 1970 में परिवार नियाजन हेतु खुद अपना ऑपरेशन करवाया था जिसके लिए उसे पुरस्कार में 200 रूपये, एक कम्बल और एक प्रमाण-पत्र भी मिला था. प्रमाण-पत्र की प्रमाणित प्रतिलिपि इस प्रार्थना पत्र के साथ संलग्न है.

3. वर्ष 1972 के प्रारम्भ में प्रार्थी के गाँव में उसकी पत्नी ने एक बालक को जन्म दिया जिसके कारण उसे 3 महीने अपने गाँव में रहना पड़ा और उसे अपनी ड्यूटी पर वापस आने में विलम्ब हो गया.
आगे एकाद बिंदु और थे पर दूसरे और तीसरे बिंदु को पढ़कर ही भाई साहब ने अपदस्थ कर्मचारी को अपने सामने उपस्थित होकर अपना पक्ष प्रस्तुत करने का आदेश दे दिया.

प्रार्थी जिलाधीश महोदय के समक्ष प्रस्तुत हुआ तो उन्होंने उससे केवल एक सवाल पूछा –
‘तुमने अपने प्रार्थना पत्र में लिखा है कि तुमने 1970 में परिवार नियोजन हेतु अपना ऑपरेशन करा लिया था.’

प्रार्थी ने हाथ जोड़कर कहा –
‘जी हुजूर, सही बात है. मैंने तो इसका प्रमाण-पत्र भी लगाया है.’
जिलाधीश ने फिर पूछा –
‘अगले बिंदु में तुमने लिखा है कि 1972 में तुम्हारे बेटा हुआ. 1970 में परिवार नियोजन का ऑपरेशन और 1972 में बेटा? बात कुछ समझ में नहीं आई.’

प्रार्थी ने अपना माथा पीटते हुए जवाब दिया –
‘माई बाप, यह बात तो मेरे भी समझ में नहीं आई थी. लेकिन मैंने अपना बेटा होने की बात कहीं नहीं लिखी है. सिर्फ यह लिखा है कि मेरे घर में मेरी पत्नी ने एक बालक को जन्म दिया. हुज़ूर, अगले तीन महीने मुझे अपने आशिक़ और इस बच्चे के बाप के साथ भागी हुई अपनी बीबी को वापस लाने में लगाने पड़े. अन्नदाता, अगर मैं बहाल नहीं हुआ तो मेरी बीबी फिर से भाग जाएगी.’

आगे की कहानी सुखांत है.

जिलाधीश महोदय ने इस विषय में आदेश निर्गत किया-
‘कर्मठ, कर्तव्यनिष्ठ और आज्ञाकारी प्रार्थी अगर दुखद परिस्थितियों के कारण अपने कर्तव्य का पालन करने में कुछ चूक गया तो उसके साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार किया जाना चाहिए न कि उसे दण्डित किया जाना चाहिए. मैं प्रार्थी की विगत सेवाओं को देखते हुए उसके बर्खास्त किए जाने के पूर्व-आदेश को निरस्त कर उसे उसके पद पर बहाल करता हूँ.’

5 टिप्‍पणियां:

  1. वाह..
    सही न्याय कहूँ
    या सहानुभूति
    सादर

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  2. इंसाफ़ करने वाले के पास दिल होना भी तो ज़रूरी है यशोदाजी. और हाँ, वाह करने के लिए धन्यवाद.

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  3. इंसाफ़ करने वाले के पास दिल होना भी तो ज़रूरी है यशोदाजी. और हाँ, वाह करने के लिए धन्यवाद.

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