रविवार, 29 जनवरी 2017

सूरदास जी से क्षमायाचना के साथ -



सूरदासजी से क्षमा याचना के साथ - 
मैया मोरी, मैं नहिं हिरना मारयो
सबके सनमुख करी खुद्कुसी, बिरथा मोहि फसायो
जो गुलेल तक नाहिं चलावत, गोली कैसे दाग्यो
जैसे ही हिरना स्वर्ग सिधार्यो, रपट लिखावन भाग्यो
बिसनोई सब बैर पड़ें हैं, वहां जाय पछतायो
साबित भई न कोई गवाही, व्यर्थ अदालत लायो
ममता, दया, धरम, करुना सब घुट्टी में ही पायो
‘बीइंग ह्यूमन’ स्थापित कर, दुनिया भर में छायो    
हिरना-रक्सक की उपाधि, पाने को नाम लिखायो          
मैया मोरी, ----
(चेतावनी : ‘हिरना-रक्षक’ को ‘हिरण्यकश्यप’ समझने अथवा पढ़ने वालों का वही हशर होगा जो कि मरहूम हिरना का हुआ है.)    

5 टिप्‍पणियां:

  1. व्यंग का यह शिल्प अनुकरणीय है,धारदार है,प्रशंसनीय है. प्राकृतिक न्याय में हमारा विश्वास कभी न डिगे समय कितने ही ज़ुल्म ढाता रहे.

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    1. धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी. अब तो हमको प्राकृतिक न्याय पर ही भरोसा है, अदालती न्याय का खोखलापन तो सबने देख लिया.

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  2. धन्यवाद यशोदा अग्रवाल जी. अगर आप सब का स्नेह और उत्साहवर्धन ऐसे ही मिलता रहेगा तो मेरी लेखनी चलती रहेगी.

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