गुरुवार, 19 जुलाई 2018

स्वामी अग्निवेश के विरोध का सनातनी तरीका


लाठी में गुन बहुत हैं,
सदा राखिए संग,
धरम की रक्षा के लिए,
नित्य छेड़िए जंग. 

स्वामी दयानंद सरस्वती ने शास्त्रार्थ की परंपरा को पुनर्जीवित कर सनातनी विचारधारा के विद्वानों को शास्त्रार्थ में कई बार हराया था. उसके बाद आर्यसमाजियों और सनातनधर्मियों के मध्य अक्सर ऐसे शास्त्रार्थ होने लगे थे. इन मतों के समर्थकों के मध्य हो रहे ऐसे ही एक शास्त्रार्थ के चरमोत्कर्ष में जब एक सनातनधर्मी पंडितजी के पास कोई तर्क नहीं बचा तो उन्होंने अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ते हुए अपने प्रतिद्वंदी से प्रश्न पूछा -
'मैं तो सालिग्राम जी को मानता हूँ. जो सबको साक्षात् दिखाई देते हैं. मैं नित्य उनको स्नान कराता हूँ, उनके चन्दन लगाता हूँ. तू ये बता कि तेरा भगवान कैसा है और वो कहाँ रहता है?
आर्यसमाजी विद्वान ने उत्तर दिया -
'ईश्वर तो सर्वत्र व्याप्त है, वह तो निर्गुण और निराकार होता है. तुम अज्ञानी तो पत्थर की बटिया में भगवान देखते हो.'
सनातनधर्मी पंडित जी ने सालिग्राम रूपी पत्थर की बटिया उठाकर उस आर्यसमाजी विद्वान के सर पर ज़ोर से दे मारी और फिर उस से पूछा -
'क्या तेरा निर्गुण, निराकार ब्रह्म, ऐसे ही मेरा सर फोड़ सकता है?'

8 टिप्‍पणियां:

  1. हा हा हा....भगवान निराकार है कि साकार यह तो सबके अपने वैचारिकी स्तर पर निर्भर करता है। पर अपने धार्मिक विचारों को दूसरे पर थोपने के लिए किये हास्यास्पद कृत्य निःःसंदेह आपके धर्म और भक्ति को कटघरे में खड़ाकर मखौल बनाते है।
    हमेशा की तरह प्रभावपूर्ण व्यंग्य है सर।

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    1. धन्यवाद श्वेता जी. मैं इन भक्तगणों का कृतज्ञ हूँ जो कि आए दिन मुझे कुछ न कुछ चटपटा लिखने का मसाला देते रहते हैं.

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  2. किसी भी विषय पर बात कही जाए आपका अंदाज सदैव रोचकता लिए होता है ।

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    1. धन्यवाद मीना जी. स्वामी दयानंद सरस्वती को ज़हर तो एक रसोइए ने दिया था पर उन से नाराज़ एक वेश्या के कहने पर. कहीं स्वामी अग्निवेश पर हुए हमले के पीछे भी ----?

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  3. ये अग्निवेश स्वामी कब से हो गए
    कैथोलिक इसाई अग्निवेश की वजह से ही
    छत्तीसगढ़ मे नक्सलवाद पनपा है

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  4. यशोदा जी, मैं अग्निवेश का कोई समर्थक नहीं हूँ किन्तु मैं उन सबकी खुलेआम भर्त्सना करता हूँ जो कि किसी व्यक्ति के विचारों से अपनी असहमति का इज़हार गालियों, लाठियों अथवा गोलियों से देते हैं.

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  5. स्वामी जी 80 साल में पिट लिये सलाम है उनको।

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    1. गाँधी जी ने तो 80 पहुँचने से पहले ही गोली खा ली थी. अग्निवेश लम्बी रेस के घोड़े हैं. वैसे भविष्य में देशभक्तों की कृपा से पिटाई में उन्हें और भी बड़े मुक़ाम हासिल करने हैं.

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