मेरे बाल-कथा
संग्रह – ‘कलियों की मुस्कान’ में से एक कहानी – ‘चोरी’ प्रस्तुत है. यह कहानी
मेरी 10 वर्षीय बड़ी बेटी गीतिका सुनाती है और इसका समय आज से लगभग 25 साल पुराना
है.
चोरी
चोरी शब्द सुनते ही भूकम्प सा आ जाता और आँखों
के सामने अंधेरा छा जाता है. नादान लोग चोरी होने की घटना को बड़ी लाइटली लेते हैं और
कुछ दिन अपनी किस्मत को रोना-धोना करके शांत हो जाते हैं पर हमारे चौबे अंकिल जैसे
समझदार के लिए हर चोर साक्षात यमदूत है और चोरी की वारदात किसी प्रलय से कम नहीं
है.
चौबे अंकिल लखनऊ यूनीवर्सिटी में पापा के साथ पढ़ चुके हैं और उनके साथ लाल
बहादुर शास्त्री हॉस्टल में भी कई साल रहे हैं. अब कुमाऊँ यूनीवर्सिटी के अल्मोड़ा
कैम्पस में उनके कलीग हैं. पापा बताते हैं कि चोरी का फ़ोबिया चौबे अंकिल को
स्टूडेन्ट लाइफ़ में भी था. पूरे हॉस्टल में सिर्फ़ उन्हीं की साइकिल थी जिसकी
हिफ़ाज़त के लिए भैंस बांधने वाली ज़न्जीर और एक किलो के अलीगढ़ी ताले का उपयोग
किया जाता था. अपने हॉस्टल के कमरे की रखवाली भी वो जी-जान से करते थे। अगर उन्हें टॉयलेट
भी जाना होता था तो दरवाज़े पर कम से कम दो ताले ज़रूर जड़ कर जाते थे.
अल्मोड़ा जैसे निरापद स्थान में भी चौबे अंकिल
के घर की सुरक्षा का प्रबन्ध चित्तौड़ गढ़ की सुरक्षा के पैटर्न पर किया गया है.
आप की हमारी तो क्या बिसात है, मक्खी, मच्छर भी उसमें बिना
चैकिंग कराए आ-जा नहीं सकते. उनका घर लोहे के दरवाज़ों और मोटी-मोटी सलाखों से सजी
खिड़कियों के लिए प्रसिद्द है. उनके घर का वराण्डा भी मोटी आयरन ग्रिल से कवर किया
गया है. अगर आप उनके घर जाएँगे तो आपको वराण्डे के बाहर लगी कॉलबेल बजानी होगी
जिसकी आवाज़ सुनकर डोर में लगी मैजिक आई में कुछ हरकत होगी. एक जोड़ा आँख आपका
इंस्पेक्शन करेगी. आपको यदि शत्रु नहीं समझा गया तो ग्रीन सिग्नल दिया जाएगा, फिर दो ताले खोलकर
दरवाज़ा खोला जाएगा और उसके बाद ताला खोलने वाला आपसे पूछताछ करके संतुष्ट हो जाने
के बाद ही वराण्डे की सुरक्षा के लिए लगी ग्रिल का ताला खोलकर आपको घर के अन्दर
आने देगा. इस ऑपरेशन में कम से कम दस मिनट तो लग ही जाएँगें, तब तक आपको खुले आकाश के
नीचे ही खड़ा रहना पड़ेगा. पापा ने अपने सभी दोस्तों से कह रखा है कि चौबे साहब के
घर तभी जाओ जब बारिश, तेज़ घूप या ठन्डी
बर्फीली हवा का ख़तरा न हो.
चौबे अंकिल का तो इरादा अपने घर के चारो तरफ़ सुरक्षा के लिए खाई खुदवाने का
था पर नगरपालिका के ऐतराज़ के बाद उन्हें अपना यह इरादा छोड़ना पड़ा है. चौबे अंकिल का परिवार जब घर से निकलता है तो वार-स्केल पर सुरक्षा की
व्यवस्था की जाती है. कोड नम्बरयुक्त मास्टर लॉक और दो-चार अलीगढ़ी ताले जड़कर ही चौबे परिवार घर छोड़ता है.
पापा कहा करते थे कि चौबे साहब के यहाँ चोरी होना रिज़र्व बैंक ऑफ़ इण्डिया में
चोरी होने से भी बड़ा समाचार होगा. पर एक दिन ऐसी अनहोनी हो ही गई.
जी हाँ ! अल्मोड़ा के चित्तौड़ गढ़ में चोरी हो
गई. सुबह-सुबह चौबे अंकिल की बेटी नीतू दीदी ने हमारे घर आकर इस दुर्घटना का
समाचार दिया. पापा उल्टे पाँव, बिना चाय-नाश्ता किए हुए, चौबे अंकिल के घर के लिए चल दिए. हम दोनों बहनें भी उनके साथ हो लीं. यह चोरी भी अजीबोगरीब किस्म की थी. सात तालों को बिना तोड़े, सलाखों और ग्रिलों को
बिना काटे चोर घर में घुसा और माल लेकर चम्पत हो गया. रौशनदान, खिड़कियाँ और दरवाज़े सभी
पहले की तरह थे. पापा को देखते ही बदहवास चौबे अंकिल ने उन्हें कोसना शुरू कर दिया –
‘क्यों मित्र ! अब तो तुम्हारी छाती ठन्डी हो गई होगी. हो गई न हमारे चित्तौड़ गढ़ में चोरी ! तुम सब की नज़र लग गई
मेरे घर को. कम्बख़्त चोर मेरे जीवन भर की कमाई ले गया.’
मेरी छोटी बहन रागिनी दि ग्रेट डिटेटिक्व ने तुरंत जान लिया कि चोरी कैसे हुई
होगी. उसने चौबे अंकिल पर यह राज़ खोलते हुए कहा –
‘अंकिल ! चोर ज़रूर घर के पिछवाड़े से सुरंग बनाकर आपके घर में घुसा है. चलिए पहले घर के पिछवाड़े चलकर सुरंग का पता करते हैं. ’
चौबे अंकिल ने रागिनी को बजाय शाबाशी देने के, उसे ज़ोर से घुड़का और दाँत पीसकर पापा से बोले –
‘तुम चोट पहुँचाने के लिए कौन कम थे जो मेरे
घावों पर नमक छिड़कने के लिए इन आफ़त की पोटलियों को अपने साथ लाए हो? इन छुटके शेरलक होम्सों को अपने घर भेजो और मेरे साथ चुपचाप कोतवाली चलो. ’
पापा ने हम बहनों को वापस घर जाने का इशारा किया पर हम टस से मस नहीं हुए. इसके बाद उन्होंने डाँटकर हमें घर जाने का हुक्म दिया पर हम फिर भी नहीं माने. हमको कोतवाली जाकर एफ़आई़आर लिखवाने में चौबे अंकिल की मदद जो करनी थी. चौबे अंकिल का बस चलता तो हम दोनों को कच्चा चबा जाते पर वक़्त की नज़ाकत
समझकर उन्हें अपने साथ हमारा कोतवानी चलना भी मन्ज़ूर करना पड़ा.
हम कोतवाली पहुँचे तो देखा कि वहाँ पहले से ही
यूनिवर्सिटी का आधा स्टाफ़ और करीब सौ स्टूडेन्ट्स मौजूद हैं. पूरे अल्मोड़े में चित्तौड़ गढ़ में हुई चोरी का समाचार आग की तरह फैल चुका
था. दो कान्सटेबिल भीड़ को कन्ट्रोल करने की नाकाम कोशिश कर रहे थे. इन्सपेक्टर साहब बेसब्री से चौबे अंकिल का इन्तज़ार कर रहे थे. चौबे अंकिल ने फ़ोन पर उन्हें पहले ही ख़बर दे दी थी. अंकिल और पापा को बड़े अदब से कुर्सियों पर बिठाकर इन्सपेक्टर साहब ने पूछा –
‘ गुरूजी ! आपके यहाँ चोरी? आपका घर तो पूरा किला है. ज़रा डिटेल में चोरी के बारे में बताइए. ’
रुआँसे चौबे अंकिल ने ताना मारते हुए कहा –
‘ देख लीजिए आप अपने स्टाफ़ की एफ़ीशियेंसी. पूरे अल्मोड़ा में आप लोगों की थू-थू हो रही है. मैं तो लुट गया. सात ताले पार करके चोर मेरे घर से सामान लेकर चम्पत हो गया
और आप कोतवाली में टाँग पर टाँग धरे आराम कुर्सी पर खर्राटे भर रहे हैं. अब
मेहरबानी करके मेरी रिपोर्ट तो लिखिए.’
इतनी बड़ी भीड़ के सामने अपनी और अपने स्टाफ़ की किरकिरी होते देख इन्सपेक्टर
साहब ने गाली-गलौज कर हवा में डन्डा लहराते हुए पब्लिक को कोतवाली से बाहर खदेड़कर
फाटक बन्द करवा दिया. अब कोतवाली में सिर्फ़ ज़रूरी लोग और हम दोनों बहनें बाकी थे.
इन्सपेक्टर साहब ने ज़रा सख़्त आवाज़ में चौबे अंकिल से कहा -
‘ गुरु जी ! पुलिस को बाद में कोस लीजिएगा. पहले आप डिटेल में बताइए कि क्या हुआ. क्या-क्या सामान चोरी हुआ और आप को किस पर शक है?’
अब तक इन्सपेक्टर साहब ने हम सबके लिए क्रीम बिस्किट्स और चाय मँगवाली थी. पुलिस वालों के आतिथ्य सत्कार को
देखकर हमारा दिल तो बागबाग हो गया था. बिस्किट्स खाते और चाय की चुस्कियाँ लेते हुए
चौबे अंकिल ने पहले तो अपने घर की सुरक्षा-व्यवस्था की डिटेल में जानकारी दी फिर
शहर के करीब एक दर्जन लोगों पर इस चोरी के लिए अपना शक ज़ाहिर किया. उन्होंने ने इस चोरी के पीछे किसी इन्टरनेशनल गैंग के हाथ की सम्भावना भी जताई. चौबे अंकिल ने अपराधियों को फाँसी दिए जाने की ज़ोरदार
माँग करते हुए दहाड़ मारकर रोना शुरू कर दिया.
इन्सपेक्टर साहब ने अपनी हँसी और गुस्सा दबाते हुए कहा –
‘ इंटरनेशनल गैंग के इन्वाल्वमेन्ट की जाँच हम फिर कर लेंगे और चोरों को फाँसी देने का फ़ैसला
अदालत पर छोड़ देंगे पर पहले उन्हें पकड़ा तो जाए. आपने अब तक यह नहीं बताया है कि आपके घर से
क्या-क्या चोरी हुआ है.’
चौबे अंकिल ने अब चोरी हुए सामान के
डिटेल्स देते हुए कहा -
‘
अजी बचा ही क्या? कम्बख़्त सब कुछ लूटकर ले गए. लखनऊ के चौक बाज़ार से पिछले साल ही ढाई सौ
रुपये का रेशमी कुर्ता लिया था. मुश्किल से दस-बारह बार पहना होगा. बॉम्बे डाइंग
का लार्ज साइज़ टॉवल भी गायब है, मेरे स्वर्गीय दादाजी की यादगार, उनका शेविंग किट मिसिंग है और हजामत बनाने
वाला मिरर भी नहीं मिल रहा है. टीवी का रिमोट भी नहीं है. एक नया टूथपेस्ट, एक ऑलमोस्ट नया टूथब्रश, सोपकेस में रक्खा टॉयलेट सोप,
एक जापानी नेलकटर, रामायण की गुटका, एक बॉल पेन और मेरी एक नयी 365 पेज वाली डायरी के साथ मेरे पर्स से पूरे एक सौ सत्तर रुपये गायब
हैं. हो सकता है कुछ और सामान भी गया हो पर अभी तो इतना ही याद आ रहा है.’
चोरी के सामान के डिटेल्स सुनकर पापा ने ‘ धत्तेरे की ’ कहकर एक ज़ोरदार ठहाका
लगाया पर इन्सपेक्टर साहब गम्भीर बने रहे. उन्होंने फिर पूछा –
‘ आपके हिसाब से चोरी हुए सामान की कुल क्या कीमत होगी?
चौबे अंकिल ने आह भरकर कहा –
‘ दादाजी की निशानी - उनका शेविंग किट और मिरर मेड-इन-इंग्लैण्ड थे, वो तो बेश-कीमती थे. कुल सामान करीब नौ सौ रुपये का तो होगा ही. ’
इन्सपेक्टर साहब ने दाँत पीसते हुए पूछा –
‘ हम क्या नौ सौ रुपल्ली की टुटपुंजिया चोरी की रिपोर्ट लिखने के लिए यहाँ बैठे
हैं? हमको क्या और कोई काम
नहीं है?’
चौबे अंकिल नाराज़ होकर बोले –
‘ ये आप कैसी बात कर रहे हैं? सवाल सिर्फ़ नौ सौ रुपये के सामान की चोरी का नहीं है. सवाल दादाजी की निशानी जाने का भी है और उससे बड़ा सवाल यह है कि बिना ताले, ग्रिल और सलाखें तोड़े चोर घर में घुसा कैसे और सामान लेकर चम्पत चम्पत कैसे
हो गया? आप तो पूरा पुलिस फ़ोर्स
इस काले चोर को पकड़ने में लगा दीजिए ताकि उसे अदालत फाँसी की सज़ा सुना सके.’
इन्सपेक्टर साहब ने ताना मारते हुए कहा –
‘ कहिए तो इस मिस्ट्री को सॉल्व कराने के लिए कब्र खुदवा कर अगाथा क्रिस्टी को
बुलवा लूँ या कहें तो स्काटलैण्ड यार्ड को केस रिफ़र करवा दूँ?'
चौबे अंकिल ने कहा –
‘ अगाथा क्रिस्टी को कब्र से उठाने की ज़रूरत नहीं है और न ही स्काटलैण्ड यार्ड
की सेवाएँ लेने की पर कम से कम सी. बी. आई. को तो आप यह केस सौंप ही सकते हैं.’
इन्सपेक्टर साहब के सब्र का बाँध अब टूट चुका था. उन्होंने सख़्त लहजे में कहा –
‘ छुटटे पैसे और अण्डर वियर, बनियान की चोरी होने की रिपोर्ट आप अपने घर के
थाने में किया कीजिए. आपकी रिपोर्ट हमारे यहाँ हरगिज़ दर्ज नहीं की जाएगी. हम सबके दो घण्टे आपने बरबाद कर दिए. जाइए घर में ही चोर की तलाश कीजिए. और हाँ! चाय और बिस्किट्स के साठ रुपये हमारे मुंशीजी को देते जाइए.’
अपनी रुलाई और अपना गुस्सा रोकते हुए चौबे अंकिल ने अपनी जेब से साठ रुपये
गवाँकर कोतवाली से घर के लिए प्रस्थान किया. उनकी मुसीबत में उनके साथी, हम दोनों बहनें अब भी
उनके साथ थे. पापा खुलकर चौबे अंकिल के गधेपन को कोस रहे थे. दिन के ग्यारह बज गए थे पर पापा के पेट में दो
बिस्किट्स और एक प्याली चाय के सिवा कुछ नहीं गया था. पिछले चार घण्टों से वो अपने मित्र की सेवा में लगे थे. पापा ने रोते-बिसूरते चौबे अंकिल की पीठ पर एक जो़रदार धौल जमाते हुए कहा –
‘ बेवकूफ़ ! इन्सपेक्टर ने तुम्हें इस बेवकूफ़ी के लिए लॉक-अप में नहीं डाला, यह क्या कम है? भला गाजर-मूली, टमाटर की चोरी की रिपोर्ट कौन लिखेगा? ख़ामख़्वाह मेरा इतना टाइम बरबाद किया. जाओ अपना घर तलाशो ! सब सामान घर के अन्दर ही
मिल जाएगा. ’
चौबे अंकिल पापा पर दहाड़े –
‘ यू ब्रूटस ! तुम्हारे जैसे मेहरबान दोस्तों के रहते मुझे दुश्मनों की क्या
ज़रूरत है? रात में ताले बन्द करते
वक़्त मैंने खुद सारा सामान चैक किया था फिर सुबह छह बजे तक उसे क्या ज़मीन खा गई
या आस्मान निगल गया?
पापा बोले - ‘ मूर्ख राज ! पूरी दुनिया में खोजबीन करवाना चाहते हो, ज़रा अपने घर की
तलाशी भी तो ले लो. ’
चौबे अंकिल को पापा की बात में कोई दम नज़र नहीं आया पर चौबे आंटी ने फ़ौरन घर
की अल्मारियों, रैक्स, सूटकेसेज़ और बक्सों की
तलाशी लेना शुरू कर दिया. सबने दो घण्टे तक पूरा घर छान मारा पर चोरी गया सामान नहीं
मिला. पापा की हार होते देख चौबे अंकिल इस दुख की घड़ी में भी मुस्कुरा रहे थे. इस तलाशी के दौरान चौबे अंकिल का पाँच साल का बेटा पप्पू सबसे नज़रें चुराकर
सहमा-सहमा सा एक बड़े से बैग पर बैठा हुआ था. पापा ने उसको गहरी नज़रों से देखा और फिर उससे
बड़े प्यार से कहा –
‘ पप्पू बेटे ! हमारे पास आइए. आप बैग पर क्यों बैठे हैं? हमको इस बैग की तलाशी लेनी है.’
पप्पू भैया के निजी सामान के साथ चोरी गया सारा सामान बैग में मौजूद था. रोता हुआ नन्हा सा, प्यारा सा चोर हमारे सामने खड़ा था. इन्क्वायरी के बाद पता चला कि कल रात अपनी
मम्मी की डाँट से दुखी होकर पप्पू भैया ने घर छोड़कर अपने दादाजी के यहाँ इलाहबाद
जा़ने का फ़ैसला कर लिया था. उनकी छोटी सी बुद्धि में जो समझ आया वह उन्होंने साथ ले
जाने के लिए एक खाली बैग में भर लिया था. सवेरे के समय उनका घर से चुपचाप निकलने का
इरादा था पर उन्हें क्या पता था कि उनके पापा उनसे बड़े नाटकबाज निकलेंगे और ज़रा
सी बात का इतना बड़ा फ़साना बना देंगे.
मिस्ट्री सॉल्व हो जाने की खुशी में चौबे आंटी के हाथ की कचौडि़याँ और लड्डू
खाते हुए पापा ने चौबे अंकिल के कान पकड़कर उनसे पूछा-
‘ क्यों मित्र ! अब चोर को फाँसी पर चढ़ाया जाए या इस चोरी की रिपोर्ट करने वाले
को? ’
चौबे अंकिल ने अपना कान छुड़ाकर हें हें हें करते हुए कहा –
‘ मेरे चित्तौड़ गढ़ में चोरी होना नामुमकिन है यह तो तुमको मानना ही पड़ेगा. वैसे तुम्हारा जासूसी दिमाग बड़ा तेज़ है, अब आगे से अपने घर की फ़ुल-प्रूफ़ सीक्योरिटी
के लिए तुम्हारी सलाह ज़रूर लिया करूँगा.’
चोरी की घटना के बाद चौबे अंकिल के घर में सुरक्षा के इन्तज़ाम और पुख़्ता कर
दिए गए हैं. हमारे पप्पू भैया हमेशा के लिए अपने पापा के लिए शक के दायरे में आ गए हैं. बेचारे को रोज़ाना सोने से पहले और स्कूल जाते वक़्त अपने बैग और अपने कपड़ों
की तलाशी देनी पड़ती है.