रविवार, 17 जनवरी 2021

जातक कथाएँ

 जातक कथाएं प्राचीन नीतिसाहित्य की अनुपम रचनाएं हैं. इनमें बोधिसत्व के जीवन की अर्थात् भगवान बुद्ध के बुद्धत्व प्राप्त करने से पूर्व के तथा उनके पूर्व जन्मों से सम्बन्धित 547 कहानियां संग्रहीत हैं. जातक कथाओं का पहली बार उल्लेख 380 वर्ष ईसा पूर्व हुआ है. ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण के तुरन्त बाद ही उनके भक्तों द्वारा उन्हें लोकगाथाओं के नायक के रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा था. इन्हीं लोकगाथाओं ने जातक कथाओं का रूप ले लिया. जातक कथाएं पाली भाषा में हैं जोकि बौद्ध धर्म की मूल भाषा है.

प्रत्येक जातक कथा में मुख्य पात्र बोधिसत्व होता है. बुद्ध होने से पूर्व भगवान बुद्ध, राजकुमार सिद्धार्थ के रूप में तथा अपने समस्त पूर्व जन्मों में बोधिसत्व कहलाते हैं. र्तमान में हुई किसी घटना के सन्दर्भ में स्वयं भगवान बुद्ध अपने भक्तों को अपने पूर्व जन्म से सम्बद्ध कोई कथा सुनाते हैं फिर उस कथा के आधार पर वह कोई न कोई उपदेश देते हैं. सभी कथाएं गद्य में हैं परन्तु उनका अन्त पद्य से होता है जो कि स्वयं भगवान बुद्ध का उद्गार होता है. कथा कहते हुए मुख्य पात्रों को उनके पूर्व जन्म और वर्तमान काल के उनके जन्म से जोड़ा जाता है.

जातक कथाओं ने पंचतन्त्र और ईसप की नीतिगाथाओं को काफ़ी हद तक प्रभावित किया है. अनेक जातक कथाएं ज्यों की त्यों इनमें शामिल कर ली गई हैं. जातक कथाओं में कर्म तथा पुनर्जन्म सिद्धान्त का पोषण किया गया है. अनेक कथाओं में बोधिसत्व मात्र दर्शक होते हैं पर उनको किसी न किसी रूप में कथा में शामिल कर इन कथाओं को जातक कथाओं का स्वरूप दे दिया जाता है. जातक कथाओं का प्रसार उन सभी देशों में हुआ जहाँ कि बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ. जातक कथाओं का संस्कृत में अनुवाद हुआ और बाद में इनका अनुवाद प्राचीन फ़ारसी में भी हुआ. इन दोनों भाषाओं के ज़रिये जातक कथाओं का प्रसार यूरोप में भी हुआ. जातक कथाओं का अनुवाद चीनी भाषा में भी हुआ है. प्राचीन काल में ही तिब्बती भाषा में जातक कथाओं का अनुवाद हो चुका था.

अन्तिम दस जातक कथाएं विस्तृत प्रेमकथाएं हैं. इनमें सबसे अन्तिम जातक कथा - 'वेसान्तर जातक' को म्यामार में नाट्य रूप में दिखाया जाता है.

जातक कथाओं को चित्रात्मक रूप में प्रस्तुत करने की परम्परा बहुत पुरानी है. ईसा पूर्व तीसरी तथा दूसरी शताब्दी में हमें जातक कथाओं की चित्रात्मक प्रस्तुति मिलती है. भरहुत के स्तूप में जातक कथाओं का चित्रण इसका प्रमाण है. दीवालों को उकेर कर मूर्तियों के रूप में तथा चित्र बनाकर जातक कथाओं को प्रस्तुत किया गया है. अजंता की गुफ़ाओं में अनेक जातक कथाओं को चित्रित किया गया है.

अजंता की गुफ़ा-1 में शिवि जातक की कथा का चित्रांकन किया गया है.

राजा शिवि के दान की कथा का वर्णन सर्वप्रथम महाभारत में मिलता है.

राजा शिवि की दानशीलता प्रसिद्ध थी. अग्नि और इन्द्र ने उनकी दानशीलता की परीक्षा लेने के लिए कपोत का रूप धारण किया. एक बाज उनका पीछा कर रहा था. दोनों कपोत जान बचाकर राजा शिवि की गोद में जा छुपे. बाज भी उनका पीछा करता हुआ राजा के पास पहुँच गया. बाज ने जब राजा से अपना शिकार वापस माँगा तो राजा ने शरणागत कपोतों के बदले उनके वज़न के बराबर अपना माँस देने का प्रस्ताव रक्खा जो कि बाज ने स्वीकार कर लिया. दोनों कपोतों को तराजू के एक पलड़े में बिठाया गया और दूसरे पलड़े में राजा शिवि अपनी जाँघ से माँस काट-काट कर रखते रहे पर कपोतों वाला पलड़ा झुका ही रहा. अन्त में राजा शिवि खुद ही तराजू के पलड़े में बैठ गए. कपोतों की जान बचाने के लिए राजा शिवि का यह त्याग देखकर अग्नि और इन्द्र अपने असली रूप में आ गए और उन्होंने राजा को पहले जैसा बना कर उनकी दानशीलता की भूरि-भूरि प्रशंसा की.

चंपेय्य जातक की कथा बड़ी रोचक है. नागराज चंपेय्य के रूप में बोधिसत्व अपने विलासी जीवन से ऊब कर तप करने की इच्छा से मनुष्य लोक में जाकर एक बांबी में रहने लगे. एक संपेरे ने उन्हें पकड़ लिया और वह उन्हें नचा-नचा कर अपनी जीविका चलाने लगा. नागराज चंपेय्य की रानी सुमना अपने स्वामी नागराज चंपेय्य के विरह में दिन-रात रोती रहती थी. एक बार जब वाराणसी के राजा उग्रसेन के दरबार में संपेरा बोधिसत्व नागराज चंपेेय्य को को नचा रहा था तो नागरानी सुमना ने राजा से प्रार्थना करके नागराज चंपेय्य को मुक्त करा लिया. कृतज्ञ चंपेय्य राजा उग्रसेन को नागलोक ले गया और वहाँ एक सप्ताह तक उनका खूब सत्कार किया और उन्हें विदा करते समय उसने उन्हें उपहार में प्रचुर मात्रा में धन-सम्पत्ति देकर विदा किया.

आर्यशूल की जातक माला में हस्ति जातक की कथा दी गई है. एक जन्म में बोधिसत्व शक्तिशाली हाथी थे. वो जंगल में अकेले रहते थे. एक दिन बोधिसत्व ने किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी तो उन्होंने रुदन की आवाज़ की ओर प्रस्थान किया. वहाँ जाकर उन्होंने देखा सात सौ यात्रियों का समूह भूख और प्यास से तड़प रहा है. विशाल हाथी को अपनी ओर आते देखकर यात्री भयभीत हो गए पर हाथी-योनि वाले बोधिसत्व ने उनका भय दूर करके उनके कष्ट का कारण जानना चाहा. यात्रियों ने उन्हें बताया कि वे अपने राजा द्वारा निष्कासित एक हज़ार लोगों में से जीवित बचे हुए हैं पर जल्द ही वो भी भूख से मरने वाले हैं. बोधिसत्व ने यात्रियों से कहा कि यदि वो झील के पास पर्वत की ओर जाएंगे तो उन्हें एक मृत हाथी मिलेगा. इस हाथी का माँस खाकर वे अपनी भूख मिटा कर अपनी शेष यात्रा पूरी कर सकते हैं. यात्रियों को पर्वत की ओर रवाना करके बोधिसत्व दूसरे रास्ते से उनसे पहले ही वहाँ पहुँच गए और उन्होंने पर्वत से कूदकर अपनी जान दे दी. यात्री जब पर्वत के पास पहुँचे तो उन्होंने उस मृत हाथी को पहचान लिया. हाथी के त्याग के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए यात्रियों ने उसका माँस खाकर अपनी भूख मिटाई और झील का पानी पीकर अपनी शेष यात्रा पूरी की.

विश्वंतर जातक कथा राजा हरिश्चन्द्र के त्याग पर आधारित है. एक बार बोधिसत्व राजा विश्वंतर के रूप में जन्मे थे. विश्वंतर बड़े दानी थे. उनकी दानशीलता की परीक्षा लेने के लिए इन्द्र ने लीला रची. एक बार विश्वंतर ने अपने राज्य के हाथी को दान में दे दिया. इस हाथी की विशेषता यह थी कि वह अपनी इच्छानुसार वर्षा करा सकता था. इस कारण राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ता था पर इस हाथी को राजा द्वारा दान में दिए जाने के बाद राज्य में वर्षा नहीं हुई और उस हाथी के अभाव में यह अनावृष्टि शीघ्र ही अकाल में बदल गई. क्रुद्ध जनता ने राजा को सपरिवार राज्य से निष्कासित कर दिया. राजा को अपनी दानशीलता की परीक्षा देते हुए अपने धन से हाथ धोना पड़ा और उन्हें अपने बच्चे और अपनी पत्नी सभी को बेचना पड़ा. पर वह अपनी दानशीलता की हर परीक्षा में खरे उतरे और इन्द्र ने उनकी दानशीलता से प्रसन्न होकर उनका परिवार, उनका खोया हुआ वैभव और उनका राज्य उन्हें वापस कर दिया.

शरभ जातक की कथा अत्यन्त मार्मिक है. बोधिसत्व एक जन्म में शरभ नामक हरिण थे. वह जंगल में रहते थे । एक बार वाराणसी का राजा उनका शिकार करने के उनका पीछा करता हुआ एक गहरे गड्ढे में जा गिरा. शरभ हरिण को शिकारी राजा की दशा देखकर उस पर दया आ गई.उसने पहले अपनी पीठ पर पत्थर ढो-ढो कर वज़न उठाने का अभ्यास किया फिर उसने राजा को गड्ढे में से निकाला और उसे अपनी पीठ पर लादकर उसे सुरक्षित उसके घर तक पहुँचा दिया.

क्रक्ष जातक में एक रीछ के रूप में जन्मे बोधिसत्व एक शिकारी के जाल में फँसे मृग की रक्षा करने में अपने प्राणों की आहुति दे दी.

भगवान बुद्ध के महाभिनिष्क्रमण ( गृहत्याग) की कथा भी जातक कथा के रूप में दी गई है -

राजा शुद्धोधन ने बोधिसत्व राजकुमार सिद्धार्थ की वैराग्य की भावना को देखकर उनके मन में विलास की भावना जगाने के लिए उन्हें सुन्दरियों से घेर दिया. ये सुन्दरियां रात-दिन राजकुमार को अपनी कला से लुभाती रहती थीं. राजकुमार भी उनके रूप और उनकी कला के प्रशंसक होने लगे थे. पर एक रात राजकुमार ने अपने पास असावधान रूप से सो रही सुन्दरियों को देखा तो उनका बिना सजा-सँवरा रूप देखकर उन्हें बड़ी विरक्ति हुई. उनके मन में विलासिता के प्रति घृणा उत्पन्न हुई और उन्होंने गृहत्याग का निश्चय किया. उन्होंने अपने सारथी छन्न को जगाकर रथ तैयार करने के लिए कहा. गृहत्याग से पहले उन्होंने अपने पुत्र राहुल और पत्नी यशोधरा को अन्तिम बार देखना चाहा. सोते हुए राहुल और यशोधरा को द्वार के बाहर से बोधिसत्व ने देखा, पुत्र को देखकर एक क्षण के लिए उनके मन में मोह जागा पर उन्होंने अपने मन की इस दुर्बलता पर विजय प्राप्त की और फिर शान्त मन से गृहत्याग करके उन्होंने छन्न के साथ वन के लिए प्रस्थान किया.

जातक कथाओं ने हमारे भारतीय साहित्य और संस्कृति को तो प्रभावित किया ही है, साथ ही साथ इसने विश्व के अन्य देशों के साहित्य और आख्यान कथाओं को भी काफ़ी हद तक प्रभावित किया है.

जातक कथाओं को चित्रों और मूर्तियों में भी प्रस्तुत किया गया है. अजंता के अधिकांश चित्र जातक कथाओं पर ही आधारित हैं.

कथाओं के माध्यम से पाठकों को उपदेश देने की प्रथा बड़ी प्राचीन है परन्तु जातक कथाओं ने इस परम्परा को और भी अधिक विकसित किया.

जातक कथाएं पाली गद्य साहित्य की सर्वश्रेष्ठ और सबसे अधिक लोकप्रिय रचनाएं हैं. ये कथाएं हमारे जीवन में रच-बस गई हैं और हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग बन गई हैं. जातक कथाएं प्राचीन भारत के साहित्यिक उत्कर्ष का प्रमाण हैं.

8 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. धन्यवाद मित्र. कभी-कभी पढ़ने-पढ़ाने का फिर से मन करने लगता है.

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  2. जातक कथाओं के बारे में बहुत ज्ञानवर्धक और रोचक जानकारी दी है आपने।

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  3. वाह!बहुत ही सुंदर और सार्थक रचना, जानकारियों से भरपूर। सादर नमन।

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