बुधवार, 7 जुलाई 2021

अलविदा दिलीपकुमार

 एक युग का अंत ! फ़िल्मी आकाश के सबसे चमकते सितारे का टूटना !

फ़िल्म इतिहास के पहले तीन सुपर हीरोज़ के सबसे वरिष्ठ सदस्य का हमसे बिछड़ना !
हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !
दिलीपकुमार के प्रशंसक के रूप में मैं उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देते हुए उनकी चंद यादगार फ़िल्मों को याद करना चाहता हूँ.
'अंदाज़' (1949) दिलीपकुमार की वो पहली फ़िल्म थी जिसने उन्हें हिंदी फ़िल्मों का अभिनय सम्राट बना दिया था. एक असफल प्रेमी के दर्द को जिस शिद्दत के साथ उन्होंने परदे पर उतारा था, उसका कोई जवाब नहीं था.
'दाग' में एक शराबी की भूमिका में भी उन्होंने सबको प्रभावित किया था.
'देवदास' में बिमल रॉय ने उन से ऐसा अभिनय करवाया था, जिस बेमिसाल अभिनय को ख़ुद दिलीपकुमार भी आगे चल कर दिखा नहीं पाए थे. अगर शरतचन्द्र चटर्जी दिलीपकुमार को देवदास की भूमिका निभाते हुए देखने के लिए जीवित होते तो उन्हें भी यही लगता कि उनकी कल्पना का देवदास उनके सामने आकर खड़ा हो गया है.
दिलीपकुमार ट्रेजेडी किंग के रूप में स्थापित हो गए थे लेकिन त्रासदी वाली भूमिका निभाते-निभाते वो ख़ुद डिप्रेशन में आ गए थे.
उन्होंने 'आज़ाद', कोहिनूर', 'लीडर', 'राम और श्याम' 'गोपी'और 'सौदागर' में हल्की-फुल्की भूमिकाएँ कर हमारा भरपूर मनोरंजन किया था.
दिलीपकुमार एक तरफ़ ट्रेजेडी किंग के रूप में प्रतिष्ठित हुए थे तो दूसरी तरफ़ रोमांस के भी वो बादशाह थे. उनका सा सॉफ्ट रोमांस कर पाना किसी अन्य अभिनेता के बस में नहीं था.
'तराना' में मधुबाला के साथ और 'मधुमती' में वैजयंतीमाला के साथ उनके रोमान्टिक सीन्स शालीनता के साथ कितनी गहराई लिए हुए हैं, इसकी थाह पाना मुश्किल है.
महबूब खान के निर्देशन में बनी फ़िल्म 'अमर' दिलीपकुमार की सफल फ़िल्म नहीं थी लेकिन अपने अभिनय से एक बलात्कारी के पश्चाताप को उन्होंने इस फ़िल्म में जिस तरह जीवंत किया था, वह बेमिसाल था.
मधुबाला और दिलीपकुमार की जोड़ी का टूटना, भारतीय फ़िल्म उद्योग के लिए सबसे बड़ी क्षति थी. इस जोड़ी से पहले और उसके के बाद कई जोड़ियाँ फ़िल्मी परदे पर मशहूर हुईं लेकिन इस जोड़ी वाली बात किसी में भी नहीं आई.
दिलीपकुमार की 'गंगा-जमुना' को फ़िल्म उद्योग को उनका सबसे ख़ूबसूरत तोहफ़ा कहा जा सकता है.
इस फ़िल्म के बाद धीरे-धीरे दिलीपकुमार का जादू फीका पड़ने लगा था.
एक चरित्र अभिनेता के रूप में 'मशाल' और फिर 'शक्ति' में दिलीपकुमार ने फिर हम सबका दिल जीत लिया था.
'मशाल' में सड़क पर दम तोड़ती हुई अपनी पत्नी के इलाज के लिए राह चलते हर शख्स से मदद की भीख मांगने वाले इंसान को देख कर किसकी आँखें नाम नहीं हुई होंगी?
'शक्ति' में अपनी पत्नी की हत्या के बाद अपने रूठे हुए बेटे को जिस बेबसी से एक पिता देखता है, उस दृश्य को बिना कोई संवाद बोले, यादगार बनाना सिर्फ़ दिलीपकुमार के बस में था.
महबूब खान, बिमल रॉय, अमिय चक्रवर्ती, नितिन बोस, के. आसिफ़ और रमेश सिप्पी जैसे निर्देशकों ने उन से बहुत बेहतर काम लिया था.
दिलीपकुमार एक बुद्धिजीवी और साहित्य-प्रेमी कलाकार थे.
उनके अभिनय में गहराई थी और किरदार को इमानदारी के साथ निभाने की ललक थी.
उनका उर्दू उच्चारण लाजवाब था. 'मुगले आज़म' में बाग़ी सलीम की कठिन और चुनौतीपूर्ण भूमिका निभाते समय उनके संवाद आज उर्दू साहित्य के विद्यार्थियों के लिए भी प्रेरणादायक हो सकते हैं.
हिंदी फ़िल्म-उद्योग में उनके लिए भूतो न भविष्यत् का प्रयोग किया जाना सर्वथा उचित है.
अलविदा दिलीपकुमार ! आप जन्नत में ख़ुश रहें !
आप आज की पीढ़ी के लिए ही नहीं बल्कि आने वाली कई पीढ़ियों के लिए श्रेष्ठ अभिनय का सबसे ऊंचा मुक़ाम हासिल करने वाली शख्सियत बने रहेंगे.
हमारा आपको आख़िरी सलाम !

16 टिप्‍पणियां:

  1. अभिनय की बारीकियों को तो मैं बखूबी नहीं समझ पाता लेकिन हमें दिलीप कुमार और अभिनय दोनों एक दूसरे के पर्याय नज़र आये। शक्ति में एक विद्रोही पुत्र के पिता का उनका अभिनय मुझे अंदर तक अब भी आह्लादित कर जाता है। उस महान अभिनेता को इतनी शिद्दत से याद करने के लिए आपके संजीदा लेख को भी नमन! ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे और आपकी लेखनी को दीर्घायु बनाये🙏🙏🙏

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    1. मेरी श्रद्धांजलि की प्रशंसा के लिए धन्यवाद मित्र !
      एक सवाल इस तरह का आता है - 'रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए.'
      लेकिन जो स्थान अभिनय की दुनिया में दिलीपकुमार ने ख़ाली किया है, उसकी पूर्ति कोई नहीं कर सकता.
      दिलीपकुमार सुपर स्टार और कमाल के अभिनेता एक साथ थे.

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  2. सलाम आप को और आपके दलीप कुमार को।

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    1. आपको भी हमारा सलाम और आपकी तरफ़ से अभिनय-सम्राट दिलीपकुमार को भी सलाम !

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 08 जुलाई 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    1. 'पांच लिंकों का आनंद' के 8 जुलाई, 2021 के अंक में दिलीपकुमार विषयक मेरे आलेख को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी.

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  4. दिलीप कुमार की याद में लिखा एक बेहतरीन आलेख। दिलीप जी को विनम्र श्रद्धांजलि।

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  5. सही कहा आपने ,इस रिक्त स्थान की पूर्ति कोई नहीं कर सकता । दिलीप साहब को विनम्र श्रद्धांजलि 🙏🏻

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    1. शुभा जी, दिलीपकुमार अपने बेमिसाल अभिनय की इतनी यादें छोड़ गए हैं कि उनके सहारे हम कला-प्रेमियों की ज़िंदगी आराम से बीत सकती है.

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    1. बेमिसाल और लाजवाब कलाकार को हम सब कला-प्रेमियों की विनम्र श्रद्धांजलि !

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  7. शताब्दी के महानायक को बहुत ही सार्थक श्रद्धांजलि दी है,आपने। शानदार लेख।
    दिलीप साहब को मेरी तरफ से शत शत नमन🙏🙏💐💐

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    1. जिज्ञासा,
      मेरे ख़याल से हिंदी फ़िल्मों के इतिहास में दिलीपकुमार से ज़्यादा नक़ल किसी अभिनेता की नहीं हुई है लेकिन कोई भी नक़लची उनके मुक़ाम तक पहुँच नहीं पाया है.

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  8. आदरणीय गोपेश जी,
    बहुत भावपूर्ण लिखा आपने! दिलीप कुमार यूं तो सालों से रजत पट से विदाई ले चुके थे पर उनका होना सबके लिए बहुत बडी बात थी। सुना जाता था कि मानसिक परेशानियों के चलते वे बेज़ार और लाचार थे। पर उनके जीवन में जो उन्हें लोगों के अतुलनीय स्नेह के अलावा मिला वह उनकी अत्यंत समर्पित और स्नेही जीवनसंगिनी है!कई साल पहले टी वी पर उनकी एक बात सुनकर मन बहुत भावुक हुआ। वे मुस्कुराते हुए और दिलीप कुमार को दुलारते हुए बोली ------- 'कि वे भारत के शहजादे को संभाल रही हैं जो हरमनप्यारा है '!
    सच है सायरा बानो की सेवा सुश्रुषा और गहन प्रेम को दुनिया ने देखा। वह फिल्मी दुनिया जहां रोज़ रिश्ते बनते बिगड़ते हैं, वहां दोनों के माध्यम से समर्पण और सुखद दाम्पत्य की नई इबारत लिखी गई। सायरा बानो की हर भावभंगिमा से अपने पति के लिए असीम प्रेम झलकता था। दिलीप कुमार का जादू रजत पट का स्वर्णिम इतिहास है। उसे कौन दोहरा सकता है। सिनेमा के शहज़ादे की पुण्य स्मृति को सादर नमन 🙏🙏

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    1. रेणुबाला जी, दिलीपकुमार और सायरा बानो के आपसी संबंधों में हम सिर्फ़ सायरा बानो की तारीफ़ कर सकते हैं. अस्मा काण्ड में दिलीपकुमार तो ढाई साल तक बेवफ़ाई करते रहे थे. दिलीपकुमार एक दशक से अधिक समय से बिलकुल लाचार थे. उनकी मृत्यु एक प्रकार से उनकी मुक्ति ही कही जाएगी. मैं अभिनेता दिलीपकुमार का फ़ैन हूँ, उनका अंध-भक्त नहीं हूँ. हर इंसान में कमज़ोरियाँ होती हैं, दिलीपकुमार में भी थीं.

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