शनिवार, 20 अगस्त 2022

सर्व धर्म समानत्व -

 स्वर्गीय राजीव गाँधी के राज में धर्म-विकृति अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच गयी थी.

सवर्ण हिन्दू निर्लज्ज होकर अपने दलित भाइयों की आहुति दे रहे थे.
शाह बानो प्रकरण में इस्लाम के अंतर्गत स्त्री-अधिकार की समृद्धि परंपरा की धज्जियाँ उड़ाई जा रही थीं.
जैन समुदाय में दुधमुंही बच्चियों को पालने में ही साध्वी बना कर धर्म का प्रचार-प्रसार किया जा रहा था.
उस समय खालिस्तान आन्दोलन अपने शिखर पर था.
पन्थ के नाम पर और स्वतंत्र खालिस्तान के नाम पर, अन्य धर्मावालाबियों का खून बहाया जा रहा था.
हमारे देश में ईसाई धर्म-प्रचारक डॉलर से भरी थैलियाँ खर्च कर हज़ारों की तादाद में धर्म-परिवर्तन करा, मानवता की तथाकथित सेवा कर रहे थे.
लगभग 35 साल पहले लिखी गयी इस कविता में मैंने यह प्रश्न उठाने का साहस किया है कि धर्म-विकृति को ही हम कब तक अपना धर्म मानते रहेंगे.
आज भी धर्म-विकृति को ही हम धर्म के नाम पर अपना रहे हैं.
मेरे मन में - 'सभी कुंअन में भांग पड़ी' की कहावत को चरितार्थ करने वाले इन धर्मों की उपयोगिता पर और उनकी हमारे जीवन में आवश्यकता पर, अनेक प्रश्न उठ रहे थे, अनेक शंकाएँ भी उठ रही थीं -
सर्व-धर्म समानत्व -
जहां धर्म में दीन-दलित की, निर्मम आहुति दी जाती है,
लेने में अवतार, प्रभू की छाती, कांप-कांप जाती है।
जिस मज़हब में घर की ज़ीनत, शौहर की ठोकर खाती है,
वहां कुफ्र की देख हुकूमत, आंख अचानक भर आती है।।
जहां पालने में ही बाला, साध्वी बनकर कुम्हलाती है,
वहां अहिंसा का उच्चारण करने में, लज्जा आती है।
जिन गुरुओं की बानी केवल, मिल कर रहना सिखलाती है,
वहां देश के टुकड़े कर के, बच्चों की बलि दी जाती है।।
बेबस मासूमों की ख़ातिर, लटक गया था जो सलीब पर,
उसका धर्म प्रचार हो रहा, आज ग़रीबों को ख़रीद कर।
यह धर्मों का देश, धर्म की जीत हुई है, दानवता पर,
पर विकृत हो बोझ बना है धर्म, आज खुद मानवता पर।।

10 टिप्‍पणियां:

  1. भांग कुएं तक ठीक थी अब तो मुडेर से फ़ैल रही है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कुछ दिन बाद तो इस भांग का असर आसमान तक पहुँच जाएगा.

      हटाएं
  2. धर्म की अवधारणा ही विकृत हो गई है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सही बात है प्रतिभा जी. धर्म-मज़हब के ठेकेदार तो पी० डब्लू० डी० के ठेकेदारों से भी ज़्यादा बेइमान होते हैं.

      हटाएं
  3. मेरे विचारों से सहमत होने के लिए धन्यवाद मित्र !

    जवाब देंहटाएं
  4. धर्म को न जाने कैसे यूँ विकृत कर दिया स्वार्थ के ठेकेदारों ने।
    दारुण सत्य।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कुसुम जी, विकृत धर्म तो शुद्ध पाप से भी अधिक विनाशकारी होता है.

      हटाएं
  5. स्वार्थ सर्वोपरि, सारी विकृतियों के मूल में स्वार्थ ही है। चाहे वो धर्म विकृति हो या समाज विकृति।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. स्वार्थियों के हाथों में धर्म-मज़हब की कमान है
      सारे जहाँ से अच्छा ये कैसा हिन्दुस्तान है

      हटाएं