शनिवार, 16 जनवरी 2016

एंड येट इट स्टिल मूव्ज़

‘एंड येट इट स्टिल मूव्ज़’
महान गणितज्ञ, खगोल-शास्त्री और दार्शनिक गैलीलियो ने चर्च की इस मान्यता कि ‘पृथ्वी अपनी जगह पर स्थिर है और सूर्य सहित सभी ग्रह एवं नक्षत्र उसकी परिक्रमा करते हैं’ को खुलेआम चुनौती देते हुए कहा था कि – ‘पृथ्वी अपनी जगह पर स्थिर न होकर सतत गतिशील है और वह सूर्य की परिक्रमा करती है.’ 1633 में धर्म-अदालत द्वारा गैलीलियो पर मुकद्दमा चलाया गया. उसे केवल दो विकल्प दिए गए –
1.       वह अपने वक्तव्य को वापस ले और यह माने कि पृथ्वी अपनी जगह पर स्थिर है तथा सभी ग्रह-नक्षत्र उसकी परिक्रमा करते हैं.
अथवा
2.       वह अपने धर्म-विरुद्ध वक्तव्य के लिए कठोर दंड का भागी बने.
बूढ़े और लगभग अंधे हो चुके गैलीलियो ने अपनी जान बचाने के लिए अपनी गलती मानते हुए अपना वक्तव्य वापस ले लिया. थका-हारा, निराश गैलीलियो जब धर्म-अदालत से वापस आ रहा था तो उसका रास्ता रोक कर उसके एक प्रबल विरोधी पादरी ने उसका उपहास उड़ाते हुए उससे पूछा –
‘क्यों महान विद्वान गैलीलियो, अब तो तुमने भरी अदालत में सबके सामने यह स्वीकार किया है कि पृथ्वी स्थिर है. अब तुम्हें अपने पूर्व वक्तव्य के विषय में क्या कहना है?’
गैलीलियो ने उस पादरी के समक्ष यह स्वीकार किया कि उसे यह मानना पड़ा है कि पृथ्वी अपनी जगह पर स्थिर है. लेकिन मुस्कुराते हुए उसने पादरी से कहा –
‘एंड येट इट स्टिल मूव्ज़’ (और फिर भी यह गतिशील है) 
इस किस्से को पृष्ठभूमि में रखकर मेरी आप-बीती पढ़िए.
हमारे एक कुलपति के प्रशंसक उनकी गणना विश्व के महानतम वैज्ञानिकों में करते थे. उनके कथनानुसार कितनी बार तो उन्हें नोबल पुरस्कार मिलते-मिलते रह गया था. महान वैज्ञानिक होने के साथ-साथ हमारे ये कुलपति इतिहास के भी परम विद्वान थे. अपने भक्तों की बेहद मांग पर कुलपति महोदय ने हमारे परिसर में ‘प्राचीन भारत में वैज्ञानिक और तकनीकी विकास’ पर दो दिन तक धारावाहिक के रूप में चलने वाला चार घंटे का भाषण दिया.
इस भाषण का सार यह था कि आज की अनेक वैज्ञानिक खोजें प्राचीन भारत में हो चुकी थीं. मसलन –
1.       रावण का पुष्पक विमान यह सिद्ध करता है कि राईट बंधुओं से हजारों साल पहले भारत में विमान अर्थात वायुयान का आविष्कार हो चुका था.
2.       भारत और श्री लंका के बीच समुद्र पर पुल बनाकर नल और नील ने अपनी बेमिसाल इंजीनियरिंग स्किल का प्रदर्शन किया था.  
3.       प्लास्टिक सर्जरी तथा ऑर्गन ट्रांसप्लांट का अनुपम उदाहरण था – भगवान शंकर द्वारा गणेशजी का सर काटकर उसके स्थान पर हाथी का सर लगाना या दक्ष प्रजापति की सर-कटी गर्दन पर बकरे का सर लगाना.
4.       मार्कोनी द्वारा रेडियो के अविष्कार से 5000 साल पहले संजय द्वारा अंधे धृतराष्ट्र को कुरुक्षेत्र के मैदान में हो रहे युद्ध का आँखों-देखा वृतांत सुनाना भी प्राचीन वैज्ञानिक उपलब्धि का एक उदाहरण था.
5.       सगर के साठ हज़ार पुत्र थे जो कि ज़ाहिर है कि कृत्रिम गर्भाधान से हुए होंगे.
6.       नील आर्म्सस्ट्रोंग से बहुत पहले हमारे ऋषि-मुनि चन्द्रमा तक ही क्या, सूर्य पर भी पहुँच गए थे.
कुलपतिजी की हर बात पर पूरा लेक्चर थिएटर तालियों से गूंज रहा था.
अपना भाषण समाप्त करके महान वैज्ञानिक ने दंभ भरे स्वर में सबको ललकारा –
‘कोई सवाल हो पूछिए, कोई आपत्ति हो तो बेख़ौफ़ होकर कहिये.’
भक्तगणों ने हाथ जोड़कर उन्हें बतलाया कि ऐसा मौलिक, ज्ञानवर्धक और चमत्कारी भाषण उन्होंने न तो अब तक सुना था और न ही भविष्य में इस प्रकार अपने ज्ञान-चक्षु खुलने की उन्हें कोई आशा थी.
इसी लेक्चर थिएटर में एक अदना सा मूढ़मति मैं भी बैठा था. प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उपलब्द्धियों पर इस तरह के सैकड़ों मौलिक भाषणों को हम बरसों से सुनते आ रहे थे और ऐसी क्रांतिकारी जानकारियां देने वाली तमाम पुस्तिकाएं एक ख़ास विचारधारा के नेकर-लाठी धारी, उत्साही स्वयंसेवकों द्वारा हम बेचारों को बिन मांगे निशुल्क ही प्राप्त होती रहती थीं.
मैंने हाथ उठाया तो मुझे अपनी बात कहने की अनुमति मिल गयी. मैंने झूठ-मूठ कुलपति के विद्वत्तापूर्ण भाषण की प्रशंसा करते हुए अपनी आपत्ति रक्खी –
‘सर, मेरा निवेदन है कि सभी धर्मों, संस्कृतियों और सभ्यताओं की पौराणिक कथाओं में ऐसी काल्पनिक वैज्ञानिक उपलब्धियों का उल्लेख मिलता है किन्तु उन्हें हम ऐतिहासिक तथ्य नहीं मान सकते.’
मेरी बात पूरी हो उससे पहले ही आयोजक महोदय ने मुझसे बैठ जाने का अनुरोध किया और मेरी धृष्टता के लिए कुलपतिजी से सबकी ओर से माफ़ी भी मांग ली.
कुलपतिजी ने आयोजक महोदय को रोकते हुए मुझसे कहा –
आप की टिप्पणी पर मेरा आप से एक सवाल है –
‘आपने मेरे द्वारा कही गयी बातों को पौराणिक कथाएं और काल्पनिक वैज्ञानिक उपलब्धियां कहा है. क्या आप अपनी बात को और इतिहास की पुस्तकों में लिखी गयी सभी बातों को वैज्ञानिक दृष्टि से सिद्ध कर सकते हैं?’
मैंने जवाब दिया – ‘सर बातों को सिद्ध करने की ज़िम्मेदारी तो यहाँ आपकी होनी चाहिए.’
कुलपतिजी ने तिरस्कार भरी दृष्टि मुझ पर डालते हुए कहा –
‘मैंने अपनी हर बात को साइंटिफ़िकली प्रूव कर दिया है, आप नहीं कर पाए, बैठ जाइए.’
पूरा लेक्चर थिएटर फिर से तालियों से गूंज उठा. विजयी कुलपतिजी ने हाथ हिलाकर प्रशंसकों से विदा ली.
कुलपतिजी के एक अंध भक्त ने मेरा रास्ता रोक कर कहा –
‘यार जैसवाल, तुमसे साइंस की जानकारी की तो हमको कोई आशा नहीं थी पर तुम्हारी हिस्ट्री इतनी कमज़ोर है यह आज पता चला. तुमको छोड़कर जब सब लोग कुलपतिजी के साथ हैं तो तुम ही तो गलत हुए.’
मैंने उनसे निवेदन किया –
‘महोदय, मार्क ट्वेन ने कहा है कि अगर बहुमत तुम्हारे साथ है तो समझ लो कि तुम्हें खुद को सुधारने की ज़रुरत है.’                                      
मेरी बात समझे बिना भक्त महोदय बोले –
‘हाँ, अब तुम खुद को सुधार ही लो. कुलपतिजी की हर बात प्रामाणिक है, यह मान लो. हर बार बखेड़ा करते हो फिर मात खाते हो.’
सत्यघाती दस्ते के आधे दर्जन सदस्यों ने कुलपति-भक्त का समवेत स्वरों में साथ देकर कुलपति महोदय की मौलिक खोजों को प्रामाणिक बताते हुए मुझे अपनी गलती स्वीकार करने के लिए एक प्रकार से बाध्य किया.
मरता क्या न करता? मैंने कुलपति महोदय की खोजों को प्रामाणिक मान लिया लेकिन उसी के साथ गैलीलियो की बात भी दोहरा दी –

‘एंड येट इट स्टिल मूव्ज़’

5 टिप्‍पणियां:

  1. बखेड़ा करने की आदत अच्छी नहीं होती वो भी कुल के भगवानों के साथ :)
    कुछ लोग आदत से लेकिन बाज नहीं आते ।

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  2. त्वमेव माता, च पिता तमेव --- त्वमेव सर्वं मम देव देव, रोटी प्रदाता, प्रोन्नति प्रदाता, कुर्सी प्रदाता, भत्ता प्रदाता, बंगला प्रदाता, हम चाटुकारों के सौभाग्यदाता---- चरण-वंदन के अतिरिक्त हमको कुछ भी न आता.

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21-01-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2228 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  4. चर्चा मंच में मेरी प्रस्तुति सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद. आपके माध्यम से अधिक से अधिक पाठकों से जुड़ने में मुझे प्रसन्नता होगी.

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  5. चर्चा मंच में मेरी प्रस्तुति सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद. आपके माध्यम से अधिक से अधिक पाठकों से जुड़ने में मुझे प्रसन्नता होगी.

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