रविवार, 13 मार्च 2016

देश और देशभक्त

मैं भगोड़ा नहीं –
मैं गया वक़्त नहीं हूँ, जो नहीं आऊँगा,
लूटने मुल्क को मैं, फिर से, लौट आऊँगा.

रंग बदले ----
हुर्रे! देशभक्ति, खाकी से, भूरी, और हाफ़ से पूरी हो गई.

कबीर उवाच –
कांकर, पाथर जोड़ि कै, संसद लई बनाय,
ता चढ़ नेता रोज़ ही, जनता को बहकाय.
जनता को बहकाय, गयी अपनी मति मारी,
राज-पाट देकर उनको, खुद हुए भिखारी.
तस्कर, क़ातिल, डॉन, एक-दूजे से धाकड़,

हीरे, मोती फ़ेंक, चुन लिए हमने कांकर.

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