फ़िल्मी धुनों पर जैन-भजन
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श्रवणबेलगोला में इन
दिनों भगवान बाहुबली का महा-मस्तकाभिषेक का भव्य आयोजन हो रहा है. इस कार्यक्रम का
सीधा प्रसारण तो दिखाया ही जा रहा है, साथ ही साथ भजनों और प्रवचनों का भी निरंतर
प्रसारण हो रहा है. आज एक चेनल पर एक भक्त बड़ी बुलंद आवाज़ में –
‘बाहुबली, बाहुबली –‘
गा रहे थे.
मुझ पापी को न जाने
क्यूँ लगा कि वो फ़िल्म ‘पद्मावत’ के खल-पात्र अलाउद्दीन खिल्जी पर फिल्माया गाना –
‘खलीबली, खलीबली –‘ गा
रहे हैं.
इस महान भजन को सुनकर
भक्तों के ह्रदय में तो त्याग-वैराग्य की भावना का संचार हुआ होगा किन्तु मेरे
ह्रदय में क्रोध और क्षोभ का संचार हुआ, साथ ही साथ मेरा सर शर्म से अचानक झुक
गया.
फ़िल्मी धुनों पर बनाए
गए भजन बड़े लोकप्रिय होते हैं किन्तु मुझे वो कभी स्वीकार्य नहीं होते हैं. हमारे
जैन-भजनों की कई पुस्तिकाएँ हैं जिन में हर भजन के ऊपर ही यह अंकित होता है कि
इसको किस फ़िल्मी गाने की धुन पर गाया जाय.
हम णमोकार मन्त्र का
जाप भी करते हैं तो उसकी धुन –
‘दूर कोई गाए,
धुन ये सुनाए,
तेरे बिन छलिया रे,
बाजे न मुरलिया रे !’
ही होती है.
भगवान पार्श्वनाथ की
आराधना में हम सब गाते हैं –
‘तुम से लागी लगन,
ले लो अपनी शरण,
पारस प्यारा !
मेटो-मेटो जी संकट
हमारा !’
इस भजन के साथ अगर आपको
–
‘गम दिए मुस्तक़िल,
कितना नाज़ुक है दिल,
ये न जाना,
हाय, हाय ये, ज़ालिम
ज़माना’
(फ़िल्म ‘शाहजहाँ’ का के. एल. सहगल का गाया हुआ नग्मा) याद आ जाए तो इसमें किसका दोष है?
भगवान महावीर स्वामी
के जन्मोत्सव का भजन कुछ इस प्रकार है –
‘वह दिन था मुबारक,
शुभ थी घड़ी,
जब जन्मे थे महावीर
प्रभो,
जब जन्मे थे महावीर
प्रभो !’
आप जानते हैं कि इस
भजन की धुन किस फ़िल्मी गाने पर बनी है?
मेरा जवाब है –
‘इस दिल के टुकड़े हज़ार हुए,
कोई यहाँ गिरा,
कोई वहां गिरा.’
हमारे एक मुनि महाराज
थे. उन्हें अपनी ही स्तुति में रचा गया यह भजन बहुत प्रिय था –
‘तेरी प्यारी-प्यारी छवि मुनिवर,
अरे मेरे तो मन में
बसी.
धन्य मुनिवर !’
अगर हमको-आपको इस भजन
से ‘चश्मे बद्दूर’ वाला गाना याद आता है तो यह तो हमारी-आपकी पाप बुद्धि का
कुपरिणाम हुआ.
हर धर्म और हर
संप्रदाय में लोकप्रिय धुनों पर भक्ति रचनाएँ तैयार की जाती हैं. ईसाइयों में पॉप
संगीत पर आस्था के गीत गाए जाते हैं. अमीर ख़ुसरो के
नातिया क़लाम तो क़व्वाली की जान और शान हैं. राधेश्याम जी ने
नौटंकी की शैली में रामायण की रचना की जिसने कि लोकप्रियता के कीर्तिमान स्थापित
कर दिए. हम जैन मतावलंबियों में भी –
‘तेरे पूजन को भगवान’
(मेरे मन-मंदिर में आन, पधारो, महावीर भगवान !)
और
‘ॐ जय जगदीश हरे’
(जय महावीर प्रभो, स्वामी जय महावीर प्रभो !)
तथा श्री रामचरित
मानस के परंपरागत पाठ की धुन पर भजन बनाए गए हैं किन्तु उनको गाते हुए हमारे मन
में सदैव श्रद्धा का भाव ही उत्पन्न होता है, किसी प्रकार का
क्षोभ या ग्लानि नहीं होती.
हमको यदि लोकप्रिय
फ़िल्मी गानों पर भजन बनाने भी हैं तो कम से कम हम इस बात की सावधानी तो बरत ही
सकते हैं कि -
‘चोली के पीछे क्या है?’
या
‘रम्बा हो, हो, हो, हो !’
तथा
‘दम मारो दम, मिट जाए गम’
जैसे गानों की धुनों
से परहेज़ करें.
आजकल भड़काऊ फ़िल्मी
गानों की धुनों पर भजन गाते हुए भक्तगण नाचते भी गोविंदा और मल्लिका शेरावत के
स्टाइल में हैं. हमारे मंदिरों में नागिन नृत्य तो शायद उतना ही लोकप्रिय है जितना
कि बारातों में होता है.
मेरा भक्तगणों से
करबद्ध निवेदन है कि वो भक्ति का ऐसा कुत्सित और विकृत रूप हमको न दिखाएं ताकि
भजनों को गाते समय हमारे मन में केवल पवित्र भावों का उदय हो न कि छल, कपट और
विलासिता के भावों का.