शनिवार, 25 अगस्त 2018

दूनं शरणं गच्छामि


राजीव गाँधी का शासनकाल 1984 के दंगों से प्रारंभ हुआ और उनके जीवन का दुखद अंत श्री लंका में उनकी अव्यावहारिक दखलंदाज़ी के प्रतिशोध के रूप में हुआ. आज उनके जाने के सत्ताईस साल से भी अधिक समय के बाद हम उनके द्वारा भारत को कम्प्यूटर युग में प्रविष्ट कराने के कारण याद करते हैं. लेकिन उनके शासन काल में दून पब्लिक स्कूल में उनके अधकचरे, अव्यावहारिक, अहंकारी और आम जनता से कोसों दूर, उनके साथियों के राजनीतिक प्रभुत्व से हम सब त्रस्त थे.
1987 में मैंने यह कविता लिखी थी जो कि उस समय ‘जनसत्ता’ में प्रकाशित हुई थी. बहुत दिनों के बाद इस कविता पर नज़र पड़ी तो सोचा कि क्यों न इसे अपने मित्रों के साथ साझा करूं.  

लिखाओ पुत्र दून में नाम !
राजमहल सा  कॉलेज है यह , दृश्य नयन अभिराम ,
पाँच सितारे होटल जैसा, सुलभ सदा आराम ।
निज भाषा, निज संस्कृति का, हो जड़ से काम तमाम ,
अंग्रेज़ी का चढ़े मुलम्मा, जन-जन करें प्रणाम ।।

नालन्दा या तक्षशिला का, अब न करो गुणगान,
हर पकवान बिकेगा इसका, ऊँची यही दुकान।
सर्वोत्तम इनवेस्टमेन्ट है, नहीं रिस्क का काम,
मन्त्री, सांसद, विधायकों का, एक यही गोदाम ।।
लिखाओ पुत्र दून में नाम !

9 टिप्‍पणियां:

  1. नामा भी चाहिये गुरु जी । ऐसे ही कैसे लिखायें? बढ़िया।

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  2. सुशील बाबू ! यह सन्देश केवल उन राजकुमारों-शहजादों के लिए है जिनके माँ-बाप ने गरीबों का खून चूसकर, नामा एकत्र करने में, अपने नाम का डंका बजा दिया है.

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  3. सही ... पर इतना सहज नहीं

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अकेले हम - अकेले तुम “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. धन्यवाद शिवम् मिश्रा जी. 'ब्लॉग बुलेटिन' में सम्मिलित होने पर मुझे सदैव प्रसन्नता होती है.

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  5. बहुत खूब

    निज भाषा, निज संस्कृति का, हो जड़ से काम तमाम ,
    अंग्रेज़ी का चढ़े मुलम्मा, जन-जन करें प्रणा

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    1. धन्यवाद ज़फ़र भाई ! स्वर्गीय शरद जोशी ने राजीव गाँधी की अंग्रेज़ियत और हिन्दुस्तानी तहज़ीब से नावाकिफ़ियत पर बड़े ख़ूबसूरत तंज़ कसे थे. कभी मौक़ा लगे तो उन्हें पढ़िएगा.

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