शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

नामकरण

नामकरण -
अल्मोड़ा की उन दिनों की बात है जब हमारी बेटियां, गीतिका और रागिनी छोटी हुआ करती थीं, पर इतनी छोटी भी नहीं कि घर में कुछ समय तक हमारे बिना रह न सकें.
हम पति-पत्नी जब शाम को टहलने जाते थे तो वो दोनों पढ़ाई करने के नाम पर अक्सर घर में ही रह जाया करती थीं. हमारी हिदायत के अनुसार वो अन्दर से दरवाज़ा बंद कर लेती थीं और फिर हमारे आने पर ही दरवाज़ा खोलती थीं.
हमारे दुगालखोला वाले जोशी जी के मकान में काफ़ी ज़मीन थी. हमारी श्रीमती जी ने उसमें बहुत से फूल और ख़ूब सारी सब्ज़ी लगाई थी, ख़ासकर हमारे किचन-गार्डन में कद्दुओं की तो बहार थी.
अपने हर अतिथि को जाते समय एक भारी कद्दू प्रदान करना हमारे घर का रिवाज सा बन गया था.
एक बार हमारे एक मित्र पहली बार हमसे मिलने आए. हम मियां-बीबी टहलने गए हुए थे पर बेटियां घर पर ही थीं.
हमारी बेटियों का उन मित्र से परिचय नहीं था
हमारे मित्र से हमारी बेटियों ने खिड़की से झांक कर ही बात की. मेरी बड़ी बेटी गीतिका ने उन से उनका नाम पूछा तो वो बोले -
'हमारा नाम जानकर क्या करोगी बिटिया? हम कल शाम फिर आएँगे.'
इतना कहकर मित्र जाने लगे तो उनकी नज़र घर के बाहर के हिस्से में रक्खे दो दर्जन कद्दुओं पर पड़ी. उन्होंने हमारी बेटियों से पूछे बिना एक भारी सा कद्दू उठाया और उसे लेकर चले गए.
हम जब आए तो बेटियों ने सारा वाक़या हमको सुनाया. हम दोनों बेटियों के बताए गए हुलिए के बाद भी यह निश्चित नहीं कर पाए कि वो सज्जन कौन थे.
खैर अगला दिन आ गया. तीसरे पहर हम दोनों फिर गीतिका, रागिनी को घर में ही छोड़कर, 10-15 मिनट के लिए अपने पड़ौस में एक मित्र के यहाँ गए थे. तभी हमारी रागिनी जी भागती हुई उस पडौसी मित्र के घर आईं और हांफ़ते हुए मुझ से बोलीं -
'पापा ! पापा ! आपके वही दोस्त आए हैं.'
मैंने पूछा - 'कौन से दोस्त?'
रागिनी ने जवाब दिया - 'नाम तो मुझे उनका नहीं पता.'
फिर अचानक रागिनी जी के दिमाग की बत्ती जली और उन्होंने चहक कर कहा -
 'वही कल वाले 'कद्दू-चोर अंकल.'

12 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 23/11/2018 की बुलेटिन, " टूथपेस्ट, गैस सिलेंडर और हम भारतीय “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. धन्यवाद शिवम् मिश्रा जी. आपने इस संस्मरण को मेरे ब्लॉग पर पोस्ट करते ही इसे 'ब्लॉग बुलेटिन' के अंक में शामिल कर लिया और मैंने अभी-अभी इस अंक की सभी रचनाओं का आनंद भी प्राप्त कर लिया.

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  2. हा हा हा...सर, जितनी बार पढ़ रहे बहुत हँसी आ रही।
    ऐसे रोचक संस्मरण साझा करने लिए सादर आभार आपका।

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    1. श्वेता जी, बच्चों की चटपटी बातें हमको आज भी हंसाती है लेकिन बच्चे खुद बड़े होकर अपनी ऐसी हरक़तों का ज़िक्र छिड़ते ही भाग खड़े होते हैं.

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  3. वाह बहुत खूब!
    पढ कर ऐसा ही एक संसमरण होठों पर हंसी बिखेर गया ।
    रोचक और हास्य रस लिये सुंदर अभिव्यक्ति।

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    1. धन्यवाद कुसुम जी. आप लोगों की मुस्कराहट ने इन मधुर स्मृतियों को और मीठा कर दिया है.

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  4. नाम भी बता देते तो क्या चला जाता आपका क्या पता हमारे कद्दू बच जाते :)

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    1. सुशील बाबू, उन दिनों सब दोस्त हमारे कद्दुओं की सौगातों से त्राहि-त्राहि करने लगे थे. कद्दू-चोर अंकल का तो मेरी बेटियों को शुक्र-गुज़ार होना चाहिए था.

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  5. बहुत सुन्दर. ..कद्दू चोर की कथा 👍

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    1. धन्यवाद अनिता जी.
      बच्चे तो किसी के गुण देखकर उसके अनुरूप ही उसका नामकरण करते हैं.

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  6. बेहद खूबसूरत....., हास्य रस लबरेज संस्मरण ।

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    1. धन्यवाद मीना जी,
      बच्चे होते तो चटपटे हैं लेकिन बात बहुत पते की कह जाते हैं.

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