नन्हीं
कलियाँ, बिन खिले, मुरझा गईं !
वहशियत है
मुल्क में, समझा गईं !
बच्चियां
हिन्दू की हों,
मुसलमान की
हों
या
किसी अन्य
धर्मावलम्बी की !
किसी से
बदला लेने के लिए -
या
किसी को सबक
सिखाने के लिए -
उन मासूमों
का अपहरण,
उन का
बलात्कार,
और उन की
हत्या
करना ज़रूरी
क्यों हो जाता है?
ये अपने आप से किया सवाल है .... इंसान की पाशविकता इतनी अधिक हो गई है की वो कुछ नहीं देख पा रहा ... दरिंदा बन गया है ... धारण, बदला, जवाब ... ये सब बहाना है अपने जानवर को ढकने के लिए ...
जवाब देंहटाएंशेम आती है इंसान होने पर ....
दिगंबर नासवा जी, काश की इन दरिंदों के परिवार वालों को, इनके हिमायतियों को शर्म आए और वो इन से पूरी तरह सम्बन्ध-विच्छेद कर, खुद इन्हें कानून को सौंपें. और जब तक ऐसा नहीं होता है तब तक हमको अपने देश पर, अपने समाज पर, अपनी संस्कृति पर गर्व करने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए.
हटाएंघटना दुर्घटना कुछ भी आज कैसे वोट में बदली जाती है
जवाब देंहटाएंऐसी सोच कम्प्यूटर की बना कर आज गेंद खेली जाती है
जमाना बदल रहा है बहुत तेजी से आँखें खुल नहीं पाती हैं
रात ही है सोच कर अंधेरे में बैठे नहीं जानते
वही काली रात आज सुबह के नाम से जानी जाती है ।
सुशील बाबू, साहिर की बहुत पुरानी नज़्म है -
जवाब देंहटाएं'जिन्हें नाज़ है, हिन्द पर, वो कहाँ हैं.'
आज यही सवाल हर जागरूक भारतीय, भारत पर गर्व करने वाले इन देशभक्तों से पूछ रहा है.
अपंग हुई सोच, कायर मन,घिनौनी हरक़त को देता है अंजाम
जवाब देंहटाएंवक़्त ग़लत नहीं है वक़्त को ग़लत बनाने की साज़िस रच रहा है जमाना .....अब वक़्त आगया है क़ानून को कमर कसने की,सविधान के लचीले पन को कठोरता में तबदील करने का
अनीता जी, ऐसी दरिन्दगी को रोकने के लिए क़ानून को और अधिक सख्त और उसकी प्रक्रिया को अधिक सुगम बनाने की ज़रुरत तो है ही, साथ में ऐसी किसी भी घटना को धर्म-मज़हब, समुदाय और वोट-बैंक से जोड़ने वालों को भी बक्शा नहीं जाना चाहिए.
हटाएंपता नहीं क्या हो गया है इंसान को ....?
जवाब देंहटाएंशुभा जी, ऐसे दरिन्दे इन्सान थोड़ी होते हैं.
हटाएंइंसानियत शर्मसार हो रही है और लोग संवेदनहीन होते जा रहे हैं ! भयावह स्थिति है !
जवाब देंहटाएंसाधना जी,
हटाएंइन मासूम कलियों के अकस्मात् तोड़े जाने पर आपसे एक विचारोत्तेजक कविता की अपेक्षा है.
निरीह बालिकाओं की वेदना को 'ब्लॉग बुलेटिन' के - 'विश्व-बालश्रम दिवस और हम' अंक से जोड़ने के लिए ह्रदय से धन्यवाद शिवम् मिश्रा जी.
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १४ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
'पांच लिंकों का आनंद' के 14 जून, 2019 के अंक में मेरी कविता को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद श्वेता. आप सबका स्नेह मिलता रहेगा तो मेरी कलम साहित्य-सृजन में सदैव संलग्न रहेगी.
हटाएंसुलगता सवाल, झुलसता समाज!
जवाब देंहटाएंविश्वमोहन जी, समाज तो पहले ही राख हो चुका है और सवाल उठाने के बजाय अब दरिंदों को माक़ूल जवाब देने का वक़्त आ गया है.
हटाएंखूबसूरत पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद 'क्या है कैसे'.
हटाएंसंसार में सबसे असंगत प्राणी मानव है जो कभी कभी देव बन जाता है और प्रायः पिशाच निकृष्ट सोच वाला, वह मानव बहुत कम होता है।
जवाब देंहटाएंरही बदला दुश्मनी उस के तहत सबसे ज्यादा बच्चे बली चढ़ रहे हैं
चाहे लड़की या लड़का दुश्मनी के चलते बच्चों का अपहरण फिर हत्या एक दुष्कर समस्या है और बेटियों के साथ और भी अमानुषिक व्यवहार न जाने मानवता और नैतिकता कहां मुह छिपाये बैठी है।
चर्चा अंक- 3366 में मेरी कविता को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'.
जवाब देंहटाएंअब हम सबको स्वयं भगवान शंकर बनकर तांडव करना होगा और मनुष्य योनि के इन दरिंदों का सर्वनाश करना होगा.
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