किस की किस पर विजय का पर्व?
पाप बड़ा या पुण्य बड़ा है
प्रश्न अचानक आन खड़ा है
पाप-मूर्ति रावण का पुतला
सदा राम से दिखा बड़ा है
राम तो है दुर्गम वन-वासी
रावण स्वर्ण-नगर का वासी
पर्ण कुटी में व्याप्त उदासी
हर सुख भोगे महा-विलासी
पुण्य-राज रहता अस्थायी
पाप का शासन है स्थायी
पुण्य कंदमूल पर निर्भर
पाप उड़ाता दूध-मलाई
पुण्य है सूना मरघट जैसा
पाप सजे जैसे मेला है
पाप-पुण्य की परिभाषा को
आज बदलने की वेला है
दुखद पुण्य को कौन सहेगा
बुद्धिमान अब यही कहेगा
पुण्य से तुम छुटकारा पाओ
पाप को जीवन में अपनाओ.
पाप अपनाने के लिये भी पिछले जन्म के पाप काम आते हैं हम यहाँ भी हार जाते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
मित्र ! पिछले जन्म के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा चित्रगुप्त को थैली देकर बदलवाया भी तो जा सकता है.
हटाएं'विजय-पर्व' (चर्चा अंक - 3483) में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'.
जवाब देंहटाएंअत्यंत सार्थक रचना ! न्याय, सत्य, सदाचार को इतने कष्ट उठाने पड़ते हैं आजीवन कि लोग सत से किनारा कर लेते हैं ! टी वी धारावाहिकों में भी अच्छे सच्चे लोगों को दुःख उठाते, संघर्ष करते और हारते हुए ही दिखाया जाता है ! कदाचित यही कारण है कि लोग सदाचार से दूर भागने लगे हैं ! छोटे से जीवन को सुखी रह कर जीना चाहते हैं जिस राह से भी मिले सुख उसे पाना चाहते हैं ! चिंतन की बड़ी ज़रुरत है !
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद साधना जी.
हटाएंआज राम के सच्चे भक्त हनुमान जी की तरह पेड़ों पर लटके हुए हैं और उनके बनावटी भक्त कुर्सियों पर अटके हुए हैं.
जो लोग धोखा देने में श्री राम को नहीं छोड़ते वो इंसानों को क्या छोड़ेंगे?
पाप पुण्य को सही संदर्भ में प्रस्तुत करती रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गोपाल तिवारी जी.
हटाएंबेहतरीन तंज़.
जवाब देंहटाएंसही तो है हम बहुत सी चीज उलटी कर रहे हैं... जैसे "नेकी कर दरिया में डाल" के बदले " नेकी कर रोज गिना" :D
मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है आपका 👉🏼 ख़ुदा से आगे
रोहितास घोरेला जी,
जवाब देंहटाएंअब तो एक पुराना नग्मा गाने का मन करता है -
ये दुनिया, ये महफ़िल, मेरे काम की नहीं, मेरे काम की नहीं.'
जल्द ही आपकी पोस्ट का आनंद लूँगा.