गुरुवार, 17 सितंबर 2020

हिंदी पखवाड़ा

हिंदी दिवस का जश्न तो जैसे तैसे मना लिया जाता है लेकिन एक पखवाड़े तक हिंदी पखवाड़ा मनाना तो बहुत कष्टकारी है.
हिंदी-भक्त होने की नौटंकी महाभारत की अवधि से मात्र तीन दिन कम के लम्बे समय तक कैसे खेली जा सकती है?
हिंदी पखवाड़ा जिस ऐतिहासिक घटना की स्मृति में मनाया जाता है, उस घटना का मैं आज खुलासा कर रहा हूँ –
इसी पखवाड़े में कलयुगी राजा रामचंद्र ने माता कौशल्या रूपी हिंदी को निर्वासित कर, कैकयी रूपी अपनी सौतेली माता अंग्रेज़ी को राजभाषा रूपी राजमाता के पद पर प्रतिष्ठित किया था.
एक बार फिर से मेरी पुरानी कविता -
1.
कितनी नक़ल करेंगे, कितना उधार लेंगे,
सूरत बिगाड़ माँ की, जीवन सुधार लेंगे.
पश्चिम की बोलियों का, दामन वो थाम लेंगे,
हिंदी दिवस पे ही बस, हिंदी का नाम लेंगे.
2.
जिसे स्कूल, दफ्तर से, अदालत से, निकाला था,
उसी हिंदी को घर से और दिल से भी निकाला है.
तरक्क़ी की खुलें राहें, मिले फिर कामयाबी भी,
बड़ी मेहनत से खुद को, सांचा-ए-इंग्लिश में ढाला है.
3.
सूर की राधा दुखी, तुलसी की सीता रो रही है,
शोर डिस्को का मचा है, किन्तु मीरा सो रही है.
सभ्यता पश्चिम की, विष के बीज कैसे बो रही है,
आज अपने देश में, हिन्दी प्रतिष्ठा खो रही है.
4.
आज मां अपने ही बेटों में, अपरिचित हो रही है,
बोझ इस अपमान का, किस श्राप से वह ढो रही है.
सिर्फ़ इंग्लिश के सहारे, भाग्य बनता है यहां,
देश तो आज़ाद है, फिर क्यूं ग़ुलामी हो रही है.

एक नए छंद का जन्म -

सुश्री सुषमा सिंह ने अपनी टिप्पणी में यह सुन्दर कविता उद्धृत की -
‘कभी तुलसी, कभी मीरा, कभी रसखान है, हिन्दी
कभी दिनकर, कभी हरिऔध की, मुस्कान है हिन्दी.
निराला की कलम से जो, निकलकर विश्व में छाई,
हमारे देश हिन्दुस्तान की, पहचान है हिन्दी.’

मैंने इस पर अपनी आपत्ति जताते हुए कहा है -


निराला को कभी जो एक कुटिया तक न दे पाई,
वही बे-बेबस, भिखारन, बे-सहारा, है मेरी हिंदी !'
जिसे वृद्धाश्रम में, ख़ुद, समूचे दिन बिताने हैं,
किसी के भाग्य को अब क्या संवारेगी, मेरी हिंदी !

 

14 टिप्‍पणियां:

  1. फ़िर भी हिन्दी है तो है मेरी हिन्दी :)

    बहुत सुन्दर।

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  2. हाँ, हिंदी तो हमारी माता है लेकिन उस गौ माता की तरह की तरह की माता जिसे हम चारे के लिए जंगल में हांक देते हैं और फिर उसका दूध दोहने के लिए उसे घर ले आते हैं. .

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  3. बहुत सही
    फिर भी एक न एक दिन वह दिन आएगा जब हिन्दी से नाक भौं सिकोड़ने वालों को अक्ल आएगी, वे जरूर सुध लेंगे अपनी माँ की

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    1. कविता जी, हिंदी का सुनहरा दौर जल्द आएगा. हमारे ढपोलशंखी हिंदी-सेवकों की असलियत का खुलासा होने दीजिए फिर देखिए हिंदी के सच्चे हितैषी उसे कैसे-कैसे आकाश की ऊंचाइयों तक पहुंचाते हैं और हिंदी से नांक-भौं सिकोड़ने वालों को उसको साष्टांग प्रणाम करने के लिए विवश करते हैं.

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१९-०९-२०२०) को 'अच्छा आदम' (चर्चा अंक-३८२९) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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  5. 'अच्छा आदम' (चर्चा अंक - 3829) में मेरी कविता - 'हिंदी पखवाड़ा 'को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता !

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  6. राष्ट्रभाषा का सम्मान तो मिलना ही चाहिए हमारी मातृभाषा को
    यह कसक तो है मन में..बहुत सुन्दर सृजन ।

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    1. मीना जी, अपनी मातृभाषा को राष्ट्रभाषा का सम्मान दिलाने के लिए हमको उसको समर्थ बनाना पड़ेगा और ख़ुद को केवल एक भाषा से जुड़े रहने के आलस्य को दूर भगाना होगा.

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  7. बढ़ रहा है हिन्दी का दायरा

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    1. हिंदीगुरु, यदि हिंदी का दायरा कछुए की गति से ही बढ़ता रहा तो उसे राष्ट्रभाषा बनने में सदियाँ लग जाएँगी.

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  8. एक दिन जरूर आएगा जब इसकी अहमियत, अपने-अपने मतलब के कारण इसका विरोध करने वालों को भी समझ आ जाएगी

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    1. गगन शर्मा जी, मिर्ज़ा ग़ालिब कह गए हैं -
      हमने माना कि तगाफ़ुल न करोगे लेकिन

      खाक़ हो जाएंगे हम तुमको ख़बर होने तक

      हिंदी के विरोधियों को जब तक हिंदी की अहमियत पता चले तब तक कहीं बहुत देर न हो जाए.

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  9. श्चिम की बोलियों का, दामन वो थाम लेंगे,
    हिंदी दिवस पे ही बस, हिंदी का नाम लेंगे.
    सही कहा यही कटु सत्य है माता होकर भी बेचारी है हमारी हिन्दी...। हिन्दी कहने वाले भी निरा और मूर्ख माने जा रहे है हिन्दुस्तान में...इससे बदतर और क्या होना है हिन्दी दिवस क्यों हिन्दी को समृद्ध बनाना होगा।
    बहुत ही लाजवाब सृजन।

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  10. प्रशंसा के लिए धन्यवाद सुधा जी.
    हिंदी के विकास का ठेका जिनके पास है, उन्हें ख़ुद हिंदी सही ढंग से नहीं आती लेकिन उन्हें अंग्रेज़ी सहित अन्य भाषाओँ का विरोध करना खूब आता है.
    हिंदी को इन नीम हकीमों के चंगुल से हमको मुक्ति दिलानी होगी.

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