मंगलवार, 13 जुलाई 2021

अधखाए बैल की सदगति

1990 के आसपास की बात है. हम लोग अल्मोड़ा में कैन्टुनमेंट के नीचे दुगालखोला में रहते थे. दुगालखोला के नीचे ऑफ़िसर्स कॉलोनी (जिसे मैंने अफ़सर टोला कहा है) जाने वाली सड़क है. कोई इस सड़क को कैन्टुनमेंट एरिया में मानता है तो कोई इसे नगरपालिका के क्षेत्र में और कोई इसकी देखरेख की ज़िम्मेदारी दुगालखोला के ग्राम प्रधान की मानता है. यह सड़क है तो कई बाप वाली लेकिन फिर भी अनाथ है. इसी सड़क पर एक रात एक बाघ ने एक बैल को मार दिया था. फिर क्या-क्या हुआ और क्या क्या नहीं हुआ, यह आप मेरी इस काव्य-गाथा में पढ़िए.

अधखाए बैल की सद्गति -

अफ़सर टोला के रस्ते में

बीच सड़क पर

अधखाया इक बैल पड़ा था

जनसमूह उसको घेरे था

हमने पूछा- क्या किस्सा है?’

उत्तर पाया- रात इसे इक बाघ खा गया

बहुत देर तक बाघों की जब चर्चा हो ली

तब हमने यह प्रश्न उठाया -

अब इसका क्या किया जाएगा?’

एक सयाना झट से बोला -

नगरपालिका वाला ठेला, आकर इसको ले जाएगा

किंतु पालिका के बाबू

ने ये हमें बताया -

अफ़सर टोला का रस्ता तो

शहरी सीमा के बाहर है

वापस लौटे

ग्राम सभापति को जा घेरा

ग्राम सभापति चीख उठे -

क्या मुझसे नाता?

अगर सड़कपति होता तो मैं बैल हटाता

सचिव छावनी बोर्ड
व्यथा सुन बहुत पसीजा
नहीं सड़क ये क्षेत्र छावनी

फिर कह खीजा

सोचा स्वास्थ्य विभाग

हमारा काम करेगा

गलत जगह आ गए

न ये इल्ज़ाम धरेगा

स्वास्थ्य विभाग नरेश

बड़े ही दयावान थे

पर नियमों के अनुपालन में

सावधान थे

मरे बैल को उठवाने में

यूं तो आकुल थे

हत्या थी या आत्मघात

यह सत्य जानने को

व्याकुल थे

हर अफ़सर का

हमने था दर खटकाया

सभी जगह से

किंतु टके सा उत्तर पाया

जीपारूढ़ सैकड़ों अफ़सर

रस्ते पर आते-जाते थे

किंतु शांत-दुर्गंध छोड़ता

बैल जहां था वहीं पड़ा था

रुंधे गले से हमने अपना

नेता जी को हाल सुनाया

नेता बोले-जन सेवा तो पुण्य कार्य है

किंतु इलैक्शन बीत गया है

अब तो अगले ही चुनाव में बैल हटेगा

बातों में कुछ ने टरकाया

और कहीं पर धक्का खाया

इसी तरह से हफ़्तों ग़ुज़रे

बैल हटाने कोई न आया

किंतु चील कौओं ने

अपना काम किया है

जन सेवा के बदले

कुछ ना दाम लिया है

अब न गंध है

अब न रक्त है

चंद अस्थियां मात्र शेष हैं

बैल कांड से मुक्ति मिली है

मिटे हमारे सभी क्लेश हैं

नभ से आकर धरती की कर रहे सफ़ाई

पेंडिंग युग में तुम ही तत्पर पड़े दिखाई

इस विपदा से तुमने आकर मुक्ति दिलाई

धन्य-धन्य हे गिद्ध ! चील, कौए, सुखदाई !

बाबू झिड़की

अफ़सर घुड़की

नेता के वादे भूलेंगे

पर नभचारी बैल भक्षियों

तुमको कभी नहीं भूलेंगे

तुमको कभी नहीं भूलेंगे

 

25 टिप्‍पणियां:

  1. अभी कई बैल मरेंगे आप कुछ लिखेंगे और हम भी कुछ लिखेंगे। लिखते चलें।

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  2. मित्र, सड़क पर आवारा घूमने वाले बैल ऐसे ज़रूर मरेंगे लेकिन हम-तुम तो खेत वाले नहीं, कोल्हू के भी नहीं, बल्कि कलम के बैल हैं, इतनी आसानी से ह्म्क्को-तुमको कहाँ मुक्ति मिलेगी?

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  3. कविता की गंगा में भी हाथ साफ कर रहे हो जनाब।
    वाह क्या बात है। एक किस्से को कविता में ढाल दिया। हर कोई अपनी जिम्मेदारियों से भागता है आजकल लेकिन प्रकृति नहीं भागती।
    नई रचना पौधे लगायें धरा बचाएं

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    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद रोहितास ! कविता तो मैं पिछले चालीस साल से भी अधिक समय से कर रहा हूँ. हाँ, कहानी-किस्से-आलेख आदि में मेरी अधिक अभिरुचि है.
      तुमने अपनी रचना का लिंक नहीं भेजा.

      हटाएं
    2. नीचे लिखी "पौधे लगाएं धरा बचाएं" पंक्ति पर क्लिक करें ये एक लिंक ही है।

      पौधे लगायें धरा बचाएं

      हटाएं
  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (१४-०७-२०२१) को
    'फूल हो तो कोमल हूँ शूल हो तो प्रहार हूँ'(चर्चा अंक-४१२५)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    उत्तर
    1. 'फूल हो तो कोमल हूँ, शूल हो तो प्रहार हूँ' (चर्चा अंक - 4125) में मेरी व्यंग्य-कविता सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद अनीता !

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  5. युगों युगों से ये सारा कुछ चल रहा है,और खत्म होने के असर नहीं,व्यवस्था तंत्र पर करारा प्रहार करती अद्भुत,सटीक रचना 🙏💐

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    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद जिज्ञासा. तुमने कहा है - 'कई वर्षों से ये सारा कुछ चल रहा है' तुम - 'कई वर्षों से ये सारा कुछ चल रहा है' को अगर - 'युगों-युगों से'ये सारा कुछ चल रहा है' कर दो तो बेहतर होगा.

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  6. आज के सरकारी कामकाज पर बहुत ही करारा व्यंग किया है आपने, गोपेश भाई।

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    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद ज्योति !
      सरकारी कामकाज आज से नहीं, बल्कि आदिकाल से ऐसा ही होता आ रहा है.

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  7. वो तो बैल था, अभी तो आदमी मर जाए सड़क पर, या उसके साथ दुर्घटना हो जाए तो उसे भी उठाने से पहले ना जाने कितनी ही औपचारिकताएँ कागजी कारवाई होती है।
    बस, चील कौओं के खाने से पहले उसे उठा लेते हैं, यही गनीमत है।

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    1. मीना जी, हमारी लोकतान्त्रिक सरकार की कार्य-प्रणाली पर इतना संदेह?
      अटल जी के शब्दों में मुझे कहना पड़ेगा -
      'ये अच्छी बात नहीं है.'

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  8. व्यंग्य की पैनी धार अपनी स्वाभाविक लय में अद्भुत प्रभाव उत्पन्न कर रही है।

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    1. तारीफ़ के लिए शुक्रिया दोस्त !
      सभी सरकारी कुओं में ज़रा-ज़रा सी भांग क्या पड़ गयी, हम सब छिद्रान्वेषियों ने प्रजा-पालकों पर व्यंग्य रूपी तलवार चलाना शुरू कर दी.
      ऐसी गुस्ताख़ियों के लिए हमको काले-पानी की सज़ा हो जाए तो कोई आश्चर्य मत करना !

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  9. करारी मार ! व्यंग्य की धार !
    मगर हम सब हैं ज़िम्मेदार !

    पैनी कविता की चोट तब झिलेगी
    जब सबको अपनी कमी दिखेगी.

    सादर अभिनन्दन.

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    1. तारीफ़ के लिए शुक्रिया नूपुर जी ! वैसे बिलकुल सही कहा आपने !
      आपकी बात में कबीर की - 'बुरा जो देखन मैं चल्या --' की भावना प्रतिबिंबित होती है लेकिन ज़िम्मेदारी के ओहदों पर बैठे महानुभावों की तमाम काहिली और बेपनाह जहालत के लिए हम कुसूरवार थोड़ी हो सकते हैं?
      हमारे जैसे किसी चूहे को तो हिम्मत कर के चूहा-खोर बिल्ली के गले में खतरे की घंटी बांधनी ही पड़ेगी.

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  10. उत्तर
    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद ज्योति कलश जी !
      लालफ़ीताशाही और निकम्मी-नाकारा व्यवस्था की यह तीस साल पुरानी दास्तान अगर आज भी सामयिक है तो यह हमारा ही नहीं, देश का भी दुर्भाग्य है.

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  11. बहुत सुंदर और सटीक सृजन आदरणीय।

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  12. उत्तर
    1. संगीता जी, भ्रष्टाचार का अंत तो हमारे नेता अपने हर भाषण में करते हैं.ये बात दूसरी है कि रक्तबीज की संतान होने के कारण इस भ्रष्टाचार का अगर गला काटो तो इसके रक्त की जितनी बूंदे ज़मीन पर गिरती हैं, उतने रक्तबीज रूपी भ्रष्टाचार फिर पैदा हो जाते हैं.

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