मजाज़ लखनवी की मशहूर नज़्म – ‘नौजवान खातून से’ का आख़िरी शेर है –
‘तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही खूब है लेकिन,
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था.’
नारी जाति की लाज को ढकने वाले आंचल को इन्क़लाबी झंडा बनाने से हमको क्या हासिल होने वाला है?
हमारी कोशिश होनी चाहिए कि दुनिया भर की खवातीन को गुमराह करने वाली इस नज़्म को बैन कर दिया जाए.
पुराने ज़माने में आदरणीय शम्मी कपूर ने फ़िल्म राजकुमार' में साधना जी से कहा था -
'इस रंग बदलती दुनिया में इन्सान की नीयत ठीक नहीं,
निकला न करो तुम सजधज कर, ईमान की नीयत ठीक नहीं.'
सादगी और लाज की महत्ता को दर्शाने वाले इस गीत में आगे चल कर नायक अपनी नायिका को सचेत करता है कि उस चंचला को स्वच्छंद विचरण करते देख कर तो भगवान की नीयत भी डोल सकती है.
कई दशक बाद श्री अजय देवगन ने फ़िल्म 'मेजर साहब' में सोनाली बेंद्रे जी को सावधान करते हुए कहा था -
'अकेली न बाज़ार जाया करो,
नज़र लग जाएगी.'
कान्हा जी की रासलीला की परंपरा को पुनर्जीवित करने वाले और यौन-शोषण के लिए विश्वविख्यात श्री आसाराम बापू ने निर्भया काण्ड के बाद लड़कियों के देर रात तक घूमने पर जब सवाल उठाए थे तब कोई हंगामा नहीं हुआ था, किसी को उनकी टिप्पणी पर आपत्ति नहीं हुई थी पर कुछ साल पहले हमारे सुसंस्कृत, शालीन और संस्कारी, तत्कालीन केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री महेश शर्मा ने विदेशी पर्यटक महिलाओं को कुछ ऐसी ही सलाह दी तो लोगबागों ने हंगामा खड़ा कर दिया था.
श्री महेश शर्मा ने भी तो अजय देवगन जी की ही बात को दोहराया था और यह भी कहा था --
'सावधानी हटी और दुर्घटना घटी'
पेशे से डॉक्टर महेश शर्मा जी ने विदेशी बालाओं को अगर यह सलाह दी कि वो भारत में स्कर्ट पहन कर न घूमें तो इसमें क्या बुराई थी?
अगर वो ऊपर-नीचे पूरे कपड़े पहनतीं तो डेंगू और चिकुनगुनिया जैसे रोगों से भी तो बची रहतीं.
नासमझ लोगों ने इस रोग-निवारक नेक सलाह का फ़साना ही बना डाला.
अब देखिए राष्ट्रभक्तों की हाफ़ पैंट को भी तो फ़ुलपैंट में बदला गया है.
शर्माजी ने विदेशी सुंदरियों को अगर यह सलाह दी थी कि -
'वो भारतीय पुरुषों से हाथ न मिलाएं क्यूंकि हमारे यहाँ इसका कुछ और अर्थ निकाला जाता है.'
अब इस बुज़ुर्गाना सलाह पर तो कोई सरफिरा ही आपत्ति कर सकता है.
हमारे यहाँ देवियों के चरण छुए जाते हैं.
बहन मायावती जी के सब चरण छूते हैं, कोई उनसे हाथ नहीं मिला सकता.
इस कोरोना-संकट के युग में जब किन्हीं भी दो प्राणियों में आपस में दो गज़ की दूरी बनाए रखना ज़रूरी हो गया है, हम डॉक्टर महेश शर्मा की सीख का मर्म समझ सकते हैं.
और फिर हाथ मिलाने का मतलब होता है कि जिस से आपने हाथ मिलाया है, आप उसकी पार्टी में शामिल हो गए.
अगर हमारे भूतपूर्व मंत्रीजी विदेशी पर्यटकों को भारतीय राजनीति के पचड़े में पड़ने से रोकना चाहते थे तो इसमें बुरा क्या थी?
हरयाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहरलाल खट्टर ने लड़कियों के जींस पहनने पर आपत्ति की थी.
अब भले ही फ़िल्म ‘दंगल’ में पहलवान महावीर सिंह यह कहते रहें –
‘हमारी छोरियां छोरों से कम हैं के?’
लेकिन हमको इसका आशय यही निकालना चाहिए कि अगर समूचे भारत में नहीं, तो कम से कम हरयाणा में लड़कियां, लड़कों जैसे कम कपड़े न पहनें और सदा-सदा के लिए किसी भी प्रकार की पाश्चात्य वेशभूषा का त्याग कर दें.
हरयाणा जैसे ख़ुशहाल प्रदेश पर लोगबाग कन्या-भ्रूण हत्या के तमाम मिथ्या आरोप लगाते रहते हैं.
भगवान जी वहां लड़कों की तुलना में लड़कियां कम पैदा करते हैं लेकिन हरयाणा की तरक्क़ी से जलने वाले इस का इल्ज़ाम भी नारी-पूजन में सतत लीन हरयाणावासियों पर ही मढ़ देते हैं.
आज हरयाणा की छोरियां खेल-कूद में दुनिया भर में नाम कमा रही हैं.
अगर ये छोरियां खट्टर जी की बात मानें और शॉर्ट्स, जींस, टी-शर्ट्स आदि अपने छोटे भाइयों को दे कर उनकी जगह कुर्ता-सलवार पहन कर खेलें तो वो एक तरफ़ भारतीय संस्कृति की ब्रांड एम्बेस्सेडर बनेंगी और दूसरी तरफ़ खेल के दौरान - घुटने, टखने आदि खुले रहने के कारण लगने वाली गम्भीर चोटों से भी सुरक्षित रहेंगी.
उत्तराखंड के भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री तीरथ सिंह रावत को लड़कियों के फटी जींस पहनने पर सख्त ऐतराज़ है. रावत साहब की बात में बहुत दम है.
सियासत में नंगई बर्दाश्त की जा सकती है, मंत्रियों-नेताओं की ऐयाशियों के लिए थाईलैंड यात्राएं सहन की जा सकती हैं लेकिन भारतीय नारी को तो सात तालों में रह कर ही भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान हेतु प्रयत्नशील रहना चाहिए.
अभी हाल ही में मैसुरु में बलात्कार की एक घटना हुई है.
कर्नाटक सरकार के गृह मंत्री श्री अर्गा ज्ञानेंद्र इस आपराधिक घटना के लिए मुख्य रूप से उस लड़की को ज़िम्मेदार मानते हैं जो कि शाम ढलने के बाद भी एक निर्जन स्थान पर अपने दोस्त के साथ सैर-सपाटे पर गयी थी.
यह तो बलात्कारियों को खुली दावत देने जैसी नादानी थी.
फिर जो हुआ उस पर इतनी हाय, हाय क्यों?
कायदे से तो उस लड़की को शाम ढलने से पहले ही ख़ुद को घर के तहखाने में बंद कर लेना चाहिए था.
मैं आसाराम बापू, डॉक्टर महेश शर्मा, मनोहरलाल खट्टर, तीरथ सिंह रावत और अर्गा ज्ञानेंद्र के विचारों का पूर्ण समर्थन करता हूँ.
उनके वक्तव्य के फलस्वरूप भले ही विदेशी बालाएं भारत में आना बंद कर दें, भले ही हमारी भारतीय स्त्रियों पर और कन्याओं की गतिविधियों पर अंकुश लग जाने के कारण उन के शरीर में विटामिन 'ए' और विटामिन 'डी' की कमी हो जाए (यह कमी तो विटामिन की टेबलेट्स खा कर दूर की जा सकती है) पर यह तो सोचिए इस से देश को, समाज को, कितना लाभ होगा?
1. हमारी बहू-बेटियों की इज्ज़त बढ़ जाएगी.
2. स्त्रियों को असूर्य-पश्या मानने वाली भारतीय संस्कृति का पुनरुत्थान होगा.
3. हमारे देश में बलात्कार और अपहरण की घटनाओं में बहुत कमी आएगी.
4.. हमारे किशोर, हमारे युवा, लड़कियों पर कुदृष्टि डालने के बजाय अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे सकेंगे.
5. सब से बड़ी बात यह होगी कि नारी-स्वातंत्र्य के घोर विरोधी हमारे पड़ौसी तालिबानों को हम इस मास्टर स्ट्रोक से अपना दोस्त बनाने में कामयाब होंगे.
लाजवाब
जवाब देंहटाएंमित्र, हम तो उत्तराखंड से फूट लिए हैं, हम तो शायद बच जाएं पर तुमने चूंकि हमारे इस आलेख की तारीफ़ की है तो माननीय तीरथ सिंह रावत तुम्हारा उत्तराखंड में जीना दूभर कर सकते हैं.
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